गीत कुशल जी रतनू रे वीरता रो बगसीराम जी रतनू रचित

राजस्थान मे चारण कवि ऐक हाथ मे कलम तथा दूसरे हाथ मे कृपाण रखते थे। महाराजा मानसिंह जी जोधपुर के कहे अनुसार रूपग कहण संभायो रूक। ऐक बार मानसिंह जी का भगोड़ा बिहारी दास खींची को भाटी शक्तिदान जी ने साथीण हवेली मे शरण दी, इस पर मान सिह जी ने क्रुद्ध होकर फोज भेज दी। शरणागत की रक्षा हेतु भाटी शक्तिदान जी ऐवं खेजड़ला ठाकुर सार्दुल सिंह जी ने सामना किया। इस जंग मे मेरे ग्राम चौपासणी के उग्रजी के सुपुत्र कुशल जी रतनू ने पांव मे गोली लगने के बाद भी युद्व किया।
उनकी वीरता पर तत्कालीन कवि बगसीराम जी रतनू ने निम्नलिखित डिंगल गीत लिखा जो यहाँ पेश है।
महपत री फोज भाटियो माथे, भड खींची आंटे भाराथ।
लडतां कुशल आभ सिर लागो, पारथ जिम वागो वड पाथ।।
गडां जेम झैलै तन गोला, अर टोला खल बल उथैल।
अडिया जिकां तकाया ओला, झोला भार जूंझ रा झैल।।
झुक फुण सेस अराबां झडतां, चडतां धके जवन चख चोल।
अर थाटां अडतां उगरावत, पडतां भार न छोडी पोल।।
राडाजीत धिनो भड रतनू, खगां विभाडा अर खैसोत।
बड कव दैखै घाव बराडा, सह धाडा दाखै दैसोत।।
जीवत संभ थयो गुण जोडा, सेल धमोडा गोला साहि।
खाटे बिरद हणूं जिम खोडा, मोटोडा इल सारी मांहि।।
धन्य हो कुशल जी रतनू तथा उनकी वीरता को वंदन।
~~प्रेषक: मोहन सिंह रतनू (चौपासणी चारणान)