गीत सूंधा माता रो – दल़पत बारठ

स्वंय पिडं ब्रहमंड भुज डंड ईकवु सस,
दयतां डंड प्रचण्ड दाता।
सकल़ विहमंड चंड कुण कर सकै,
मंड ज्यां मंडी चामण्ड माता।।
आठ सिध थापणी थाल़ आसाएवां,
आपणी माल नवनिध अनूंधा।
रिधव रूक दे मूंघा न व्है रायहर,
सकत सूंधा तणी राय सूंधा।।
किन्नरां नगां गध्रप गणां राकसां,
सदा पनंगा नरां सुरां सेवी।
कव पाहा वाद ऊथापिया किण,
दिढ जिकां थापियां आद देवी।।
असी चालीस री जात री ओठमण,
कल़ू अखियात री थीस काथां।
दहु तारा तरी रीस दखल़ न दला,
हिमायत मात री बीसहाथां।।
~~दल़पत बारठ