एक अतुकांत कवियत्री को

छंद बंद को छोड कर, मन के अंतरद्वंद।
लिखते हो कितने सरल, सुंदर काव्य निबंध॥1

लिए सहज कर तूलिका, और मिलाकर रंग।
मन माफिक चित्रित सरस, करते भाव प्रसंग॥2

कविता कलकल आपकी, लय की लिए न लीक।
भावों से चित को हरै, सुन्दर, सरस, सटीक॥3

कविता मन के घाव है, केवल यह ले सोच।
कागज – तन पर कलम से, करते रहो खरोंच॥4

यति, गति, रस, लय छंद से, होकर कोसों दूर।
लिखते कैसे आप हो, ह्रदय भाव भरपूर॥5

आह ! वाह !की चाह से, होकर बेपरवाह।
लिखते कैसे आप हो, बिन लय  पीर अथाह॥6

अल्हड सी नवयौवना, किया न हो शृंगार।
कविता छंदो-लय रहित, सरस सरल सुकुमार॥7

कलम -बलम, कागद -सखी, प्रेम ह्रदय के भाव।
जिसका संप्रेषण करै, वह कासिद कविराव॥8

चाहत, खत, लत, गम, खुशी,  और पिया का झूठ।
कविता की अनगिनत ही, रोज चलाते लूट॥9

~~वैतालिक

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