गीत सींथल़नाथ गोरेजी रो

चारण देवी उपासक। भैरूं देवी रो आगीवाण सो चारणां रै भैरूं रो जबर इष्ट। चारण भैरूं नैं मामै रै नाम सूं अभिहित करै। मामै रै भाणजा लाडैसर सो घणै चारणां नैं भैरूं रै सजोरै परचां रो वर्णन किंवदंतियां में सुणण नैं मिल़ै। ऐड़ो ई एक किस्सो सींथल़ रा वीठू चारण नारायणसिंह मूल़ा रो है। मध्यकाल़ री बगत सींथल़ रै मूल़ां रै वास में मानदान अर नारायणसिंह दो भाई हा। नारायणसिंह रो ब्याव बूढापै में होयो। घर में कोई खास सरतर नीं हो पण इणां रै गोरै भैरूं रो घणो इष्ट। एकर मेह वरसियो पण हलोतियै रो कोई साधन नारायणजी कनै नीं। उणां गोरै रै थान में जाय धरणो दियो। कैयो जावै कै गोरै कैयो “जा!खेत में एक बलद आ ज्यावैला। थारै घर जिता ऊमरा कर छोड देई।” नारायणजी बीज लेय खेत गया। बलद साचाणी आयग्यो। लांठां आदमी हा सो एक रात अर दिन तड़ी मार बलद नैं बायो, जिणसूं उणां रो खेत ‘डहर’ पूरो जुतग्यो। दूसरै दिन थान गया तो देख्यो कै मूरती रै कांधां सूं लोही झरै! उणां जिद कर र पूछियो कै “आप समरथ हो अर आपरै ओ लोही किण काढियो?” आवाज आई कै “तैं काढियो ! बेटी रा बाप म्हारै कनै कठै बलद हो सो म्है खुद आयो। पण नीं, तैं, वींसाई ली अर नीं म्हनै लेवण दी” नारायणजी रै घणा मोठ होया सो उणां खल़़ो काढर सीधो एक पाखल़ियो ‘आखां’ रै रूप में थान लेयग्या पण भैरूंजी कैयो “नीं फगत पांच सेर चढा पण थारी बेटी अर बेटां री ऐल़ रो झड़ूलो पीढ्यां में बंद मत करजै।” आ परंपरा आज ई नारायणजी री ऐल़ रा श्रद्धा सूं टोर रैया है।
🌹गीत सींथल़नाथ गोरैजी रो🌹
।।दूहा।।
गोरा आखर गोरला, अप साकर उनमान।
जस ठा-कर तोरो जपूं, मामा अरजी मान।।
तूं काऴा छीलै तपै, अरी उथाऴा ओज।
भड़ गुरजाऴा भैरवा, मतवाऴा दे मौज।।
🌹गीत प्रहास साणोर🌹
पेख पड़ी आ गरज उण सनातन पुरातन
सुणै झट अरज चढ आव सामा।
नेहधर फरज नैं तावल़ो निभावण
म्हारी दरज कर बात मामा।। 1
रेणवां धरा रा पोरायत राजवै
साजवै मदत नित राख सोरा।
अभै रह हमेसा आपरै आजवै
गाजवै सींथल़ धर तुंही गोरा।। 2
सिमरियो नारायण सदा सुखरासरै
हियै धर आसरै अडग हेती
खमा बण बलदियो जूपियो खासरै
खरै मन दासरै करी खेती।। 3
लहर कर डहर में धान वो लगायो
जोरकर अघायो खेत जूतो
भैरवा महर कर दल़द तैं भगायो
संत रो जगायो भाग सूतो।। 4
इष्टधर आज लग नरै री ऐल़रा
भरै री काज सिग पैंड भाल़ो।
धरै री मनां नित अडग धणियाप वा
पह धव करै री साय पाल़ो।। 5
डींगल़ां गीत पर डणक डमकारतो
निजर निज धारतो पाल़ नाता।
सारतो सांकड़ा काज सब सेवगां
भलां भलकारतो मातभ्राता।। 6
गणण कर गूघरा पगां घमघमै छै
रमै छै मात रै थांन रीझ्यो।
डंमर कर डंमरू करां डमडम छै
खल़ां दल़ दमै छै खाग खीझ्यो।। 7
झींटियां सुगंधी तेल झर झरै छै
करै छै रल़ी मन पूर कामा।
भलोड़ो श्वान हद डांण मग भरै छै
मीट तुझ डरै छै दूठ मामा।। 8
लांगड़ा गुरजधर निजर जो लाडरी
छतो आ चाडरी वेल़ छेको।
जटाधर बताजै ख्यात वा जाडरी
अहर निस गाढरी आस एको।। 9
छत्रधर नमो नित नाथ छीलाण रा
काण रा रुखाल़ा सुणै काल़ा।
जाण रा जूनोड़ी जाग जटियाल़ अब
पाणधर छोरवां बहै पाल़ा।। 10
जीयावत गीधियो जपै जस जोर रो
और रो नहीं विसवास आवै।
बहती दोर रो बणै झट वाहरू
गोर रो इणी कज गीत गावै।। 11
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी