गीत जांगड़ो

सिमर रै सांमल़ियो साहेब,
वेद पुराण बतावै।
सुधरै अंत मिटै धुर सांसो,
संत सार समझावै।।1
पुणियां नाम कटै भव पातक,
सुणियां मल़-गल़ सारा।
चुणिया नाम कोट गढ चौड़ै,
पेख हुवा पौबारा।।2
वन में जाय बैठ वनवासी,
जग कासी क्यूं जावो।
धर चित ध्यान वडोड़ै धव रो,
घर में गोविन्द गावो।।3
मठ री कठै जरूरत मोथा,
महँत बणै तूं मोटा।
विसरै साम धार विटल़ापण,
खसै करण कज खोटा।।4
भचकै रामदवारै भाई।
गादी बैठो गैला।
माधव रटण भूलियो मारग,
पातक जागा पैला।।5
भूलो राम भटकियो भोल़ा,
दिल चाल़ां दिस दीनो।
कह कह ग्रंथ थाकिया केता,
काज निमख नीं कीनो।।6
भटक गयो आडंबर भोदू,
व्यसन फैसन बादी।
कल़ियो कीच मांय कुटल़ाई,
मौज लहै तूं म्यादी।।7
बक बक वेद शास्त्र बोलै,
भेद मती भरमावो।
केवल नाम रट़ो किरता रो,
परस चरण पद पावो।।8
रटियो नाम रिदै राघव रो,
राम जिकां मँझ रैतो।
मिटियो गमण आवणो मरणो,
वास अमरपुर बै तो।।9
धू हद अडग धारणा धारी ,
धीरज सूं चित धायो।
सहियो घोर ताप तन संकट,
लेस नहीं डर लायो।।10
परगल़ प्रीत करी पहल़ादै
बाल़कियै विसवासी।
हणियो नखां हेर हिरणख नै
संत काज सुखरासी।।11
गिनका साम नाम रा गिड़का,
सुणिया सुक सूं साचा।
पापण मोख परम पद पायो,
करम किया जिण काचा।।12
सिरिया तणी साद सांवल़ियै,
समरथ सुणी सचारी।
बचिया देख बिलाड़ी बिचिया,
कीरत अखै कुंभारी।।13
सत री राह हरिचँद सुरियँद,
तिल नीं डिगियो तारां।
जिण री साख रखी जगजामी,
पत सथ कीधो पारां।।14
ईसरदास दास ईसर रो,
गुण गोविन्द रो गायो,
बारठ जिकै प्रतापै बसुधा,
पद परमेसर पायो।।15
मीरां मगन भई गुण माधव,
धणी जोर दे धार्यो।
भूप कहर ढायो हद भारी,
जहर मेड़तणी जार्यो।।16
नित नित गाय रीझायो नरसी,
अवल नींव दी ऊंडी।
मन सूं भरण मामेरो मोहन
हाथ भरी झट हूंडी।।17
गिरधर दान मती कर गढवी,
कवी काचड़ा कूड़ा।
समरथ समर समयसर समझै,
रघुपत राघव रूड़ा।।18
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”