दुर्गादास राठौड़ रो गीत तेजसी खिड़िया रो कहियो


उण समै देशकाल री परिस्थिति ने बखाण करतो ऐक गीत, जिण मे जंगी जोधारां सोनग, दुर्गादास, मुकुन्ददास री धाक सूं दिल्लीपति रा मुसायब इनायत खाँ रै काऴजै री किरचां हालण ढूकी अर घणो डाफाचूक हूय ने मारवाड़ मुलक रे मौजीज मुसायबां रे असीम साहस शौर्य श्यामधर्मी, सूझबूझ संगठन री महिमा आं बातां सूं भयातुर भाव सूं आक्रांत हूय ने बादशा खनै ऐक संदेश भेजियो जिकणरो चित्रण करियो है। शाहजादा अकबर ने राठोड़ आपरै पखै कर लेवणों, बादशाह रो दिखण री मुहिम पर रैवणों, अर बेगमां रो दिल्ली मे बिराजणों, बिच्चै राठौड़ां रो मार्ग रोकणो आद विकट बिखा री बखत रो जिणमें जोधपुर रो नवाब इनायत खाँ जोधाणैं रा जंगी जौधारां सूं किनारो करण मे कुशऴायत बतायी है। गीत रो संवत १७३८ री घटनांवा सूं संबध है।

असपत नूं लिखै नवाब इनायत,
दाव घाव कर थाकौ दौड़।
मारूधरा मांहै मुगलां नूं,
ठौड़ ठौड़ मारै राठौड़।।

कारीगरी न लागै कांई,
घाव पेच कर दीठा घात।
किलमां नूं मारता न संकै,
मरवि सूं न डरै तिलमात।।

बांध पकड़ मैं गांम बाऴिया,
पाधर लड़ वाही पांडीस।
एक मार डेरै लग आऊं,
वासां सूं ऊठै दस वीस।।

आलमपना मारवां एकौ,
वस न हुवै धर कणी वतै।
मिऴिया नही तिकै न्याय मारै,
मिऴिया सो मारवा मतै।।

मोनूं किण आंटै माराड़ौ,
सुणौ अरज म्हारी सुरताण।
दिल्ली जीवता जदी देखसौ,
जो आंनै देसौ जोधांण।।

अकबर खोस लियो थां आगे,
मार नांखिया कितायक मीर।
ऐ तो दिल्ली न ले इण आंटे,
टुकियक लूंण तणी तासीक।।

एता वरस हूवा साह औरंग,
सीत मेह तावड़ा सहौ।
धरती ऐ खावै धींगांणै,
राज विखायत थका रहौ।।

हजरत दिखण दिल्ली में हुरमां,
रूधी बिच्चै राठौड़ां राह।
कीधौ विखौ धरा नव कोटी,
पड़ियौ घर थारै पतसाह।।

मारवाड़ मुलक री आजादी री सताईस बरसां री लंबी लड़ाई मे मरण मतै हुयेड़ा इण भांति रा वीरां रे पांण ही महाराजा अजीतसिंह ने सिंहासण दिराय अभिषेक कर राज ने थिर कायम करियो गयो, धन्य है इसड़ा वीरां ने अर मारवाड़ धराधाम ने।

~~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

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