दोहा नें सब रंग दे, शेर गजल नें दाद|

जाहिद शराब पीने दे मस्जिद मे बैठकर,
या वह जगह बता जहां पर खुदा नहीं।
~~मिरज़ा गालिब (1797-1869)
मने करण दे मौलवी, मस्जिद में मदपान।
(या)जगह जगत में बावडौ, जठै नही भगवान॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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मस्जिद खुदा का घर है पीने की जगह नही,
काफिर के दिल मे जा, वहां पर खुदा नहीं॥
~~अलामा मुहम्मद इकबाल (1877-1938)
मस्जिद घर अल्लाह रो, नी महफिल रो स्थान।
काफिर रे जा दिल वसौ,जठे नही भगवान॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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काफिर के दिल से आया हूं में ये देख कर फराज,
खुदा मौजूद है वहां पर उसे पता नहीं॥
~~अहमद फराज (1931-2008)
दिल काफिर जा भाळियौ, देख्यौ में भगवान।
पण मालूम उण नें नहीं, अब लग है अणजाण॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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महोबत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिफ काफिर पे दम निकले।
~~ग़ालिब
फरक नहीं है प्रेम में, जीवण मरणा तांण।
देख उणीने जीवतौ, जिण पर वारुं प्रांण।
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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कहां मैखाने का दरवाजा ग़ालिब और कहां वाइज,
पर इतना जानते है कल वो जाता था कि हम निकले॥
~~ग़ालिब
कठै कलाळां हाटडी, कठे मौलवी साब।
काले उणनें देखिया, जातां वठै जनाब॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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उनको देखे से गर आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते है बीमार का हाल अच्छा है।
~~ग़ालिब
देख्यौ जद दिलदार नें, आभा मुख ह्वी और।
वा समझी बिमार नी, म्है हूं मांटी ठौर॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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ता फिर न इंतजार मे नींद आए उम्रभर,
आने का अहद कर गए आए जो ख्वाब में।
~~ग़ालिब
नेंण नींद आवे नहीं, बस उण दिन रे बाद।
सुपनें में कर कौल गा,मिळसूं रखजौ याद”॥
नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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देखिये पाते है उश्शाक बुतों से क्या फैज,
इक बरामन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
~~ग़ालिब
देखां आशिक कीं नफो,लेवै दिलबर तांण।
एक ब्रामण इण सालरो, विध विध किया बखांण॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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ग़ालिब छूटी शराब पर अब भी कभी कभी,
पीता हुं रोज ओ अब्र औ शब -ए-माहताब में।
~~ग़ालिब
ग़ालिब छूटी वारुणी, तौ पण केई वार।
बादळ रातां चाद सूं, पीवूं अनराधार॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है।
~~ग़ालिब
सुरग सुरंगी कल्पना,झूठ मूठ री राज।
पण गालिब चोखी घणी,मन खुश रखवा काज॥
~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”