गढ में तो ऊभो बड़ियो हूं, सो आडो ई निकल़सूं

इण दिनां फेसबुक अर वाटस्एप माथै जोगीदास चारण अर महाराजा मानसिंह सूं संबंधित एक जोरदार कहाणी पढण नै मिल़ रैयी है। कुण लिखी आ तो ठाह नीं पण आगै सूं आगै धकावण में खासै ढंगरै मिनखां रा नाम पढिया। म्है उण सगल़ै लेखक मित्रां नैं बतावणी चावूं कै आप जिण जोगीदास नै चारण बता रैया हो बै पातावत राठौड़ हा।
बात यूं है –
जोधपुर माथै उण दिना अभयसिंहजी रो राज हो महाराजा रा हल थकिया अर लागण लागो कै अबै ओ शरीर कणै ई बरतीज सकै। जद उणां आपरै स्वामीभक्त अर विसवासी सिरदारां नैं बुलाय वचन लियो कै जे बगतसिंह जोधपुर खोसण नैं आय जावै तो बै किणी पण हालत में रामसिंह री मदत राखैला। उण बगत पोकरण, आऊवा आद मोटै ठिकाणां रै साथै पड़ियाल़ जेड़ै छोटै ठिकाणै (फलोदी) रा ठाकुर जोगीदास मुकनदासोत ई भेल़ा हा। महाराजा उणां नैं फलोदी री हाकमी दे दी। जोग सूं दरबार नीं रैया। रामस़िह गादी बैठा पण तंत नीं होवण सूं सिरदारां बगतसिंह नैं बुला लिया –
रामै सूं राजी नीं, ऊतर दीनो देस।
जोधाणो झाला करै, आव धणी बगतेस।।
उण बगत किलै रा किलैदार बगतसिंहजी रा सुसरा सुजाणसिंह हा, उणां लालच में किलै रो दरवाजो खोल दियो। उण बगत किणी चारण कवेसर सुजाणसिंह नैं सामघात करण रै कारण फटकारतां सुणायो –
थारो नाम सुजाण थो, अबकै हुवो अजाण।
आश्रम चोथै आवियो, ओ चूको अवसाण।।
बगतसिंहजी जोधपुर कब्जा लियो। पण उण बगत जिकै वीरां बगतसिंह नैं नीं अंगेजिया उणां में जोगीदासजी रो नाम ई चावो है। किंवद़ती सुणां कै बगतसिंहजी उण बगत जुढिया रा लाल़स आवड़दानजी नैं बुलाया अर कैयो कै आप जावो अर जोगीदास नैं कीकर ई समझार फलोदी रो गढ खाली करावो।
आवड़दानजी कैयो हुकम “जोगीदास तो बलाय रो बटको है। इयां पाधरियां में फलोदी मिल़ै ! म्हारै मनै नी। आप फरमावो त़ो आ बात जोगीदास तक पूगती करूंलो।”
आवड़दानजी प्रभावशाली अर जोगीदास रै प्रिय कवियां में एक हा। जोगीदास इणां रो घणो आदर करता। बै गया अर बगतसिंह री दूठता विषयक बातां कैय समझायो। जोगीदास कैयो “बाजीसा आपरै चाहीजै तो गढ कांई ओ खोल़ियो त्याग दूं पण ऐड़ी गादड़ भभक्यां सूं डरर म्है वचन भंग नीं होवूं। गढ में तो ऊभो बड़ियो हूं सो आडो ई निकल़सू। ऐ समाचार आप जोधपुर पूगता कर दो।”
आवड़दानजी कैयो कै ओ मारग मोत रो है अर मोत घेरो देवैला जद ई डर र छैडोला ! उण सूं तो ओ ठीक है कै आप म्हारो कैणो मानलो। दूध अर दूवारी दोनूं रैय जावैला।”
जोगीदास कैयो “बा ! जोगो इतो नाजोगो नीं है सो आपरो कैणो नीं मानै ! पण मोत सूं डर र पग छोड दूं ! आ बात म्है अजै सीखी नीं है! मोत सूं रम्मत तेवड़ ई ली। आप तो ओ धरम पलै राखजो कै म्हारो मरणो ईं नीं जावै।”
वाह जोगड़ा वाह! म्है आ ई बात बगतसिंह नैं कैयी। तूं रजपूती राखैला तो हूं चारणपणो राखूंलो। समाचार पूगिया कै जोगीदास मरियां ई फलोदी मिलैली। छ महिणा गढ रै घेरो रैयो। आखिर घण जीतै अर जोधार हारै। घणी बहादुरी सूं लड़तां थकां जोगीदास वीरगति प्राप्त करी। उण बगत घणै कवियां जोगीदास रै सूरमा पणै नै मुग्ध कंठ सूं सरायो। आवड़दानजी रै आखरां में –
गढ गैणो बांधै गल़ै, मँझ लड़ियो खट मास।
पातै सिर पड़ियां पछै, दीधो जोगीदास।।
फोजां घेरियो गढ आय फलोदी, वीरत खाग बजावै।
छतो पतां रिड़मलां छोगो, जोगो भागन जावै।।
किणी अज्ञात कवि रै आखरां में
हुकम बगतेस रै असंख फोजां हली,
च्यार दुय मास रच वीर चाल़ो।
मिल़ै आठूं मिसल़ नीठकर मारियो
इसां तरवारियां मुकन वाल़ो।
उल़्लेखजोग है कै पड़ियाल़ रै अगूणै पासी रूपावतां रा ठिकाणा हा। ऐ सगल़ा जोगीदास री वीरता सूं थरका करता हा। किणी लोककवि रै आखरां में –
भेल़ू कह रै भादला, नह जीवण री आस।
माता घोड़ा मारका, मारै जोगीदास।।
ऐड़ो वीर हो जोगीदास। जिण गढ आडै होयां ई छोडियो, ऊभै थकां नीं।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी