गीत लाछां माऊ रो

।।दूहा।।
लाछां पट धर लोवड़ी, कीधा आछा काम।
वरदाई वाचा वल़ै, नवखंड साचा नाम।।1
जग ऊजल़ झीबा किया, ऊजल़ रतनू और।
जमर कियो परहित जगत, सगत लाछां सिरमोर।।2
नेस नामी नकराल़ियो, धिन धिन झीबां धीव।
विमल़ बोनाड़ो बीसहथ, पुनि धिन कीधो पीव।।3
राड़ लखो तैं रोल़ियो, कर सिर जिणरै कोप।
जग धर राखी जादमां, जमर अमर मग जोप।।4
।।गीत – प्रहास साणोर।।
अमर कथ करेवा पैंड जस भरेवा अहो,
समर हर नाम कर काम साचां।
मंडेवा गुमर इम नेसड़ां महिपर
लोवड़धर जचायो जमर लाछां।।1
रतनुवां दैण धिन कीरती रसापर,
धूरतां असा कज मोत धीबी।
आदलग जसा ही रीत रख इल़ा पर
जगत में बसा गी सुजस झीबी।।2
पहुमी चारणाचार रंग पाल़ियो,
गाल़ियो कुछत्र्यां गरब गाजी।
भलापण जसोड़ां तणो पख भाल़ियो
महि सूं टाल़ियो विघन माजी।।3
निमल़ नकराल़ियै जनम धर नैसड़ै,
चहुचक देशड़ै बात चावी।
बोनाड़ै धार धणियाप युं बडापण,
ठेस अरियांण दे बात ठावी।।4
राल़ियो विघन घर राहड़ां रूठ नै,
कुबोलां लखै री करी काल़ी।
घरांणै ऐम हरपाल़ रै गरब दे,
पेख सतवाट री वाट पाल़ी।।5
वीरां ज्यूं सधीरां लाछ तूं बीसहथ,
होयनै गँभीरां हितू हेरै।
कार उपकार रै बैठ झल़ काठ री,
गाढ सरणाइयां रिपू घेरै।।6
कहै कव गीधियो गुमरधर कीरती,
बात सुण ऐम थल़वाट वासी।
नेह री हाट इम सुणंता नेह सूं,
उरड़ती छोरवां भीर आसी।।7
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”