कविराज गणेशपुरीजी रो एक रोचक प्रसंग – ठा. नाहर सिंह जसोल

गणेशपुरीजी राेहड़िया पातावत शाखा रा चारण हा। गांव चारणवास। मारवाड़ मैं बळूंदा ठिकाना रा पोलपात। पैहलौ नाम गुलाबदान। पछै राम स्नेही वे गया। सूरजमलजी मीसण रा शिष्य। पछै नांम गोस्वामी गणेशपुरी राख्यो।
महाराणा सज्जनसिंहजी मेवाड़ विद्वान अर विद्वानों रा पारखू। वांरै दरबार में केतांन विद्वान, जिण में गणेश पुरी जी एक।
दयानंद, गणेश पुरी स्वामी, उभय सुजान,
लई संगत इनकी, भयौ सज्जन, सज्जन रांण।।
बख्तावर राव पुनी, ग्याता रस सिगार,
इनकी कविता माधुर्य, लई सकै को पार।।
मोडसिंह महियारियाै अरु आ सिया जवान,
इन आदिक मेवाड़ मनो, हुति कवियन की खान।।
राज दरबार लगा हुआ है। महाराणा सिंहासन पर बिराजमान है। कविसर अपने अपने आसन पर बिराजमान हैं। बहुत ही गंभीर समस्या के समाधान हेतु विचार हाे रहा है। समस्या है, महाभारत के पात्रों में श्रेष्ठ कौन ?
किसी नै कहा भीष्म, किसी नें कहा अर्जुन, किसी नें कहा युधिष्टर। गणेशपुरीजी नें दो दिन का समय मांगा।
दूसरे दिन कवि अपनी हवेली के झरोखे मैं बैठे, प्रभात की वेला मैं दातुन कर रहे। हवेली के ठीक नीचे पहाड़िया कुंभार का घर। कोई कारण से लोग लुगाई मैं झगड़ा हो गया। लुगाई करकसा। जोर जोर से बोले। चुप होने का नाम ही न ले। आखिर मैं तंग आकर कुंभार नें मेवाड़ी मैं कहा : “छांनी मर रांड छांनी मर ! लाज नी आवै थनै, राजा करण री वेला म्हारौ लोई पी री है ?”
और कविराजा उछल पड़े ! उनकी समस्या का हल मिल गया ! जिस पात्र के नाम पूरा प्रहर ठहर गया वह पात्र निश्चय ही श्रेष्ठ है।
पर दान कि नहर की तो लहर दुरूह देखी,
पृात: की प्रहर गी ठहर, रवि जाये की।।
कर्ण के दानवीर हाथों की वंदना कुछ इस पृकार की,
कुंडल जिय रख्शा करण, कवच करण जय वार,
करण दान आहव करण, करण करण बलिहार।।
~~प्रेषित: ठा. नाहर सिंह जसोल
(ताणा राजराणा हरिसिंहजी रो सुणायौ प्रसंग)