गीत जैसलमेर रो

माड अर्थात जैसलमेर रो पुराणो नाम। इणी माड रै पावन मगरियां माथै लोकदेवी आवड़ रास रमी अर दुष्टां रो दमन कियो।इणी धरा माथै महाभड़ भोजराज भाटी होयो जिण री वीरता वंदनाजोग। उण रो विरद “आडा किंवाड़ उतराद रा भाटी झेलण भार।” इणी धरा रो सपूत महावीर सालिवाहण होयो जिण कवि श्रेष्ठ बांझराज रतनू नैं इक्कीस गांवां सूं सिरुवो दियो। इणी भोम रो महाभड़ दूदा होयो जिणरै विषय में आ बात चावी है कै कविवर्य हूंफै रै सतोला शब्द सुण र कटियै माथै कवि नै दाद देय कविता री कूंत करी। इण धरा रा सपूत रतनसिंह, मूल़राज राजपूती शौर्य रा प्रतीक पुरुष हा। महारावल़ हरराज आपरी वीरता, उदारता अर विद्वता रै पाण चावा तो भाटी भीमराज आपरी वीरता रै पाण चावो। ऐड़ा सपूतां री मातभोम माड नैं समर्पित म्हारो एक डिंगल़ गीत आपरी पारखी निजरां –
गीत – सोहणो
उमड़ी इसलाम तणी वा आंधी,
ढिगला हुय हुय कोट ढया।
बीकण हुवा बांठकां वांसै,
रण हरवल़ जदुरांण रया।।1।।
सिद्ध वडो देवराज सूरमो,
धिन खाटी पिछमांण धरा।
त्याग-खाग निकलंक तिमिरहर,
सर कर अरियां लीध सरा।।2।।
इण गादी वीजड़ आंटीलो,
हिव धिन लंझो नाम हुवो।
वट जोवै विजड़ासर अजतक,
दीठो कोयन भूप दुवो।।3।।
देतां दही भोजरज दिसियां,
सासू कहिया वैण सही।
आडो उत्तर तूं भड़ भाटी,
रोकण दुसम्यां अडग रही।।4।।
आयो साह लोद्रवै ऊपर,
भोजराज कथ कियो भलो।
कटियो अनड़ झेल किरमाल़ां,
ओ निरवहियो वचन अलो।।5।।
सालीवांण सुतन जैसल़ रो,
सिग दातारां साख सही।
गांम इकीस बांझ गढवी नुं,
देयर बातां राख दही।।6।।
रावल़ रतन मूल़रज मांटी,
थिर कीरत रा थंभ थपै।
गोरहरो गरवीलो गरबै,
जस सह हिंदूसथान जपै।।7।।
दाटक जसहड़ जोय दूदियो,
मान गोरहर मुगट मणी।
जिणरी अज जैसल़गिर जाझो,
जपियै बातां जणो जणी।।8।।
सिर पड़ियो !लड़ियो रण सूरो,
बातां अह अखियात बही।
सांदू कवि हूंफड़ै सांपरत,
कीरत जिणरी विमल़ कही।।9।।
भो हरराज वडाल़ो भाटी,
खाटी कीरत बात खरी।
जावै राज! भलांई जावो,
कवियां राखण बात करी।।10।।
राज तणो इम सोच रसा पर,
कदियन नरपत रिदै कियो।
सींचण साहित वेल सचाल़ै,
दिल सुध एको ध्यान दियो।।11।।
अनड़ भीम होयो इण अवनी,
किरमालां बल़ काम कियो।
निकलँक रखी नार नवरोजै,
दिल्ली नै जिण टिलो दियो।।12।।
आछा वीर हुवा के अवनी,
ज्यांरी झाटां नको झली।
पणधर प्रगट लियो जस प्रिथमी,
हरदिस वांरी गल्ल हली।।13।।
भल़हल़ धरा भूरिया भाखर,
विमल़ बेकल़ू रेत बठै।
जग रा जोवण आय जातरी,
अंतस पाल़र हेत अठै।।14।।
वा वा रै जैसल़गिर वसुधा,
रम डुंगरियां आई रँजै।
जिण सूं रही अपरबल़ जोरां,
गाढ कैण में तूझ गँजै।।15।।
-मुक्त छंद-
आथूण सूं उमड़ी ही
जद काल़ी-पील़ी
इसलाम री अड़ूड़
आंधी!!
खैंखाड़ करती
धड़ीड़ां-धड़ीड़ां
भाखरां -डूंगरां
धोरियां नै धूंसती
पसरण लागी!!
जद
उणरै पसरतै
विकराल़ रूप
सूं धैलीज
केई कोटां रा कांगरा
झड़ पड़िया
तो केक गढपति
गांगना होय
बांठकां री ओट झाल
जीव नै थथूबो दियो
पण
उण बखत
ठालाभूला
छत्राल़ा जादम
आंख्यां में पड़तै
रावड़ियां री
गिनर नीं
ऊभा रह्या
आडा अड़ीखंभ आंधी रै!!
इणी पिछम धरा रो पूत
वो रजपूत देवराज!!
आपरै सिद्धपणै रै पांण
तातोड़ी कृपांण रै
आपांण
पाधरा कर अरियांण नै
रह्यो हो खाग-त्याग
निकलंक
सूरज रै समोवड़!!इणी री ऐल री
वंशवेल
हुवो आंटीलो
विजराज लंझो!!
जिण खिणायो है
विजड़ासर!!
वो ईज विजड़ासर
आज ई आपरै
गरबीलै दिनां रै
गुमेज नै चितारतो
उडीकै है
हेज रै साथै
आपरी भागोड़ी -तूटोड़ी
पाज बंधावण नै
इणी विजराज नै!!
आवतो मारगां।इणी विजराज रो
सपूत हुवो हो
भोजराज!!
जिणरै लिलाड़
दही देती
मूंडो विलखो कर
आत्मविश्वास
अर आश लियां
कह्यो हो सासू!!
कै
बेटा
म्हांरै माथै आफत आयां
उतराद रो
आडो
तूं बणैला
अर
म्हारै इण दही री आबरू राखैला!!दुजोग री बात
जद समसुशाह
घात कर आयो
लुद्रवै माथै!!
उण बखत
ओ ईज भोजराज
आपरै वचनां री
आबरू राखण नै
तरवारां री चौकड़ी झाल
आ अड़ियो
इण धूंवाधोर भंतूल़ रै आडो
एकर फेरूं रोकण,
गोट नै
आगै पसरण सूं।
आपरी देह रै बदल़ै!!
बाप अर बोल एक मान
दियोड़ै कोल नै साचो कर कुटको कुटको हुय पड़ियो रणांगण!!
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”