दो मिसरों का ग्रन्थ
29/1/2017 | पूत कट्यो बख्तर पहर,समधन दूध सवाय। झीणी मलमल ओढ़ ने,बहु बल़ेबा जाय।। एक मां कहती हैकि समधन का दूध मुझसे सवाया है क्योकि मेरा बेटा तो जिरह बख्तर पहनकर युद्ध में काम आया किन्तु मेरी बहु तो झीनी मलमल ओढ़कर अग्निस्नान करने जा रही है। ~~नाथुसिंहजी महियारिया |
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22/11/2016 | हुई कहानी खत्म तो,पता चला है यार। तेरे मेरे भी सिवा,थे काफी किरदार।। इक्का बेग़म बादशा,कुल तेरह किरदार। पर पत्तों में ताश के,सब के सब है चार।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/11/2016 | देते नित साया घना, बाँटै फल रसदार। लगता है इन पेड के ,नहीं पुत्र परिवार ।। शिवा भवानी सांभवी,शैलसुता सुरभूप। शरण-स्थली-जग!शंकरी,आवड अंब अनूप।। छोडूं साज सिंगार को,दर्पन फेंकूं दूर। साँवरिया की आँख में, निरख निखारूं नूर।। सभी सँपेरे सहमकर,गये नगर को त्याग। उन्हैं आदमी में दिखा,छिपा विषैला नाग।। जीवन भर चलता रहा, जो कांटो की राह। कब्रगाह फूलों लदी, उसको मिली पनाह।। दीन ,अकिंचन, दास का, एक आसरा मात। श्रीकरणी करुणामयी, विपदाहर विख्यात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
19/11/2016 | पला हमेशा ख़ार में, उस गुलाब को तोड। गर्म तेल में डालकर ,दुनिया देत निचोड।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
19/11/2016 | भई भोर ;नभ लालिमा,गई कालिमा भाग। पछीं गण कलरव करे, जाग अरे नर जाग।। राग रागिनी साज तुम,सुर सरगम,आवाज। मन मांडू का महल तू,रूपमती में बाज।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
19/11/2016 | जब जब आया जहन में, उनका मुझे खयाल। कागज पर गिरने लगा, कुमकुम और गुलाल।। शीतल चंदन आप है, मैं मरु-थल का फोग। कहिए फिर कैसै बनें,मणिकांचन संयोग।। फूल करे खुद पर नहीं,मित्र! इत्र छिडकाव। सहज रहे,सुंदर लगे, दंभी करै दिखाव।। ठोकर कोई विष नहीं,मुझै सकै जो मार। हाँ मंजिल दुश्वार है, पर मानूं क्यूं हार।। तरकश तीर कमान बिन, बिन खंजर तलवार। हम लडते है हौसले,की कर पैनी धार।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/11/2016 | ठुमरी,तोडी,भैरवी,काफी ,जोग,बिहाग। राग रागिनी से मधुर, सखी!तेरा अनुराग।। मंदिर में झालर बजी, मस्जिद हुई अज़ान। अब तो उठजा बाँवरे,जगा रहा दिनमान।। धरा मुरधरा री धणी, गिरा डींगल़ी गल्ल। वरा मात इक बीसहथ,किनियांणी करनल्ल।। चंदा के संग चांदनी,धूप सूर्य के संग। तनहा मैं;फिरभी रहूँ,मन से मस्त मलंग।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
16/11/2016 | मन हो गर खुश-रंग तो,कतरा भी बरसात। वरन समंदर सात से, कब बनती है बात? हवा ,फूँक देवे बुझा, मैं वो नहीं च़राग। मैं हूँ वो खुरश़ीद जो, पल पल उगले आग।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
15/11/2016 | कुमुदिनी जल में बसै,चंदा बसै अकास। जो जाही को भावता, सो ताही के पास।। लोक दूहा ~~अज्ञात |
15/11/2016 | बिना नज़्म बिन गीत के, बिना शेर, अशआर। मैंने तुमको है पढा,शब्दों के उस पार।। रोब हवाओं पर किया, पहले आग उछाल। जले झोंपडे तो कहा," यारा!पानी डाल"।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
15/11/2016 | साजणिया सालै नहीं, सालै आईठाण। भर भर बाथां नीरती,ठाला लागै ठांण।। साजनिया सालै नहीं, सालै आईठाण| ऊंठ गयौ सालै नहीं, सालै पड़्यौ पिलांण || सजण वल़ावे हूं खडी, भरी बजारां मझ्झ। लाखां हंदी बसतडी,सूनी लागै अज्ज।। लोक दूहा ~~अज्ञात |
7/11/2016 | "सादुलो वन संचरे, करण गयंदां नास। प्रबल सोच भंवरां पड़े, हंसां हुवे हुलास।।" ~~अज्ञात |
7/11/2016 | रैण अँधारी गी परी, भई सुनहरी भोर। चक्रवाक राजी हुओ,रोवण लगो चकोर।। (रैन अँधेरी छट गई, भयी सुनहली भोर। चक्रवाक प्रमुदित हुआ,रोया बहुत चकोर।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
6/10/2016 | पग पग पातक पेखियो,जगह जगह पर झूठ। धर जांगल इणसूं धणी, अंब.अराधूं ऊठ।। नरपत! अपने भ्रात से, कबहु न कीजै बैर। जहाँ बैर तहाँ देखिये, नहीं निहारत खैर।। नरपत! मीठा बोल के, मन लो सब का जीत। जग में फिर खुशी से जियो, मिले सभी से प्रीत।। नरपत कंठी पहन ली, पर यह लो मत जान। मांस मदिरा ना भखै, तब परि है पहचान।। कभी चहक कर बोलता, कभी धरे वो मौन। तू गर वह है ही नहीं, बता भला फिर कौन? मौला कर दरपन मुझे, यही अरज है तोय। हर चहेरा सँवरा करे, निरख निरख के मोय।। हिंदीं बिंदी चमकती, भारत मां के भाल। सहज,सरल,सबको सुगम,इसका फलक विशाल।। एक पियाली धूप का, सुबह पिया जब सूप। मन में उजियारा हुआ,पल पल निखरा रूप।। जोत अखंडी जोगणी, देणी खल़ दल़ दंड । परम प्रचंडी चंडिका, नमें तनें नवखंड। डमरू डाक डमाल डफ,मादल़ चंग मृदंग। मढ में बाजै मात रै,ध्रींगड ध्रींगड ध्रंग।। घंट बजै झालर बजै, धुरै नगारां ढोल। मढ में ह्वै मंजीर रव, आवड आवै लोल।। साद भवानी सांभल़े,आवड करतो याद। मान तथा मरजाद रख, वरदा हरण विषाद।।गज़ल मौन है आज कल,नहीं मुखर भी गीत। कोलाहल हावी हुआ, रीता वो संगीत।। जल़ थल़ नभ में जोगणी,पेखूं थारो रूप। अनहद जोत अनूप,वसू एक तूं बीसहथ।। बैठ यहां मत बावरे, हंसा पंख पसार। रजनी बीती दिन.हुआ, अनहद पथ चल यार।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
27/8/2016 | लोक कवि कवि कितरी गंभीर बात सहज शब्दां में कैयी है।कवि कैवै कै असली अर कमसल(नकली,वर्णसंकर) नै परखण़ो है तो गायां अर नागां (साप), नै देख लिरावो।गायां असली है जिकै घास खावै तोई दूध देवै जदकै नाग कमसल है जिकै पीवै तो दूध !पण पैदा करै जहर!! आदरणीय गिरधर.दान.सा रतनू.की फेसबुक वाल से। *** असली कमसल आंतरो,सुरियां सापां जोय। खड़ खाधां पय नीपजै,पय पीधां विस होय!! ~~अज्ञात |
27/8/2016 | कान्हा आ बंसी बजा,मन कालिन्दी कूल। जिसको सुनकर साँवरे,जाऊँ सुध बुध भूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
24/8/2016 | साज और आवाज़ तुम,गज़ल नज़म औ गीत। करता रहूं रियाज़ मे, तुम्है याद कर मीत।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/8/2016 | छोडूं साज सिंगार नेंदरपण झपटूं दूर। साँवरिया नें भाल़ नें !,आज निखारूं नूर। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
20/8/2016 | पिया!अषाढी मेहुलो, बरसे मौ पर जोर। मनडौ नाचै मोर ज्यूं, हिव ले प्रेम हिलोर।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/8/2016 | खेती बिनती चाकरी. चौथो हरी रो जाप। पर हाथो सुधरे नही. अड ने कीजे आप।। ~~अज्ञात |
17/8/2016 | गिरधर सा को लिखे पत्र में धोल़ी ठाकर द्वारा quote किया दूहा। *** अधभणियो चारण अखे,झड दूहा लड झूम। घण भणियो लिख ना सकै,दूजा कविता लूम।। ~~अज्ञात |
16/8/2016 | 🌺प्राचीन शिणगारू.दूहा🌺 *** काल़ा बादल़ ऊतरे,मोर करै किंगार। आसाढां अमरित झरै,मुझ लागे अंगार।।१ बादल़ नहीं दल़ बिरह रा,आय मिल़्या अप्रमाण। सोर शिखंडी ना सखी!,जोर नकीबां जाण।।२ घन गाजै बिजल़ी खिवै,बरसै बादल़ बार। साजण बिन लागै सखी!,अंग पर बुंद अँगार।।३ बादल़ झर झर बरसिया,भरिया सायर नीर। डेडरिया डर डर करै,नँह घर नँह नणदल -बीर।।४ बरखा में साथै मिल़ै,बादल़ बादल़ियाँह। डुंगरियां वाह्ल़ा मिल़ै,निरझर जल़ थल़ियाँह।।५ धरहरिया बादल़ सघन,जाझा जल़ भरियाह। हरिया डुंगरिया हुआ,साजण सांभरियाह।।६ धर लीली,धोरा सधर,बादल़िया छायांह। नेह डोर ने ताणियां, अब सरसी आयांह।।७ बादल़- माल़ा बीजल़ी,धुर धुर.लागै गैल। इण रुत में धण एेकली, छोड मती ना छैल।।८ धसिया बादल़ धुर दिसा,चहुदिसिया चमकंत। मन बसिया आज्यो महल, कामण रसिया कंत।।९ आज स बादल़ उमडिया,बाजण लागी बाव। ईडर गढ रा राजवी, भीजंता घर आव।।१० ~~अज्ञात |
16/8/2016 | ( संकलित //मोरारदान सुरताणीया ) *** सब धरमा रो सार, भली करो भूंडी तजो | बरतौ सत वैवार ,कर हर समरण केसवा || खोटो दाणो खाय , नीच मिनख सोचे नहीं जडा मुळ सुं जाय माफी हूवे न मानीया। लोह कंचन री लाट ,रात दिवस भेळी रहै कदै न लागै काट ,सोना उपर सगतीया। लाग्यां लातां थाप ,नीच हुवै सिधा सणक काठ होय ज्युं साफ ,रंदो लाग्यां रमणिया। ~~अज्ञात |
11/8/2016 | भाव, घाव की चासनी, जिसका कविता नाम। तुक ,लय या ऊन्मुक्त हो, हमें शब्द से काम॥ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
9/8/2016 | घटा घूंघटा में सखी, छटा रूप दरसंत। मंद मंद मुसकान री,मेघ झडी बरसंत।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
9/8/2016 | स्वपन,कल्पना और छबि, तीन रूप दरसाय। सखी !नैन की पालखी,रखती सदा बिछाय। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
9/8/2016 | चांद सितारें रोशनी, सब को रख इक साथ। पहने मलमल ओढनी,ब्रजबामा मुसकात।। नैनों की बाती जला,करती मन उजियार। पाती हँस कर भेजती, सखी!बडी हुशियार।। पाती भेजे नैन से,मदमाती हर बार । मुसकाती भाती सदा,लाती सखी! बहार।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
8/8/2016 | बाजी वेरण वांसल़ी,जागी पूरी रात। लागी खटकै काल़जै,अनुरागी री वात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
8/8/2016 | हमने माला तोड के, मनके दिये बिखेर। क्यूं गिनती उस नाम की,जो दे सांझ सबेर।। ©वैतालिक ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
8/8/2016 | "नही आप सी रूपसी, कोमल जगमें.आन?" जिसे निहारे आइना, उस का करे बखान।। ©वैतालिक ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
6/8/2016 | सती, सूर अर संतजन ,तीनूं का इक तार। जरै,मरै,जग परहरै, तब लाधै किरतार।। ~~अज्ञात |
5/8/2016 | कर को मंजन मृत्तिका,तन को मंजन नीर। धन को मंजन धरम है,मन मंजन रघुवीर।। तन पवित्र सेवा किये,धन पवित्र किय दान। मन पवित्र हरि भजन तें,होत त्रिविध कल्याण।। ~~अज्ञात |
5/8/2016 | कव बैठा गोठां करै, वळ कविता री वत्त। महफिल हुय मन मोहणी, जद माचै घैघट्ट॥ पडवै बैठा पाटवी, सब बांधव ले सत्थ। रंग देय वातां करै, जद माचै घैघट्ट॥ जाजम जूनी जामिया, राती राती चट्ट। बातां पर बातां चलै,जद माचै घैघट्ट॥ साजण लांठौ सेठियौ, हियौ हेत जिण हट्ट। मन सूंपै निज मोल बिन,जद माचै घेघट्ट॥ बिरहण धण री वेदना, पात करै परगट्ट। कविता पर कविता चलै, जद माचै घैघट्ट॥ सावण बरसै सरवरां, उमड घुमड घन घट्ट। मन भावण हो बाथ में, जद माचै घैघट्ट॥ बालम बसै बिदेश में, कीकर करणी वत्त। मोबाइल हो साथ में, जद माचै घैघट्ट॥ बाळक बस दो ही भला, सुंदर स्वस्थ सुघट्ट। आंगण में आणंद करै, जद माचै घैघट्ट॥ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
3/8/2016 | अंतस में अनुभव अथग,रग रग मांही राग। जबर मानवी जोड़ियो, इण तारां अनुराग।। मगन होय बैठो मुदै, लहरां लगन लगाय। जगदीसर सूं जोड़िया,गहर सुरां चित गाय।। भल खुद आपो भूलियो, मन सुर ईश मिलाय। तणिया कर जद तार पर,थिर उर आणँद थाय।। कर तंदूरो कोड सूं,गलवै मीठै गाय। भाल़ जगत रै भरम नै,रामेयो रीझाय।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
3/8/2016 | गणनायक लायक गुणी, वरदायक सुत-अंब। चार भुजायक हिक रदन,रे! स्हायक हेरंब।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
3/8/2016 | मन अनुरागी माव रो, रागी औ तन राम। लागी लगनी लाल री, बजै बीण अठजाम।।१ गावूं जस गोपाल रो, रोज सुणावूं राग। लगन लगावूं लाल सूं, पावूं प्रेम अथाग।।२ आव!आव! री रट लियां , बैठौ आंगण-द्वार। बोलावूं बीणा बजा,झणण करे झणकार।।३ सांई!थारी साँवरा,गाई जिण गुण गाथ। उण पाई संपत अचल,गात गात वध जात।।४ "निरखूं कीकर नैण सूं?" बडी असंभव बात। इण सूं बँध कर आँखडी ,मन री बीण मनात।।५ नारायण !तव नाम रा, अनहद राग अपार। किण विध गावूं केसवा!,तन-मन-बीणा तार।।६ सोरठ गावूं साँवरा, माधव मांडूं माड। रीझौ हे ठाकर धणी!,लाल! करो बस लाड।।७ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
2/8/2016 | सूर छतीसी *** सखी अमीणो सायबो .बांकम सू भरियोह। रण बिगसै रितुराज मे. जिम तरवर हरियोह।।१ सखी अमीणो सायबो. निरभै कालो नाग। सिर राखे मिण साम धरम. रीझे सिन्धु राग।।२ सखी अमीण़ो साहिबो,गिणै पराई देह। सर वरसै पर चक्र सिर,ज्यूं भादवड़ै मेह।।३ सखी अमीणो साहिबो,सूर धीर समरत्थ। जुध वामण डंड जिम,हेली बाधै हत्थ।।४ सखी अमीणो साहिबो ,जम सूं मांडै जंग। ओल़ै अंग न राखही,रणरसिया दे रंग।।५ सखी अमीणो साहिबो,सुणै नगारां ध्रीह। जावै परदल़ सामुहै,ज्यूं सादूल़ो.सीह।।६ ~~बांकीदास आसिया |
2/8/2016 | तलवार पर दोहा *** मंडण ध्रम सत न्याव री,खंडण अनय अनीत। खल नाशक शाशक प्रजा,अरे !असि जगजीत।। ~~अज्ञात |
1/8/2016 | (नैन के नीर,और श्वास उच्छवास के पवन का विस्तार हो रहा है, फिर भी ह्रदय में याद रूपी कपूर की आग चालू ही रहती है।) *** नेह नीर सासा पवन,विविध होत विस्तार। उर अंतर उपडी रहै याद अगन घनसार।। ~~प्रबीन सागर |
31/7/2016 | हां वो बिलकुल कमल सा,रहा दंड पर झूल। मन का भँवरा जा वहाँ, कर बैठा क्यूं भूल? ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
31/7/2016 | तितली बैठी याद की, आ मन -पाटल- फूल। बस उस दिन से डार-तन, रही भार से झूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
30/7/2016 | जिण ने प्रेम विजोगणी,राधा खोजै वन्न। मीरां उण नें राखियौ ,नाच मगन व्है मन्न।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
30/7/2016 | डुमो आडी डोकरी, बलदा आडी भैस। विध्या आडी बिनणी,उदृम आडी ऐस।। ~~अज्ञात |
30/7/2016 | घरहर आवै घूमतौ,खरहर उडती खेह। मंडियो मरूधर ऊपरां,मोटो ठाकर मेह।। ~~अज्ञात |
29/7/2016 | जिसने उसको पी लिया, भर नजरों के घूंट। लगा लगी ज्यौ लोटरी, किवां लिया कुछ लूंट।। टूटै घूंघर पांव कै,ढोल जाय वा फूट। रक्स करूंगी रैन दिन, खुली चाहिए छूट।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
29/7/2016 | तलवार *** साढ तिहत्था सूरमा, नवहत्था समरत्थ। नवहत्था नू गंजणी, डोढ़ हत्थी इक हत्थ।। ~~अज्ञात |
29/7/2016 | डुंगरिया हरिया हुआ. नाडी भरिया नीर । आजो राज ऊंतावला. रे नणदल रा बीर।।डुंगरिया हरिया हुआ. भरिया नीर तलाव। धरती करिया धोपटा.गिरधरिया घर आव। संभू गिरधर सरवणसी. साराई करत सराह। मालिक राखै मोजमे. वाह वैतालिक वाह।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | गिरधर सा द्वारा पोस्ट अद्भुत.दोहा *** गोखड़िया खड़िया रह्य,खड़िया झांकणहार। खड़खड़िया खड़िया रह्या,खड़िया झांकणहार।। ~~बावजी चतरसिंहजी |
28/7/2016 | वेख अलूखा आंगणा, इचरज मकर अधीर। छोड़ वसी री छाँवडी, हंसो हुवो वहीर।। Unknown ~~अज्ञात |
28/7/2016 | सखी! रखी है पालखी, चखी नवलखी लाय। सखी दखी ह्वै सैर कर, आवौ मन-पुर माय।। कर ओल़ू काल़ी पडी, तन सूखी तरू वेल। नैण नीर सर सूखिया, आया नी अलबेल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/7/2016 | सखी अमीणो साहिबो ,ए सी बी रो साब। मोफत खाय मीठाइयां,रँजै न घर री राब।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
28/7/2016 | विभिन्न कवियों.पर *** जासू साहित जगमगै. परी जय सह पीर। आसू अर धासू कवि. मीठे खांजी मीर।। कनक अतुल ज्वाला कवि. बीरेन्दर रा बोल। गजा दान रा गीतडा. कलरव तणै किलोल।। हक खाणोहक खरचणो. हिलमिल रहणो हेत। बिरथा ना हक बोलणो.कवि कलरव कहदेत।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | रतनू.साहब पर *** बरसै बैरण बादल़ी, करै काल़जै घाव। माणिगर मन मोहना,देला कद दरसाव। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/7/2016 | गिरधर.सा, जयेश भाई आदि अन्य मित्रों पर *** सरवण घरां सिधावजो,मरवण जोवे बाट।। सावण मास सुहावणो. बसुधा कियो बणाव। सरवर झूलण सायबा. ऐकर गिरधर आव।। गर्ग साब गिरधर गुणी. जोशी नवल जयेस। कलरव तणै किलोल मे. चार चांद चमकेस। मीठे जिसडो मानवी. दीठो नी मरुदेस। बिगसे डिंगल बाटिका. जबलग आप जयेस।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | नरपत आसिया पर लिखा दोहा *** पढतो मन प्रफुल्लित हुवे. दिल मिट जावे दाह। मधुर वयण मन मोवणा. वाह वैतालिक वाह।सावण मास सुहावणो. थडिया अणहद थाट। रे कविता रा राजवी.आसल नरपत आव।। सावण मास सुहावणो. दियो धनख दरसाव। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | काहे कि चिंता करे. रे मुरख.मति मंद।। सह कारज करसी सफल. श्रीधर सचिदानंद।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | काहे कि चिंता करे. अरे मूढ मतिमंद। सह कारज करसी सफल. श्रीधर सचिदानंद।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | काहे कि चिंता करे. अरे मूढ मतिमंद। सह कारज करसी सफल. श्रीधर सचिदानंद।। ~~मोहन सिंह रतनू |
28/7/2016 | दूर देस आकास में , कर अंतर-पट बंद। बैठा है जो रूठ कर, उसके गढ लूं छंद।। छूते ही जिसके चरण,कभी मिटै दुख द्वंद। पूजूं उसको क्यूं नहीं,लाख दुआ हो बंद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/7/2016 | बरसे घन तरसे नयन, दरसे नी दरसाव। फरसे ज्यूं फोरां पडै,मरसे मरवण साव।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/7/2016 | घरां हेकली ढेलडी, काला! छोड कल़ाव। मेघ मंडियौ मोरिया,गीत प्रीत रा गाव।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/7/2016 | प्रबीनसागर *** नेह नगर के द्वार तें, सूधी बिरह बजार। पार परे सो जायगें, सांई के दरबार।। प्रेमी मन केसर कुसुम,सुरत नीर को संग। ज्यों ज्यो अवटै व्रह अगनि,त्यों.त्यों निकटै रंग।।आसिक नट साधन सती,सूरा सहबो स्हैल। अपरापरि की बात नहीं,खराखरी को खेल।। मन प्रेमी कुंदन मुहर,सुरत.प्रकासे जोत। बिरह अनल ज्यों ज्यों तपै,त्यों त्यों कीमत होत।। जैसै निरमल होत है,कनक अनल के संग। तैसै प्रेमी बिरह बल, चढै सुरत को रंग।। और रंग उतरे सबै,ज्यों दिन बीतत जाय। बिरह प्रेम बूटा रचै,दिन.दिन.बढत सवाय।। ~~प्रबीनसागर |
28/7/2016 | प्रबीन सागर *** प्रेमहु का मद जिन पिया,ताहू को यह भेख। अकर करै नांहि डरै,परै कूप द्रग देख।। सूर ससी न समीर गति,अध धर उरध न धार। वेद पुरान न जानिहें,प्रेमी तहां बिहार।। ~~प्रबीन सागर |
28/7/2016 | कलाम साहब पर श्रध्धांजली स्वरूप लिखे कतिपय दोहै ठीक एक साल पहले *** दीपक जो जलता रहा, बिन बाती बिन स्नेह। उसका नाम कलाम था ,कल छोडी निज देह॥1 कलमा पढता खूब था, गीता रही जबान। सच्चा दीपक देस का, सब धरमों का ज्ञान॥2 राम तथा रहमान के, छल -छंदों को छोड। रहा देश सेवक सदा, जिसका मिले ना तोड॥3 ज्ञान और विज्ञान का , दीपक जला; कलाम। किया उजाला देश में,सादर तुझे सलाम॥4 नमन मिसाइल मेन को, भारत मां का पूत। जिसके परिश्रम अथक से, बना देश मजबूत॥5 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
27/7/2016 | घूंघट खोल्यौ गोरडी,काज निरखवा कंथ। वीज झबुका दे वल़ी,पाछी अंबर पंथ।। ~~अज्ञात |
27/7/2016 | बूंदो झड नदियो लहर. बक पंगत भर बाथ। मोरो सौर ममोलिया सावण लायो साथ।। ~~अज्ञात |
27/7/2016 | मनवा, तनवा चोर के, सखी सजनवा श्याम। जा छुप बैठा जा द्वारिका, ना पाती,पैगाम।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
27/7/2016 | ऊसर मन यह तरसता, नेह काज दिन रात। पर प्रियतम बरसे नहीं,करै तुषारापात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
27/7/2016 | हाला झाला रा कुंडलिया *** मरदां मरणौ हक्क है, उबरसी गल्लांह। सापुरूसां रा जीवणा,थोडा ही भल्लाह।। हूं बल़िहारी साथिया, भांजै नँह गइयांह। छीणां मोती हार जिम, पासै ही पडियांह। केहरि केस,भमंग मणि,सरणाई सुहडांह। सती पयोहर, कृपण धन, पडसी हाथ मुवाँह।। किं होवै आगै कियां ,हेत विहूणा हत्थ। नैण सलूंणा नँह मिल़ै,बाल़ अलूणी बत्थ।। ~~ईसरदास जी बारहठ |
27/7/2016 | प्रबीन सागर से कुछ सवैया *** तन बन की लकरी बन्यों,प्रेम सूत्र की धार। बिरहा को आरा कियें,खेपत काम सुथार।। मन पंखा सुरता लठी,कसै मिंत गुन तार। प्रेम झुलावनहार इन,बाढै विरह बयार।। तन चौकी मन मध मुकुर,प्रेम कलहियां दीन। लखि मुख आनन सो लहो,परसत दरस प्रबीन।। पावस बाजीगर प्रबल,डमरु गाज अवाज। बिरही मन बदलत बटा,जिय कपोत ग्रह बाज।। प्रेम पियाला जिन पिया,ताको शुद्ध न बुद्ध। बानासुर तनया छकी,लखी छबी अनिरूद्ध।। ~~अज्ञात |
27/7/2016 | माताजी *** सेवक नें शाकंभरी,अन,धन देती आय। जस,पद,हय,गज,जोगणी,कमी रखै नी कांय।।१ अंब-तरूवर अंबका,सेवंता सुखथाय। फल़ छाया दे फूटरी, मेटै दुख महमाय।।२ भुगती मुगती दायिनी,सगती करौ सहाय। नमन नमन अनपायिनी,मेहाई महमाय।।३ शंख बजै,झालर बजै,थाली थणणण थाय। चिरजा गूंजै चहुदिसा,मढ थारै महमाय।।४ खं खमकारो खोडली!, राजपरा री राय। वदों वराणां री धणी, माटेली महमाय।।५ वागीशा वरदायिनी,स्वेत वसन सुरराय। कमलासन बैठी रसन,करूं न चिंता कांय।।६ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | नजर शजर है नीम का, नेह नगर के गाँव। मन का पंछी बैठनें, आया ठंडी छाँव।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | दरगाहों की चौखटें, चूमी सुबहो शाम। पर नजरों के भूत से, मिला नहीं आराम।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | तंतर मंतर टोटकै, दुआ दवा बेकाम। नजर लगे जो नेह की, समझौ खेल तमाम!।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | सावण आयो सायबा,झूले सखियां झूल। कद आवो घर कंत जी,(म्हारे)छतियां लागे शूल।। बरसे बैरण बादळी,अंग लगावे आग। तू परदेशां पोढियो,भुंडा म्हारा भाग।। गजब बणी सब गोरड़ी,सब का एक सवाल। जिनका खामद घर नही,तिणका कवण हवाल। ~~जगमाल सिंह ज्वाला |
26/7/2016 | गहर धुनी कर गाजियो,अहर बेपारै आज। महर करी मघवान महि,लहर रखावण लाज।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
26/7/2016 | कूक अंब कोकिल करै,टूंकै मोर टहूक। हूक उठै हिव हे!अली,माधव बिन हूं मूक।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | रतनू साहब के सम्मान.में *** मोहन सम्मोहन करै, दोहा सुंदर दाख। सबद भाव मय बांसुरी,लय मन छेडै लाख।। चावै पुर चौपासणी,गिरा सुतन गुणवान। छैल बिराजै छंद रो,रतनू मोहन राण।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/7/2016 | गिरधर दान सा रतनू के उद्धत कियै कुछ प्राचीन सोरठे/दोहै किरण जी नाहटा को उनके द्वारा दी गई श्रध्धांजली से *** पवन भगत पाणी भगत,भगत धरण आकास। सूर चंद दोनूं भगत, बडो भगत विसवास।। सरणै जे आया सुखी,बहु छाया अवलंब। हर श्रम फल़ दे कर महर,अइयो तरवर अंब।। मल़यागिरि मंझार,हर को तर चंदण हुवै। संगत लेय सुधार,रूंखां ने ई राजिया।। राखै धेख न राग,भाखै नँह जीवां बुरो। दरसण करतां दाग,मिटै जनम रा मोतिया।। रहणा इक रंगाह,कहणा नँह कूडा कथन। चित ऊजल़ चंगाह,भला जिकोई भैरिया।। फूल बिगाडै फल़ भखै,पानां नै पाडैह। सौ औगण पंछी करै,तर पण नँह ताडैह।। आवै अवर अनेक,ज्यां पर मन.जावै नहीं। दीखै तो बिन देख,जागा सूनी जेठवा।। ~~अज्ञात |
25/7/2016 | कविता *** कविता लभ़ै न क्रोड सूं, गीत, गज़ल,गुणवेल। सबद भाव रा सिद्ध नै,सहज सुगम अर स्हैल ।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
25/7/2016 | शिव *** अगडबंब अवधूत रै, सोहै अंग भभूत। भूत संग भोल़ौ फबै, आपै सुक्ख अकूत।। डमरू डाक डमाल कर,पद घूंघर छम छम्म। नमो नमो नटराज शिव, रंग तांडवं रम्म।। अहरनिशा अवधूत रे,लहर वहै लट गंग। आठ पहर तूं आतमा, समर सिवा सिव संग।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
25/7/2016 | शिव वंदना *** कैल़ाशपति वड कँदरां-गिरधरदान रतनू दासोड़ी कैल़ासपति वड कँदरां,उमिया सथ अरधंग। रँग हथ लैवै रीझियो,भर भर प्याला भंग।।1 जट खोली भोल़े जबर,धुर हद छोडै ध्यान। सरस धिनो दिन सोमरै,सावण करण सिनान।।2 गिरजा हद घोटै करां,भगती धर धर भंग। कर कर लैवै कोड सूं,उमंगाणो मन अंग।।3 सावण नावण सगतपत,हुल़सावण तिय हेर। महादेव भल मयँक रै,फूठरमल दिन फेर।।4 इम भसमी ससमी अथग, ईस रमाई अंग। भंग पिलाई भाव सूं ,रीझी गिरजा रंग।।5 कीरतधर कैल़ाश मे,अहर सोम उछरंग। जहरकंठ हद जागियो,गहर उमाणी गंग।।6 मुरलोचन मुरलोक ही,सुर नर करणा सेव। धुर सरणा तोरा धिनो,दत चित लेवै देव।।7 अमल न चाढूं आपनै, विजया नको वणाव। संभेसर दिन सोम रै,भला चढावूं भाव।।8 सदा रमाणी सुरसरी,खरी उमाणी खेल। गहर भमाणी गंग नै,जटा फटा जबरेल।।9 रतीपती पर रूठियो,सतीपती वड सूर। अती करंतां अनँग नैं ,जटधर कीनो झूर।।10 दूत पिसाचण डाकणी,भायप नामी भूत। महादेव मजबूत नै, आय नमै अवधूत।।11 ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
25/7/2016 | शिव *** कैल़ासपति वड कँदरां,उमिया सथ अरधंग। रँग हथ लैवै रीझियो,भर भर प्याला भंग।। जट खोली भोल़े जबर,धुर हद छोडै ध्यान। सरस धिनो दिन सोमरै,सावण करण सिनान।। गिरजा हद घोटै करां,भगती धर धर भंग। कर कर लैवै कोड सूं,उमंगाणो मन अंग।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
25/7/2016 | पुराणा सुना हुआ *** न्याव नीत सब रंक रै,मोटां रै सब माफ। बाघ मार दै मांनवी, इण रो किं.इन्साफ?।। ~~अज्ञात |
25/7/2016 | जिण खोजा तिण पाइया,गहरै पांणी पैठ। जो बौरा बूडन डरा, रह्या किनारै बैठ।। ~~कबीर |
25/7/2016 | 🌺परसे बिना प्रबीन🌺 *** नीर तीर तलफत पर्यो,धीर न धरियत मीन। निकट तऊ पल है बिकट, परसे बिनां प्रबीन।।१ ग्रीषम गिर लागे जरन,सरवर.निकट पुलीन। बूझैगो कैसे बिपिन, परसे बिना प्रबीन।।२ निकट जडी मुहरा धरै,काम भुजंग डस कीन। विष व्याप्यौ उतरत नहीं,परसे बिना प्रबीन।।३ भोजन लाये थार भर,कर पकवान नवीन। तऊ छुधा भांजत नही,परसे बिना प्रबीन।।४ केसर चंदन कुमकुमा,भरे कटोरे तीन। अंग रंग लागत नहीं, परसे बिना प्रबीन।।५ प्याले भर धरियत निकट,सुरा सरस अति कीन। तऊ केफ आवत नहीं, परसे बिना प्रबीन।।६ अमृत को भाजन निकट,भर्यो धर्यो नहीं पीन। यों दखत अमर न भये,परसे बिना प्रबीन।।७ गंगा जमुना सरसती,लहर त्रिवेणी लीन। निकट गये पातक रहै,परसे बिनां प्रबीन।।८ श्री मंडल बीना मुरज,धरे सकल रस भीन। मधुरे स्वर बाजत नहीं,परसे बिना प्रबीन।।९ लोह पुंज इत को धर्यो,इत पारसमनि दीन। सो कंचन कैसे बनें,परसे बिनां प्रबीन।। प्रबीन सागर से ~~अज्ञात |
25/7/2016 | सांची कविता शोडसी,कवी पचीसौ कंथ। सबद भाव री सेज पर, मधु रजनी माणंत।।कविता मन संवेदना,चुभ चुभ करती चोट। घाव बिना घायल करै,घट घट में विस्फोट।। कविराजा!खेती करौ,खरी सबद रे खाद। खुद खुद री कविता लणौ,अभिनव भाव इजाद।। कविता कवि मन दीकरी, परणाई परदेस। अरज करै है आसियौ, रखै लगावौ ठेस।। कविता कवि मन दीकरी,परणी पुस्तक जाय। मांणी भोगी पाठकां, सर्जक बस निरुपाय।। साशन हंदौ सांड जद,खोटा खेलै खेल। कवि कविता रै कोरडै,निरभय जडै नकेल।। कलम!बलम कागद सखी,प्रेम.ह्रदय रा भाव। जिण रो संप्रेषण करै,वा कासद कविराव।। शबद मंत्र री साधना, प्रणव भाव ले पूत। कवि अहनिश करतौ रहै,आखरियौ अवधूत।। भाव भरी अवगाह ले ,नीरमल़ चंगै नीर। जग मैं कविता जाह्नवी,साजौ करै शरीर।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
24/7/2016 | रतनू साहब ने सावन में.मुझको संबोधित करके लिखा *** बरसा मे नरसा कहे. तिया मति तरसाव। रुत जावे रलियामणी. अब तो बेरण आव।। ~~मोहन सिंह रतनू |
24/7/2016 | सावण मास सुहावणो,पगां बिलुम्बी गार बनां बिलुम्बी बेलडी,नरां विलुम्बी नार ~~अज्ञात |
24/7/2016 | सावण सुखद सुहावणो,मन भावण मेहमंत। सावण मे मत संचरो,कामण बरजै कंत ~~अज्ञात |
24/7/2016 | सावण मास सुहावणो,लागी लडझड लूम तिण रुत ही आसव तणी,सोरभ न ले सूम।। ~~बांकीदास जी आशिया |
24/7/2016 | सावण मास सुहावणो लागी झडियो लोर आलीजा घर आवजे कालजिये री कोर ~~अज्ञात |
24/7/2016 | सावण मास सुहावणो. तरसाजो मत तीज। हिय मोंही हलचल हुई ब्योम चमंकत बीज ~~मोहन सिंह रतनू |
24/7/2016 | पाहड पाखर पैरिया. खाखरिया हरियाह। ठाकरिया घर आवजे,सरवरिया भरियाह ~~अज्ञात |
24/7/2016 | रमेश पारेख का शेर.एस के लांगा साहब के पोस्ट करने पर *** શબ્દની બેડી પડી છે જીભમાં શું બોલીએ, ને તમે સમજી શકો નહીં મૌનમાં, શું બોલીએ? - રમેશ પારેખ पडी सबद री सांकल़ां, सखी! अमीणी जीह। समजै नी थूं मौन नें, करणों म्हारै कींह।। रमेश पारेख की कविता का राजस्थानी भाव.,लांगा सर ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
24/7/2016 | शबदोनें सरदी भयी, करै भाव नी काम।। मेट आय थूं मांदगी, पिला दरस रो जाम।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
23/7/2016 | पिया !जिया रो प्यार थूं,हरै हिया रो द्वंद। नाम लियां निरभय किया, दिया सदा आणंद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
23/7/2016 | "साजण आया हे सखी!,किण थांनैं कहियाह?"। रायचँपा रा फूल ज्यूं,महलां महमहियाह। जा ए दासी महल में,गहरौ दिवलौ जोय। हगमग गल़ियारा हुवा,सकै क साजण होय!।। आयौ घन त्यूं ही सखी!,मन चायो तन साज। आयौ धण रो सायबौ,करण सुमंगल़ काज।। आजूणौ धन दीहडौ,सायब रो मुख दीट्ठ। माथै भार उल़थ्थियौ,आंख्यां अमी पईट्ठ।। जिणनूं सपनै जोवती,प्रगट भया पिव आय। डरती आंख न मूंदवूं,मत सपनौ हुय जाय।। सजण मिल्या मन ऊमग्यौ,औगण सै गल़ियाह। सूका था सो पालव्या,पालविया फल़ियाह।। पिया नैण देखी तिया,मूंदै रीझ अणंद। अब दोऊ साचा हुवा,अंबुज-द्रग,मुख-चंद्र।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | पुराना *** लालां किया बिछावणा, हीरां बांधी पाज। कांटै मोती पाविया, हेम गरीब नवाज।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | 'हे हरियाली आंबली,मोती लूंब रईह। इथीये लाखो ऊतरयो,(ज्येनां)कितियक वार थईह?'' लाखे सिरखा लख बुवा,उनड़ सरीखा अठ्ठ। हेम हेड़ाउ सारखो,(,कोई) बूवो नहीं इण वट्ट।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | फकीर.वाली कविता पर *** फीकर कीन फकीर को, जीकर कीनो जोर। अखूँ ज कीकर आसियो, चावो कव चितचोर।। ~~डा. गजादान चारण "शक्तिसुत" |
22/7/2016 | अति उत्तम अनुप्रास, विगत कथ खास वखाणै। वाल्हो मन विश्वास, उरां अपणास सु आणै। बीदग कुळ री बाण, आण पहिचाण अमामी। जिणनै पुरसल जाण, लिखै रख हेत ललामी। सुत-केशव गिरधर सकव, ललित तिहारी लेखनी। आसावत मन अंजसै, दिव्य नव्य तव देखनी।। ~~डा. गजादान चारण "शक्तिसुत" |
22/7/2016 | रंग रामा रंग लछमणा, रंग दशरथ रा कँवरा। भुज रावण रा भांगिया भिड़ दोनू भँवरा।। रंग रामा रंग लिछमणा, रंग दशरद रा बेटाह। लंका लूटी सोवणी, कर कर आखेटाह।। गिण नही पावै गंग री, ज्यू कोई लहर तरंग। अनन्त प्रवाड़ा आपरा, रंग माँ करणी रंग।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | अफसर मिळिया ओपता ,दुनिया दीठी दास हुई न थारी होड ही,,कव ऊजळ"कैलाश" ।। ~~ जी.डी.बारहठ |
22/7/2016 | दिल मोंही राखी दया. मुख मोंही मिठियास। सुकरत कर संसार मे. करग्यो नाम कैलाश। ~~मोहन सिंह रतनू |
22/7/2016 | चारण नै रजपूत कुल़,(जेरी)अंबा पूरै आस। होई नचिती बीसहथ,करनी दे कैल़ास।। ~~देवकरणजी इंदोकली |
22/7/2016 | सूरज को प्यारी किरण,और चांदनी चंद्र। फूलों को खुशबू लगे, हम को तुम नँदनंद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/7/2016 | सिंदुर तेला सूरमा,रे चेला रघुराव। हेला कर कर हारियौ, दे ला कद दरसाव।। रघुनंदन रे नित ह्रदय, अंजनीनंदन आप। वंदन इण सूं विकट भट, गंजण भंजण पाप।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/7/2016 | मम्मी पापा मुलक मे,तीरथ व्रत तमाम। इणरी सुभ आसीस सू,सुधर जाय सह काम। ~~मोहन सिंह रतनू |
22/7/2016 | रे !अनुरंगा राम रा, समदर लंघा सूर। बजरंगा वड विक्रमी, दंगा सूं रख दूर।। माल़ा धरै मँदार री, व्हाला घण रघुवीर। तल काल़ा सिंदूर तन,सोहत तेल शरीर।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/7/2016 | जस डंका लंका बजा,लड वंका लंगूर। पूजाणौ सारी पृथी, महावीर मशहूर।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
22/7/2016 | हनुमान जी रा रंग रा दूहा *** अँग बजरंगा ऊपरै,सदा सुरंगा साज। समद उलंघा पवनसुत,रँग लंघा महाराज।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | शिव रा रंग दूहा *** भाल भल़क्कै चन्द्रमा,जटा खल़क्कै गंग। अरधंगा राजै उमा,रँग भूतेसर रंग।। चख ज्वाल़ा गजपट चरम,गल़ै भुजँग सिर गंग। भाल चंद्र लेपन भसम,रिधू अजोनी रंग।। जोग ध्यांन साजै जबर,पारवती रो पीव। अमलां में दीजै इधक, सिव नें रंग सदीव।। भसमी अँग अत भँग भखै,गल़ै पनँग सिर गंग। संग लियां अरधँग सदा,रहत उमँग सिव रंग।। अमलां चख चोल़ा इधक,नैण झकोल़ा नेस। बैठौ सिध टोल़ा बिचै,भोल़ा रंग भूतेस।। ~~अज्ञात |
22/7/2016 | कुल़ रावण रो खय कियौ,सुर नर नाग सनाथ। तोनै नृप दसरथ तनय,रंग रंग रघुनाथ।। मेघनाथ नें मारियौ,सर सूं वेध सधीर। रंग हो भाई रांम रा,वंका लिछमण वीर।। ~~अज्ञात |
21/7/2016 | महिपत नामी माढ रो, हो रावल हरराज। प्रीत प्रघल़ धर पूजिया,किया सिरै कविराज।।1 अंत वेल़ा उण अधपति, अखिया वचन अमोल। भल सुत मानै भीमड़ा, ,तुलै नै ताकव तोल।।1 गढ री चिंता गढपति,भल मत करजै भीम। ऐह रही घर आंपणै,कवियां प्रीत कदीम।।3 भला निभाया भीमड़ै,बाप तणा थिर बोल। रेणव रावल़ राखिया,अधपत मान अमोल।।4 भली रखी नित भीमड़ै,पणधर पातां प्रीत। रँगधर जादम राखिया,तन रा कर ताईत।।5 इणी गादी रै ऊपरै,ऐह हुवो अमरेस। चुण चुण अरियण चारणां,रावल़ दीधी रेस।।6 तेजल वो रामै तणो,जबर हुवो जदुराण। चढ अस वैर चितारियो,पातां रो पिंड पाण।।7 रूठो भड़ रामैण रो, केव्या रै सिर काल़। सधर पातां रो वैर सत,वरधर आयो वाल़।।8 तटक जवन सिर तोड़ियो, तरवारां तेजल्ल। अमर करी धर ऊपरै,गहर जदू ऐ गल्ल।।9 क्रमशः गिरधरदान रतनू दासोड़ी ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
21/7/2016 | प्रीतम कामणगारियां थळ थळ बादळियांह। घण बरसन्तई सूकियां,लूसूँ पांगुरियाँह।। बाजरियाँ हरियालियां बिचि बिचि बेलां फूल। जउ भरि बूठउ भाद्रवउ,मारू देश अमूल।। ~~कुशल लाभ |
21/7/2016 | सावण चालै साहिबा,घटा न उपड़ी गांम। वल़ण करै मत वाटड़ी,करजै ठायै काम।। सावण चालै साहिबा,(जे) गुण री नहीं गिनार। तस्वीरां रूपां तणी,निरभै बैठ निहार।। मह उडिया अब मोरिया,धर नीं झरणा धार। खड़ी बापड़ी खांणिया,निहचल़ अरबद नार।। सोनी जौहरी साह सुं,मन भर लीधो माल। रीझी रंकां राधका,निसचै किया निहाल।। वासव जबरा बांधिया,आभ मेघ अगराज। नह वरसै,नह आंधियां,रांध लिया सुरराज।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
21/7/2016 | लेन्स नैण सूं लाडला, पलक शटर कर बंद। फोटू खोंचूं फूटरो, स्माईल करो सुखकंद।। ©वैतालिक 😀😀😀😀😀😀🙏🙏🙏🙏 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
20/7/2016 | पुराणो *** भूल गई राग रंग,भूल गई जकड़ी। तीन चीज याद रही,लूण पाणी लकड़ी।। ~~अज्ञात |
20/7/2016 | कविता कविराजा तणी,मह पड़ी यूं मंद। मनहरणी तरुणी मुदै,छता रचै छल़ छंद।। कविराजा कविता तजी,उर में नहीं अणंद। विलल़ै विटल़ै बगत मे,छता सुणै कुण छंद।। कवियां कविता परहरी,फटक देखियां फंद। आप चहै यूं ऊबरण,छता रचै किम छंद।। वहा वहा रै कविजणां,हिंवड़ो लेय हिलोर। सांवण सुरँगो नामरो,मस्त न दीठा मोर।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
20/7/2016 | कविता री रस कामणी, घणकंठी गुणवेल। बैठी क्यूं थूं बारणै, आव हियै अलबेल।। आवै तो आदर करूं,पलक बिछा दूं प्हैल। रुंख- देह ; रहजै कवित,नित बण नागरवेल।। भाव घाव चित में करै,गढी शबद गजवेल। कविता है किरपांण इक,खेल सकै तो खेल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
20/7/2016 | चंदा थारी चांदणी,कीकर पडगी मंद? गोख खडी छै गोरडी, निरखण नें नँद नंद।। "कोयल किम कूकै नही?","पंचम सुर क्यूं मंद?' गीत उगेरै गोरडी,रीझावण राजंद।। कविराजा कविता कठै?,छोड दिया क्यूं छंद? मनहर मत्तगयंदगति,निरखै है नँद नंद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
20/7/2016 | बाघेजी बिन कोटडौ, लागै मौ अहडोह। जानी घरै सिधाविया,जाणै मांडहडोह।। कोटडियौ बाघौ कठै, आसो डाभी आज।। गाईजै जस गीतडा, गया भीतडा भाज।। हाटां मैं हडताल,भठियाँ मद सूंघो भयो। कूकै घणा कलाल़,बिखमौ भागौ बाघजी।। ~~आशाजी रोहडिया |
20/7/2016 | भोम परख्खो हे नरां,मती परख्खो बींद। भू बिन भला न नीपजै,त्रण,कण,तुरी नरिंद।। धन ,जोबन अर ठाकरी,ता ऊपर अविवेक। ऐ च्यारू भेल़ा हुआ, अनरथ करै अनेक।। मद विद्या धन मांन,ओछां रै उकल़ै अवस। आधण रै उनमांन,रहै स विरला राजिया।। काछ द्रढा,कर वरसणा,मन चंगा मुख मिट्ठ। रण सूरा जग वल्लभा,सो जग विरला दीट्ठ।। यों रहीम सुख होत है,उपकारी के अंग। बांटण वारै के लगै,ज्यूं मेंहदी को रंग।। ~~अज्ञात |
20/7/2016 | रिध सिध देवण रैणवां,कवियां सारण काज। अमलां वेल़ा आपनें,रँग करनी महाराज।। तौ सरणै खटव्रण तणी,लोहडियाली लाज। आवड करनी आपनें,रँग इधका महाराज।। घमकै पावां घूघरा,डेरू हाथ डलाय। चामंड वाल़ा चेलका ,रंग हो खेतल राय।। रैण प्रभातां नित रमैं,असुरां भीडण अंग। अमलां वेल़ा आपनें,राजा सूरज रंग।। कीध खयंकर लंक रो,जीत भयंकर जंग। अमल लियंकर आपनें,रघुवर किंकर रंग।। लंक दुझाल़ी लंघडा,सीता लायौ शोध। अवध पती रँग आपियौ,जिण वेल़ा रो जोध।। बजर कछोटौ बजर अँग,बजर गुरज बजरंग। भुज रावण रा भांगिया,रँग हो लांघा रंग।। ग्रहण दडी ज्यों द्रोण गिर,लंक विधूसण थान। अमलां रा रंग आपनें ,महावीर हडुमान।। ~~अज्ञात |
20/7/2016 | सखी अमीणो साहिबो,ओ तो दारू दास। वेस लाई म्हे पी'र सुं,बेच पिया बदमास।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
20/7/2016 | मोहन सिंह जी रतनू.पर.लिखा *** अगरज ही अखियै गुरू,थिगतै अँगुल़ी थाम। मन सुध तोनै मोहना,पुणै गीध परणाम।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
20/7/2016 | तूड़ी तिणखा नह तरां,कियो न एको कोर।। चारो रिसवत चरण नै,ढींक मराया ढोर सुत पकड़ीज्यो सूक में,जामण कूकी जोर। बूच मराया बावल़ी,हाय हरामीखोर।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
20/7/2016 | सत संगत भागीरथी, नर कोइ ले नहाय । काग पलट कोयल बने, बक हंसा बण जाय ।। ~~हिम्मत.सिह कविया नोंख |
20/7/2016 | प्रेषक जगमाल ज्वाला *** गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं। उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं॥ ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास। गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास॥ पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान। ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान॥ कहै कबीर तजि भरत को, नन्हा है कर पीव। तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव॥ सोई सोई नाच नचाइये, जेहि निबहे गुरु प्रेम। कहै कबीर गुरु प्रेम बिन, कितहुं कुशल नहिं क्षेम॥ तबही गुरु प्रिय बैन कहि, शीष बढ़ी चित प्रीत। ते कहिये गुरु सनमुखां, कबहूँ न दीजै पीठ॥ अबुध सुबुध सुत मातु पितु, सबहिं करै प्रतिपाल। अपनी ओर निबाहिये, सिख सुत गहि निज चाल॥ करै दूरी अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदये। बलिहारी वे गुरु की हँस उबारि जु लेय॥ साबुन बिचारा क्या करे, गाँठे वाखे मोय। जल सो अरक्षा परस नहिं, क्यों कर ऊजल होय॥ राजा की चोरी करे, रहै रंक की ओट। कहै कबीर क्यों उबरै, काल कठिन की चोट॥ सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड। तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मणड॥ सतगुरु तो सतभाव है, जो अस भेद बताय। धन्य शिष धन भाग तिहि, जो ऐसी सुधि पाय॥ सतगुरु मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय। भ्रम का भाँडा तोड़ी करि, रहै निराला होय॥ मनहिं दिया निज सब दिया, मन से संग शरीर। अब देवे को क्या रहा, यो कथि कहहिं कबीर॥ जेही खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव। कहैं कबीर सुन साधवा, करू सतगुरु की सेव॥ जग में युक्ति अनूप है, साधु संग गुरु ज्ञान। तामें निपट अनूप है, सतगुरु लगा कान॥ डूबा औधर न तरै, मोहिं अंदेशा होय। लोभ नदी की धार में, कहा पड़ा नर सोय॥ केते पढी गुनि पचि मुए, योग यज्ञ तप लाय। बिन सतगुरु पावै नहीं, कोटिन करे उपाय॥ सतगुरु खोजे संत, जीव काज को चाहहु। मेटो भव के अंक, आवा गवन निवारहु॥ यह सतगुरु उपदेश है, जो माने परतीत। करम भरम सब त्यागि के, चलै सो भव जलजीत॥ जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध। अन्धे को अन्धा मिला, पड़ा काल के फन्द॥ जनीता बुझा नहीं बुझि, लिया नहीं गौन। अंधे को अंधा मिला, राह बतावे कौन॥ ~~कबीर |
20/7/2016 | गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर। आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥ ~~कबीर |
20/7/2016 | गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत। प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत॥ ~~कबीर |
20/7/2016 | गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं। कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥८॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर। एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥६॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान। बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | गुरु की आज्ञा आवता, गुरु की आज्ञा जाय। कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान। बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | बिन गुरु बुद्धि न बापरे, बिन गुरु मिले न बोध। बिन गुरु उगत न ऊपजे, बिन गुरु सधे न सोध। बिन गुरु सत्त न सूझहिं, बिन गुरु कहाँ बिनान। कर्मयोग बिन गुरु कहाँ, धरम मरम कहं ध्यान। गजराज कहै गुणियन गुणो, सद्गुरु ही सुखधाम है। गुरु रीझ्यां हरि रीझिहे, सद्गुरु तीर्थ तमाम है।। ~~डा. गजादान चारण "शक्तिसुत" |
19/7/2016 | तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार । सदगुरू मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार ।। ~~कबीर |
19/7/2016 | गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया। *** गुरु समान दाता नहीं, याचक शिष्य समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ ~~अज्ञात |
19/7/2016 | गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है। *** गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ ~~अज्ञात |
19/7/2016 | कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म - जन्मान्तरो की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं। *** कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय। जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥ ~~अज्ञात |
19/7/2016 | गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार - मारकर और गढ़ - गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं। *** गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट। अन्दर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥ ~~कबीर |
19/7/2016 | आप सभी को गुरू पुर्णिमा की हार्दिक बधाई। जय गुरूदेव। *** सब धरती कागद करूं,लेखण सब बनराय। सात समद की मसि.करूं,गुरू गुण लिखा न जाय। ~~कबीर |
18/7/2016 | साजन म्हारो हे सखी,मरुधर के रो माट। लू कारण लिपटाय लू,काळज करे कपाट।1। साजन म्हारो हे सखी,भतवारण रो भात। टुकड़ा हिक मों ताजगी,बरणऊ कीकर बात। ~~ज्वाला कृत |
18/7/2016 | राजस्थानी संस्कृति के सोरभ का अनुपम दोहा.. पाणी पुटक न जावजो ( चाहे) लोही जावजो लक्ख। सिर सगलो भल जावजो( पण) नाक न जाजो नक्ख ~~अज्ञात |
18/7/2016 | सखी अमीणो सायबो. पूरो अडियल पंच। गिनर करे नह गांव रा ( तोई,) माडे चढजा मंच।। ~~मोहन सिंह रतनू |
18/7/2016 | सखी अमीणो साहिबो !गिरधरदान रतनू दास़ोड़ी कविराजा बांकीदासजी री अमर ओल़ी माथै कीं दूहा- सखी अमीणो साहिबो,जुथ सथ पीवै जाम। पड़ इण फंदै पांतर्यो,नारायण रो नाम।।1 सखी अमीणो साहिबो,धुर चित आसव धार। जमियो रह नित जाजमां,विठल़ प्रेम वीसार।।2 सखी अमीणो साहिबो,प्रेमी बोतल पेख। रैवै हर सूं रूठियो,छाती घर री छेक।।3 सखी अमीणो साहिबो,जीमै आपू जाण। ढोवै जिंदगी ढोरपण,पिंड रो खोवै पाण।।4 सखी अमीणो साहिबो,ओ तो लेय अमल्ल। झेरां मांय झूलायदी,गोविंद वाल़ी गल्ल।।5 सखी अमीणो साहिबो,विजया घोटै वीर। बेसुध रैवै बावल़ो,रटै नहीं रघुवीर।।6 सखी अमीणो साहिबो,गैलो गांजेड़ीह। व्यापी सुन आ वदन में,बांधी पग बेड़ीह।।7 सखी अमीणो साहिबो,आल़सियो ई ऊठ। होको भर नित हाथ सूं,जग री खांचै झूठ।।8 सखी अमीणो साहिबो,रिदै न रघुवर रट्ट। दिन पूरै ओ दाल़दी,चिलमां भरै चठट्ठ।।9 सखी अमीणो साहिबो,हर सूं हेत न हेर। कोरी मारै कीड़ियां,फूंक बीड़ियां फेर।।10 सखी अमीणो साहिबो,गुण ना गोविंद गाय। काठा भर -भर कोपड़ा,चोसै नितरी चाय।।11 सखी अमीणो साहिबो,जरदो खावै जाण। राम भूलो ने रोग ले,अहर निसा अणजाण।।12 सखी अमीणो साहिबो,ठाली आल़स ठाम। पता रमै नित खोय पत,रत नी होवै राम।।13 सखी अमीणो साहिबो,निस-दिन रैय निकाम। गप्पां मारै गांम में,सिमरै नाही साम।।14 सखी अमीणो साहिबो,हांडै नितरो हेर। करै नहीं मुख कालियो,टीकम वाल़ी टेर।।15 सखी अमीणो साहिबो,राखै घट में रीस। जल़ै मूढ नित जोयलो,जपै नहीं जगदीश।।16 सखी अमीणो साहिबो,जोबन फूल्यो जोय। सही भूलियो सार री,दिन आखर तो दोय।।17 सखी अमीणो साहिबो,कर र्यो कुलल़ा काम। भोदू ओ तो भूलियो,रटण रिदै इम राम।।18 सखी अमीणो साहिबो,हर भूलो हकनाक। डांडी बैठो देखलै,नर नारायण नाक।।19 सखी अमीणो साहिबो ,सँकतो लेवै सास। व्याव कियो रुजगार बिन,नितरा भरै निसास।।20 सखी अमीणो साहिबो,मही नै भारां मार। लुकियो रह नित लूगड़ी,पचै न लैण पगार।। ~~गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" |
18/7/2016 | मद विद्या धन मांन,ओछा रै उकल़ै अवस। आधण रै उनमांन,रहै स विरला राजिया।। ~~किरपाराम जी खिडीया |
18/7/2016 | दूहा दूकडा दाम,जोडण वाल़ा जोडसी। ब्यावण तणो विराम,बांझ न जाणै बींझरा। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | हरिरस *** जाड्य टल़ै मन मल़ गल़ै,निरमल थायै देह। भाग होय तो भागवत,सांभल़ियै श्रवणेह।। ~~इसरदासजी बारहठ |
18/7/2016 | जो जल़ बाढै नाव में,घर में बाढै दाम। दोन्यूं हाथ उलीचियै,यही सुजन को काम। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | सखी अमीणो सायबो. पूरो अडियल पंच। गिनर करे नह गांव रा ( तोई,) माडे चढजा मंच।। ~~मोहन सिंह रतनू |
18/7/2016 | नागजी रा सोरठा *** खडगधार पर काय,चाले तो चलणों सहल। मुशकल जग रे मांय,नेह निभाणों नागजी। जोडै ज्यूंही जोड,बिणजारां रा ब्याज ज्यूं। तनक जोड मत तोड,नातो तांतौ नागजी। चलतां हलतां चीत,सूता बैठा सारखी। पडै न जूनी प्रीत,नेंण लग्यौडी नागजी। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | उजल़ी जेठवा के सोरठे *** टोल़ां सूं.टल़ताँह,हिरणां मन माठौ हुवै। वाल्हा बिछडताँह,जिणौ किण विध जेठवा।। वीणा जंतर तार,थें छेड्या उण राग रा। गुण नें झुरूं गँवार,जात न पूछूं जेठवा। आँख्यां उणियारोह,निपट नँहीं न्यारो हुवै। प्रीतम मौ प्यारोह,जोती फिरती जेठवा ~~अज्ञात |
18/7/2016 | रतलाम नरेश बलवंत सिंह ने अपने कोठारी भैरव को संबोधित सोरठे *** नगुणां मानव नीच,सगुणा रे मन संकवै। बगुला रे मन बीच,भावै हँस न भैरिया।। रहणा इक रंगाह,कहणा नँह कूडा कथन। चित ऊजल़ चंगाह,भला ज कोई भैरिया।। सती जती कव सूर,मिहप मिंत पंडित मुगध। जांणै भेद जरूर,भेर हुआ सूं भैरिया।। मोताहल़ मुकताह,पहरायाँ मेल़ न पडै। गज री झुल गधाह,भुंडी लागै भेरिया।। सहै वडो सिरदार,किता चुगल चाडी करे। हाथी गेल हजार, भसै गँडक कई भैरिया। ~~रतलाम नरेश बलवंत सिंह जी |
18/7/2016 | सिंह *** पाड घणां घर पातल़ा,आयौ थह में आप। सुतौ नाहर नींद सुख,पहरौ दे परताप।। ~~बांकीदास आशिया |
18/7/2016 | जिण मारग केहर बुआ,रज लागी तरणाँह। वै खड ऊभा सूखसी,चरसी नी हरणाँह।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | सिंह गमन ,सत पुरुष वच,कदल़ी फल इक वार। तिरिया तेल हमीर हठ,चढै न दूजी बार।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | चाहत मुझकौ है नहीं,मिलै सल्तनत ताज। हमें फकीरी भा गई, मौला रखियौ लाज। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | अन्योक्ती तुलना हाथी और सिंह पर *** हेकण वन्न वसंतडा,एवड अंतर कांय। सिंह कवड्डी ना लहही,गयवर.लक्खी विकाय।। गयवर गल़े गल़त्थई,जँह खैचही तँह जाय। सिंह गल़त्थई जो सहही,तौ दह लक्खी बिकाय।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | हाला झाला रा कुंडल़िया *** केहरि केस भमंग मणि,सरणाई सुहडाँह। सती पयोहर कृपण धन,पडसी हाथ मुवाँह।। ~~ईसरदास बारहठ |
18/7/2016 | सिंह छतीसी *** सिंहा देश विदेश सम,सिंहा किसा वतन्न। सिंह जिका वन संचरै,सो सिंहा रा वन्न।। ~~बांकीदास आशिया |
18/7/2016 | धड धरती,पग पागडै,गिद्धां आंत गटक्क। अजां न छंडै सायबो,मूँछां तणी मटक्क।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | हाला झाला रा कुंडल़िया *** ग्रीझणियां रत नाल़ियाँ,सिर बैठी सुहडाँह। चोंच न बावै डरपती,करडी निजर भडाँह।। ~~इसरदास जी बारहठ |
18/7/2016 | सिह छतीसी *** सादुल़ो आपां समौ,बियौ न कोई गिणंत। हाक पराई किम सहै,घण गाजियै मरंत।। ~~बांकीदास आशिया |
18/7/2016 | सिंह पर *** अंबर री अग्राज सूं,केहर खीज करंत। हाक धरा ऊपर हुवै,केम सहै बलवंत।। ~~बांकीदास आशिया |
18/7/2016 | केहर मरूं कल़ाइयाँ,रोहर रातडियाँह। हेकण हाथां ही हणै,दंत दुहत्था जाँह।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | बादल़ रो दल़ लेय नें, बूंद बरच्छी काढ। काल़ -प्रसण रो काल़ बण,आछौ लडै अषाढ।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | मांन जसो मंडण" *** दूहै सूं दस कोस,राजा अन अल़गा रहै। दियै तिका नूं दोस,दूहै तूं गज गांम दै।। ~~बांकी दास जी आशिया" |
18/7/2016 | करी हुती जल़ पीण कूं,कनक हुतौ शिवकाज। करी कनक घर घर किया,मांन सिंह महाराज।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | जोध बसायौ जोधपुर, ब्रज कीन्हौ ब्रजपाल। लखनेउ काशी दिली,मांन कियौ नेपाल।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | मांदौ जस महिलोय,पडियौ दत कीरत पखै। हरी धनंतर होय,बैठौ कीधौ बांणवत।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | गढ रहिया ना गढपती,रहै न सकल जहान। "मान"कहै दोनूं रहै,नेकी बदी निदान।। ~~महाराजा मान सिंह |
18/7/2016 | जलमै सो मरसी खरा,कहा राव कँह रंक। जस पीछै रह जायगो,कै रह जाय कलंक।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | नर सैंणां सूं व्है नहीं,निपट अनोखा नाम। मरणा,देणा,मारणा,काला रा ऐ काम। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | का मुगधा का मध तिया,का प्रोढा सुण कंत। जो जिणरे मन में बसै, सो सरूप गुणवंत।।1 जा को मन जिण सूं रमें,ताको मन सो चंग। अवर कुसम सब परहर्या,हर घत्तूरै रंग।।2 कँह कोयल कँह अंबवन,कँह दादुर कँह मेह। बिसार्या नँह बीसरै,ज्यां रो ज्यां सूं.नेह।।3 भाव घटै नह अणमिल्यां,जाकी उत्तम लाग। जुग जुग भल जल़ में रहै,पथरी तजै न आग।।4 प्रीत जहाँ परदो किसौ,पडदौ वठै न प्रीत। प्रीत बीच परदौ हुवै, आ ही वडी अनीत।।5 प्रीत प्रीत सब ही करै,कहा कर्यै मैं जात। करणौ और निबाहणौ,बडी कठण आ बात।6 खोटी दमडी ना चले,खोटी चले न.प्रीत। कहा भयो जो मन मिल़्यौ,जो न मिलै परतीत।।7 मुख देख्यां सूं.किं हुवै,जो.नँह हिवडै.हेज। सूरज उग्यां किं हुवै,जो नँह.अंबर तेज।।8 जल़ थल़ महियल़.हूं फिरी,प्रेम रतन के काज। तिहु बिन तजे न पाइयै,नवल लोभ डर काज।।9 प्राचीन संकलित ~~अज्ञात |
18/7/2016 | कुम कुम मय कर सिर धरो, आई मां अवदात। बाळक री औ बीणती,सदा रहिजौ साथ।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | करूणामयि करूणा करो, आननि अरुण प्रभात। दारूण संकट दास रा, मेटौ सोनल मात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | संकट काटण सेवगां, दूथी रा दिन रात। वरद हाथ रख बीसहथ, प्रणमूं मात प्रभात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | सूखी पत्ती को हुआ, आज पवन से प्यार। तोडा रिश्ता डाल से,छोडा बाबुल द्वार।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | बिन तोडे ,छू छेडता, लेता चुरा सुगंध। फूलों का लूटै मजा, पवन बडा स्वच्छंद।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
18/7/2016 | डाढाल़ै इण डौल़ हूं,मार्यो हेकण मल्ल। हाडौती जाहर हुई,गिड नाहर रण गल्ल।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | वाघ करै नह कोट वन, वाघ करै नँह वाड। वाघां री वधवाव सूं,झिलै अंगजी झाड।। ~~बांकीदास आसिया |
18/7/2016 | मेंगल़ एथी आव मत,वाघां केरी वाट। साप अंगूठा मेल़ ज्यूं,कदियक हुसी कुघाट।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | हाडां रै सालै हियै,डालै सिर डाढाल़। घालै कर मूंछां घणा,कवण हकालै काल़।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | खुल झंडा वज्जै तबल,रज अंबर धर छाय। वा खूबी समहर.तणी,सूरां घणी सुहाय।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | नाहर जो गाजिश नहीं,ऐ गज वहतां ईख। सर सर कमल़ सुगंध री,भमर न मांगै भीख।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात। दूल्हा दूलहिन मिल गये, फीकी पडी बरात।। ~~कबीर |
18/7/2016 | लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात। दूल्हा दूलहिन मिल गये, फीकी पडी बरात।। ~~कबीर |
18/7/2016 | आज अटारी ऊपरै,उलट घटा री आव। विरह भटारी स्यांम विन, वहै कटारी घाव।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | अटपट वात ज प्रेम की,वरणत वणै न वैण। चरण धरै जित लाडली, कँवर धरै त्यां नैण।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | साजण चंदण बावनौ,सीतल़ वास सुवास। उर भीतर भीनौ रहै,छह रित बारह मास।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | लोक साहित्यिक दूहा *** चौपड खेलूं पीव सूं,बाजि लगाऊं जीव। जे हारूं.तौ पीव की,जो जीतूं तो पीव।।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | म्है मगरै रा मोरिया,काकर चूण करंत। रुत आयां बोलां नहीं,हीयो फूट मरंत।। ~~अज्ञात |
18/7/2016 | कूड़ी साची कैवणी ,है नहीं म्हांरै हाथ। कवि समै रो कैमरो,विश्व बात विख्यात।। ~~देवकरणजी इंदोकली |
18/7/2016 | रमझम पाखर रोल़ती,घम घम पौडां घम्म। धम धम पाबू धीर पै,खम खम घोडी खम्म।। ~~मोडजी आशिया पाबू प्रकाश |
18/7/2016 | जल गिणै न को थल़ गिणै,रोही गिणै न रन्न। धरती आवै धूंसता,धिन रे घोडा धन्न।। ~~मोडजी आशिया कृत पाबू प्रकाश से |
18/7/2016 | आसमांन री वा परी,औ अवनी रो चंद। दुलही श्री राधा दुलह,गोकुल ज्यूं गोविंद। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | चडिया पाल़ा चौतरफ,खडिया हल़ खुरसाण। लडिया सिख लाहौर रा,अडिया भुज असमान। एकण दिस अंगरेज रा,हेकण दिस लाहोर। मर.मिटिया मुडिया नहीं,जुडिया दल़ कर जोर।। कहिया नँह हीणा कथन, ठहिया जुध भुज ठोर। इण पुल़ सिख अंगरेज सूं,लडिया हद लाहोर। बावन वीर बुलाविया,चवसठ जोगण साथ। हूर अछर त्रिपती हुई, सिख्खां तणै भाराथ। रावां राणा रंजिया,सह थें वजो सपूत। लडिया सिख जिण विध लडौ,तौ जाणां रजपूत। कितरा सिर.कटियाक,मर मिटिया केता मरद। जद हटिया जटियाक,गोरा ई घटिया घणा। आग झडै चसमा महीं,अडै भुजा असमान।। वाहै खग माथां बिनां, वै उठ गया जवान।। दल़ फूटा दरियाव ज्यूं,जूटा जंग समाज। तूटा सिर धड तडफडै,रूठा वै महाराज।। ~~कविराजा भारतदान आशिया |
17/7/2016 | सार वहंतै सूरमा,पाछौ मत भाल़ीह। जाण अखाडै ऊठिया,दे नागा ताल़ीह।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | कंथ एकलौ थूं फिरै,किसौ विडाणौ सत्थ। साथी थारा तीन है, हियौ कटारी हत्थ।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | औ इज हिक घर आप रो,थिर है. थाप उथाप।। गिण्या बादसा गादडा,पुणां रंग परताप।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | प्राणां री परवा न की,इण ध्रम.आगे आप। रे रंग आदरणा मरद,पुणां रंग परताप।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | काबुल मांय समाध ली,जप देवी रा जाप। ओल़खिया राजा अजा, वे बाबोजी आप।।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | सौ मण तो केसर उडी,सौ दस उडी गुलाल। बूबन हंदा म्हैल मैं, रातूं रम्यौ जलाल।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | भरी रूप रंग रस भरी,ल़ुल़ आवै जल़ लेण। सरवर त्यां निरखण सही, नीरज कियाक नैण। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | जलाल दोऊ हत्थडा,कै मूंछां कै मूठ। गोरी कठण पयोहरां, कै ऐराकी पूठ।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | भड वंका तीखा तुरी,दीसै नहीं दवार।। वाघ विहूणौ कोटडौ, जांण दुवागण नार। ~~आशाजी रोहडिया |
17/7/2016 | लिख थूं आखर लेश भल, दो दूहा ई दाख। साहित शबरी बेर ज्यों,चाख परख नें भाख।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | घोडा रजपूतां घसण,तोडा धुख ता ठौड। दोडा बादरसिंग दा, रंग खोडा राठौड।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | तोड हला अकबर तणा,तेग झला ता ठौड। भला करण दल़ भांजणा,रंग कला राठौड़। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | माला सांदू मर गया,दुरसा ही मर जाय। सदा नवल्ली शारदा,मरै न बूढी थाय।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | हाथी हंदा दांतडा,बारठ हंदा बोल। फिरै न पाछां फेरिया,मिल़ै न मुँहगै मोल।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | नीपजियौ मुख नाग रे,जाहर.इमरत.जोड। अमल सदा गुण आगल़ो, मिजलस हंदो मोड।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | करे सूरमा कायरां, सूरां करै सवाय। अमल जिसो भेसज अवर, दूजो नावे दाय।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | पमगां सज पाखर पडै,अडै भुजा असमांन। जुध सूरां बगतर जडै,अमल चडै रंग आंण।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | पमगां सज पाखर पडै,अडै भुजा असमांन। जुध सूरां बगतर जडै,अमल चडै रंग आंण।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | आफू जिके अरोगज्यो,रचै जिकौ रण कांम। कमल़ विहंडै केवियां,संकट भांजै साम।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | अमल अटंको ऊगियौ,दिल लागौ दोडाह। अस गघ पीठां आविया,तोडा धुखतोडाह।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | गढ ढाहण गोल़ा गिल़ण,हाथ्यां देण हमल्ल। मतवाली धण मांणतां, आजे मीत अमल्ल।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | पी खोबां मुँह पोढियौ,गहल़ी लहर गणेह। अध निद्राल़ू ऊठियौ,सिंधू.कान सुणेह।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | जरद कडी तूटै जठै,अपछर खडी तडीह। तिकण घडी अमलां तणी, नाचै नडी.नडीह।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | आम सामा भड आफल़े,भांजे केतारा भ्रम्म।। तिण वेल़ा कासब तणा, सूरज हाथ सरम्म।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | पारवती रा पूत ने,नमन करै सब देस। अमलां वेल़ां आपनें,.गाढा रंग गणेस।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | पुश्पेन्द्र जुगतावत द्वारा प्रेषित *** वांणी अंजसे वेखती, वधती गुणियण वेल उण जीहों आखर अवल, नित लूँ रूप नवेल. ~~अज्ञात |
17/7/2016 | मेहो रयो न मालदे,ईसर रयो न आस। आखरिया रैसी अमर, भाल़ चंद नै भास।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | सुरगां कवि सिधाविया अपणी उमर पाय। आखर जौ वै आखिया जाता जुगां न जाय।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | गहरौ उडै गुलाल, अरूणिम नभ सूं आप रो। वेरै माजी व्हाल, विदग जनां पर बीसहथ।। हिमगिरि थारौ हार, फटिक माळ जिम फूटरौ। नमो नमो शिव नार, विश्व प्रसूता बीसहथ।। लटां वासुकी व्याल, आभ लहरती आपरी। ललिता लोवडियाळ, वदतौ जग तौ बीसहथ।। लाल कसूंमल लोवडी, सिंदूरी नभ साज। सिर-नवलख सिरताज, बाघ बिराजी बीसहथ।। गरभ-गेह-गिगनार, आसन बैठर अंबिका। नवखँड निरखणहार,वदी हेक थूं बीसहथ।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | संकलन जी.डी.बारहठ *** घर कारज धीरा घणा ,पर कारज समरत्थ । सांई वांनै राखसी ,दे दे आडा हत्थ ।। पर वैभव दीठा दुखी ,है अणहूती बात । बीज खिवे असमांन में ,गधी च लावै लात ।। एक जलमियो कंस तो वंश रसातल जाय । एक काचरी बीज सूं सौ मण दूध फटाय ।। लागत दस मण लागगी ,पाछी मण री आस । गाडर पाळी ऊंन नै ,ऊभी चरै कपास ।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | सुण पकडै असि शारदा,रगत मसि ह्वै रंग। कागद समरांगण करै, उण डिंगल़ ने रंग।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | कन्या भ्रुण हत्या *** फूल फकत ई फूल है, ना जीवण री भूल। मती मसल़जै मावडी, ऐ कल़ियां अणमूल।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | रंग रण झूझण सूरमा, केसरिया जिण कीन।। सूंप आप उतबंग शिव, मुंण्ड माल धर दीन।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | रंग रण झूझण सूरमा, केसरिया जिण कीन।। सूंप आप उतबंग शिव, मुंण्ड माल धर दीन।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | आभा हंदी ओढणी, हेमाळो गळ हार। शेष नाग पग सांकळा, सगत सजै शिणगार।। - प्राचीन ~~अज्ञात |
17/7/2016 | कोटडियौ बाघौ कठै, आसो डाभी आज।। गाईजै जस गीतडा, गया भीतडा भाज।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | सत री सहनाणी चही,समर सलूंबर धीश। चूड़ामण मेली सिया, इण धण मेल्यौ शीश।। ~~अज्ञात |
17/7/2016 | रंग गाँवां रंग ढाणियां,रंग गढ कोट'र पोल़।। आठ प्होर चौसठ घडी, उडी छंद री छोल़।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | साहित देस समाज सू.बहे जका विपरीत। राह दिखावै रोकने. गिरधर थारा गीत।। ~~मोहन सिंह रतनू |
17/7/2016 | आ रे मेरे जोगिया, धारे भगवा भेस। दरसा रे दीदार तू, वृथा न बैठ विदेश।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | माथै छत चढ मोद सूं , उर ले क्रोड उमीद।। अखियां दरसन ब्हावरी, रोज उडीकै ईद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | दुआ कभी तुमनें किया,दिल से किया कुबूल।। पर लगता है आजकल, हमैं गई तू भूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | हो जाऔ मशहूर तो, मत होना मगरूर।। छूकर कर तू ऊँचाईयाँ, न हो स्वजन से दूर।। जीवन में मिल जाएगी,दौलत तुझै अनंत। अपनों पर याद रख,प्रेम पुरातन पंथ।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | मेन्दरसा छायण नै पाणिग्रहण संस्कार उपरांत सुखी दांपत्य जीवन री अनंत शुभकामनावां🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 *** आज कल़ायण आभ सूं, निरखण छायण नेेह।। कँवरी बण चँवरी गई, बूठौ इण सूं मेह।।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | खत पढना सपना हुआ,मिले नहीं ईमेल।। अब वाट्सएपपर रातदिन,आय मिलेअलबेल।।। |
17/7/2016 | निरख निरख निजरां थकी,सदा इक टकी राह| सखी दखी करतो सजण,करै न मौ परवाह|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | चंदा तो मंदा भया, भळहळ ऊगा भाण। छल छंदा धंधा तजे, बंदा भज भगवान। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | सखी अमीणो साहिबो,बसै दूर सौ कोस।। सुपने में अपणो सदा ,परतख जांण पडोस।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | सखी अमीणो साहिबो,ठालौ भूलौ ठोठ।। पुस्तक पढे न प्रेम री,गेलौ मांणै गोठ।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | फूल शूल जो भी बनो,बात न जाना भूल।। आखिर मिलना धूल मैं,काहै लडें फिजूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | मैं तुझ में खोया रहा, तू खूद में मशगूल।। जैसे फूल गुलाब का,खिलता है बिच शूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
17/7/2016 | याद सदा मैंनें किया,और गया तू भूल।। भली निभाई यारियां, पक्कै तिरै उसूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
1/5/2016 | नयन नेह रो मानसर, आँसु फल मुक्ताह| झुर झुर जीवूं राज कज,हंस आव चुगवाह| नैण अखाडै नेह री, धुंणीं धखती जोर| सांझ बपोरां भोर,निरखौ आयर नाथजी|| मन री हूं करस्यूं मढी,तन री धूंणी ताप| नैण अखाडै नाथ आ,पंड रा मेटौ पाप|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
25/4/2016 | कठे कठे हूं ठाकरां, कठे कठे हूं नाय| जठे जठे थे राज हो, सायद वठे सदाय|| जरकावों लठ जोर, माफ नहीं मन सूं करां| कायम रहां कठोर, नीच नरां सूं नारणा|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
20/4/2016 | हवा बेवजह दीप के, होने लगी खिलाफ| जब जल उसने तिमिर को, करना चाहा साफ|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
19/4/2016 | महावीर जयंती की सभी को शुभकामनाए. *** इन्द्रियजित जिन आप नें, करूं नमन करजोड| क्षमा , शील , तप त्याग री, रे मूरत बेजोड| जिन वंदन सिध्धार्थ-सुत,त्रिशला तनय थनेह| धर वैशाली रा धणी, नरपत थनें जपेह|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
19/4/2016 | सोहबत करो फ़कीर की, ठोकर में रख ताज| खुद ब खुद आ जाएगा,शाहों का अंदाज| उस सा ही पुरनूर तू ,उस सा रहता दूर| तू औ चंदा एक से, मन में भरै गुरूर|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
16/4/2016 | किनियांणी करणी कथी, कायम कृपा कदंब| करुणा करणी किंकरां, काटण कष्ट कुटुंब|| मंजिल री मनवार, मनसुध ह्वै तो मानता| खरा मिनख खुद्दार, कदियक रूकता काल़िया|| बीसहथी, नाहर-रथी,कथी प्रथी री राय| कमीं कांई राखी नथी,अन धन दियो सदाय|| वरदायी ,वसुधा वदी,विजया विसहथीह| वीणापाणी वेदकर, वंदन वागरथीह|| अंबा !जग-आशापुरा,सदा करूं पद सेव| वंदन हे वरदायिनी, वाहर रहौ सदैव|| अनपूरण आशापुरा,सखी-धूर्जटी जेह| वरदानी वाहर रहे,उण बिन कुण मौ छेह? कटक निवतिया कुल्लडी, वडी विरवडी देव| खडी भगत कज है खडी, सुध चित सूं बस सेव|| नरपत री नारायणी, लोवडधर रख लाज| बाई थूं बेली बनै, जल भव हाँक जहाज|| जंगल़धर नृप जोगणी, सकल देण सुख साज| किनियांणी करूणाकरा, कर नरपत रो काज|| जंगल़धर री जोगणी, रहूं भरौसे राज| नरपत करै निराश मत, मेहाई महराज|| शेखा नें मुलतान सूं, लाई राखी लाज| वरदायी है बीनती, कर म्हारौ पण काज|| करनल थां बिन कुण सुणै, अंबा! सुत आवाज| नरपत नेह निहाल़नै, कर इक छोटौ काज|| मन री सांभल़ मोगला, बाई कर झट बाल़| नरपत शिशु नादान रा, आयां संकट टाल़|| ललिता ,सफरी-लोचनी, स्वर्णाभा, सुखराश| जगगर्भा, वागीश्वरी, मन री मेट उदास|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
15/4/2016 | 🌹पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. बी के गढवी साहब के सम्मान में🌹 उनके जन्मदिन पर सादर *** दील्ली रे दरबार, डंकौ नवयुग में दियौ| अंजस उर अणपार, भलौ जनमियौ भैरवा||१ गढवी सदा गुमान, रात दिवस थारौ करे| मही परां कुल मान, भलौ बढायौ भैरवा||२ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
14/4/2016 | रामं रघुकुलवंश मणि,राघव राजिवनेण| जनकसुतावर जगतपति, सदा भगतसुखदेण|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
5/4/2016 | लहरों के विपरीत चल, बिना नाव पतवार | करता सागर पार वो, सच्चा खेवनहार|| ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
30/3/2016 | खुदा नहीं हमसे जुदा,सदा !सफर में साथ। यह है सच्चा नाखुदा,नैया पार लगात।। मैं पानी का बुलबुला,खुदा खुला आकाश। फूटा हुआ विराट मैं,मन की मिटी निराश।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
29/3/2016 | भ्रूण हत्या पर मां को संबोधित एक दोहा *** फूल फकत ही फूल है, ना जीवन री भूल। मती मसल़जै मावडी, ऐ कल़ियाँ अणमूल।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
29/3/2016 | (सरस्वती को प्रार्थना) *** भाव दीजिये भव्यतम, शुभ अक्षर के साथ। शब्द सुमन खारिज न हो, यही चाहता मात।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
28/3/2016 | बिना तोड, छू छेडता ,लेता चुरा सुगंध। फूलो से लूटै मजा, पवन सदा स्वच्छंद।। ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
26/3/2016 | साँवरिया रंगरेज नें, रंगा उन्ही के रंग। अब दूजा क्योंकर लगै,रंग हमारे अंग।।१ रे रंगरेजा बावरे, बेजा सारे रंग। मुझे चाहिए सााँवरे,अरे तुम्हारा संग।।२ मोर पंख सतरंगिया, हमनें रखा सहेज। दिखलाती हुं रंग दो,उसी रंग रंगरेज।।३ लेजा रंगरेजा मुझे,तू सपनों के देश। अपना ना कोई यहाँ,विष सम लगै बिदेश।४ ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
25/3/2016 | सूखी पत्ती को हुआ, आज पवन से प्यार। तोडा रिश्ता डाल से, छोडा बाबुल द्वार।।1 हम साकी ,बोतल हमीं ,हमीं रिन्द, मय, जाम। ठाठ हमारे शाह केे, कौन कहै नाकाम?।।2 इश्क समंदर कुद मत,रे आशिक नादान। यहाँ बडे तैराक भी,खो सकते है जान।।3 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
1/12/2015 | चंदा की मानिन्द तू, रहती हर पल दूर । मेघ- ओढनी में छिपा, लेती फिर निज - नूर॥18 खत लिखना ही है खता, पता पूछना पाप। फिर भी मैं उस शख्स का, जपता रहता जाप॥19 याद नीम का है शज़र, जिसकी ठंडी छांव। सुस्ता ले पल भर यही,दूर पिया का गांव॥20 वक्त बडा कमबख़्त है, हर पल रहता सख़्त। तोडै डाली पत्तियां ,कैसे फलै दरख़्त॥21 चोट हुई दिल पर गज़ब, बिना किए ही वार। नजर बडी जालिम लगी,व्यर्थ वैद उपचार॥22 नज़र आप की क्या लगी,हमें न खुद का भान। पंडित ,ओझा, औलिया,हुए देख हैरान॥23 नश्तर तीखे नैन है, भौहै बनी कमान। चितवन चित पर घाव कर, पल में हरती प्राण॥24 जब से मेरी आंख में,तुमने करी पनाह। ख़्वाब रोज सजने लगे,फिर पलकों की राह॥25 रेत समंदर कौडियां,शंख सीप औ ज्वार। हर शै में बस हो रहा,साजन का दीदार॥26 मन्नत का धागा सखी!,फिर बांधा इस बार। जिससे तेरी जीत हो,औ' मेरी हो हार॥27 लिखते थकती लेखनी, बोलत थकते बैण। मां तेरी महिमा महा,नरपत उचर सकै न॥28 मां हरि हर अज रूप है, सचराचर विस्तार। उसकी महिमा क्या लिखूं,वह भगवन साकार॥29 मां जननी पयपायिनी, पोषक पालक अंब। वरदायी भयहारिणी,मां ही कृपा कदंब॥30 आखर- चंपा मोगरा,कागद मांहि अपार। भरे भाव परिमळ सहित,भेजूं सुण सिरदार॥31 शबदां री सावण झडी, आखर रा घनगाढ। भेंजूं बालम भींज जो,प्रीति पढो प्रगाढ॥32 रतियां में पतियां लिखूं, बतियां बालम बांच। मन बसिया रसिया पिया,कहती थानें सांच॥33 आंसू थांसू अरज है,बार बार मत आव। ज्यांसू बिछडण ह्वै गई,उण हित भरे तळाव॥34 आंसू मत बह आंख सूं,रह पलकां री पोळ। थारै बारै नीसर्यां,छलकै सर नद छोळ॥35 आभूषण ओपै नहीं, जिणमें नही जडाव। कविता री कारीगरी, अलंकार रस भाव॥36 आंखों में बस चाहिए, तेरी ही तसवीर। खुली रखूं या बंद फिर,सुन मेरे हमगीर॥37 पलक सीप से छलकते, आसूं यह नायाब। रोज लूटाना मत सखी,इसका रखो हिसाब॥38 जब से देखा है उसे,आते दो ही ख्वाब। रंग बिरंगी तितलियां,या फिर खिला गुलाब॥39 आंसू का दरिया लिखूं,हिचकी का सैलाब। ना मुमकिन है भेजना,वही सुनहले ख्वाब॥40 छत को सदा तलाशते,हमको मिले अमीर॥ लुत्फ लिया बरसात का,जो थे मस्त फकीर॥41 ख्वाबों में बस आप से , करता हूं संवाद। लोग मानकर शायरी,देते है लख दाद॥42 मस्त कलंदर जागते ,रहते है दिन रात। खुद में खोजे है खुदा,हौले से कर बात॥43 सिसकी जिसकी थी सखी, और सखा अवसाद। आंसू की कविता लिखूं,कर फिर उसको याद॥44 कुदरत कर ले तूलिका,बना रहा तसवीर। सिंदूरी नभ हो गया,खीची भव्य लकीर॥45 सिंदूरी संध्या लगे, हलके रंग गुलाल। अलसाई नवयौवना,जिसका चूमूं भाल॥46 आ रे कारे बादरे,ला रे भर भर नीर। बरसा रे मन -भूमि पर,जारे विरहा पीर॥47 लेउ वारणा लाडकी, कर कर हरख अतीव। ओपै थां सूं आंगणौ,जीव अमीणो धीव॥48 देवी रे ज्यूं दीकरी, आपै सुक्ख अतीव। लिछमी रूपी लाडली,जीव अमीणो धीव॥49 ओस दडी आकास सूं, पडी घास रे माथ। जाणक पोढी गोरडी,बालम दे गळबाथ॥50 फूलों को छूकर चला,शीतल मंद समीर। जैसे आँचल आपका,परसे सखी शरीर॥51 कठै शिकायत मैं करूं,कठै रोउं जा कूक। हर पळ थारी याद री,तणी रहै बंदूक॥52 मन से तुझको पा लिया,तन से होकर दूर। कहो सखी कैसे कहूं,खट्टै है अंगूर॥53 मन्नत का धागा सखी!,फिर बांधा इस बार। जिससे तेरी जीत हो,औ' मेरी हो हार॥54 नज़र आप की क्या लगी,हमें न खुद का भान। पंडित ,ओझा, औलिया,हुए देख हैरान॥55 शज़र नीम का याद है, जिसकी ठंडी छांव। सुस्ता ले पल भर यही,दूर पिया का गांव॥56 मुझको साजन यूं मिले, जैसे आंगन नीम। अब मैं चुस्त दुरुस्त हूं,हर पल संग हकीम॥57 नज़र बडी ज़ालिम लगी, व्यर्थ वैद उपचार। चोट हुई दिल पर गज़ब, बिना तीर तलवार॥58 जब तू मिलने आ गई, लगा याद के पंख। मन मंदिर बजने लगे,ढोल नगाडै शंख॥59 गडा खजाना तू सखी, पडा मनो संदूक। खडा खडा पहरा भरूं,हाथ कलम बंदूक॥60 दुआ हमें देकर गया,फटे लिबास फकीर। मुफलिस के दीदार में,कितना बडा अमीर॥61 जब से देखा है उसे,आते दो ही ख्वाब। रंग बिरंगी तितलियां,या फिर फुल गुलाब॥62 धूनी मैने दी रमा, मै हूं मस्त मलंग। मैरे अपने कायदे,और अलग है ढंग॥63 कलम बलम ! कागद सखी,प्रेम ह्रदय के भाव। जिसका संप्रेषण करै,वह कासिद कविराव॥64 हमें फकीरी भा गई, तुम मानों इसलाम। हमने खुद को खो दिया, तुम्है दीन से काम॥65 मनचाहा मिलता नहीं,इस दुनिया में यार। फूलों के बदले जगत, सदा चुभोता खार॥66 काळी काळी रातडी,जेम कामणी केस। जिण विच मुखडो चंद्रमा,चम चम चम चमकेस॥67 डटा मोरचै पर रहा, जीवन से की जंग। हटना नामंजूर था, रंग! रे सैनिक रंग।।68 आहट सखी! बसंत की, चहू दिस महके फूल| कोयल छेडै बांसुरी,मौसम के अनुकूल||69 अलसाई अमराइयां,खिलने लगे पलाश| बौराया मन बाँवरा,आते ही मधु मास||70 शीतल मंद समीर भी,पा प्रकृति का स्पर्श! लगा बहकने है सखी!,हिय मै धर अति हर्ष||71 दुआ हमें देकर गया, फटे लिबास फकीर। था मुफलिस के भेस में, कितना बडा अमीर।।72 रखा करो नजदीकियां,नहीं भरोसा देह। सब को जाना एक दिन,छोड बिराना गेह।।73 दोनों जुडवा बहन है, पूजा और अजान। दोनों को प्यारा खुदा,दोनों को भगवान।।74 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
30/11/2015 | रुखसत सब ही हो रहै, एक एक कर यार। तू भी जा अब जिंदगी,वृथा न कर तकरार॥13 सदा स्वप्न में आप से,किया सखी! संवाद। मुझको बस इसके सिवा,और नहीं कुछ याद॥14 अपनापन हो बात में,और हृदय में प्यार। एसै मिलते जगत में,गिने चुनैं ही यार॥15 हुनर सिखाती है हमें, यारों यही किताब। मन के भावों को छुपा,कैसे रखें जनाब॥16 दुआ हमें देकर गया, फटे लिबास फकीर। मुफलिस के दीदार में, कितना बडा अमीर॥17 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
24/10/2015 | सबदा रा जामा फकत, कविता हिव री बात। भाव धाव चित मैं करै,कलम ! कवि न कहात॥1 चलो गज़ल के गांव में, या दोहों के देस। मंजिल दोनो एकसी,अलग भेस परिवेश॥2 समझाए तू प्यार से,या ताने बंदूक। जब मन तुझ पे आगया,बता रहूं क्यौ मूक॥3 अठै सबद रा औलिया, अठै भाव रा पीर। डिंगळ री डणकार मैं,फक्कड कवी फकीर॥4 रे !छंदों के राजवी, रे! कविता के कंथ। दोहै तुझको क्या कहूं,"दो दो मिसरों के ग्रंथ"॥5 गागर मे सागर लिए, पल शायर फिर संत। दोहै तुझको क्या कहूंतुझमें ज्ञान अनंत॥6 चलो सखी उस देस में,रहती रैन हमेस। संग रहेंगे ख्वाब में,खूब करेंगै ऐस॥7 सजनी ! रजनी आइये, पहन पैजनी पांव। छम छम छम फिर नाचना,ख्वाब -याद बड छांव॥8 नाम दाम शोहरत सखे!, कुछ दिन के महमान। कुछ ना होगा पास में,जब होगा अवसान॥9 नाम राम जपले मनुज, जो है जीवन सार। वह ही तेरे काम का, जब जाएगा यार!॥10 चाकर !ठाकर एकसा, जद दोनूं मर जाय। अदल हुकूमत ईश री,मौत धकै निरूपाय॥11 नीलबरण, मनहरण छबि, भरण ह्रदय आनंद। पहन पीत पट आभरण, रमणरास यदु-चंद॥12 ~~नरपत आशिया "वैतालिक" |
Date | दोहा/सोरठा |
नरपत सा अनुपम अर सारगर्भित दोहा
कीरत हंदा काम, कव नरपत नित रा करे।
साहित तणा चित्राम,अजब उकेरे आशियो।।
।।शंभू बारठ कजोई।।