🌷घनाक्षरी कवित्त 🌷

rajasthan

कुंभा से कला प्रवीण, सांगा से समर वीर,
प्रणधारी पातळ की मात महतारी है।
प्रण हेतु परणी को चंवरी में छोड़ चले,
काळवीं की पीठ चढ़े पाबू रणधारी है।।
मातृभूमि की पुकार सुनिके सुहाग रात,
कंत हाथ निज सीस सौंपे जहां नारी है।
कर के प्रणाम निज भाग को सराहों नित,
रणबंकी राजस्थान मातृभू हमारी है।।01।।

घर तें जियादा जहां पर का खयाल रहा,
घर आए शत्रु का भी किया सनमान है।
नफा-नुकसान नापने की है अनूठी रीत,
एक ही पैमाना वो हमारा स्वाभिमान है।।
आन, बान, शान के खिलाफ जो आवाज उठे,
पल में प्रलय मचा छीन लेते प्राण है।
दुनियां में ऋषियों की भूमि के विरुद वाले,
हिंद का गुमान है जो मेरा राजस्थान है।।02।।

सुना है सिकन्दर भी विश्व का विजेता बनने
का देख ख्वाब सारी दुनियां पे छाया था।
झेलम के तट पे सुभट सैन्य दल लेके,
वरण विजय वधू भारत में आया था।।
काल तें कराल महाकाल बन भारती के,
पोरस सपूत ने वो पौरुष दिखाया था।
युनानियों के खून से वो झेलम हरख उठी,
सैनिकों को षष्टमी का दूध याद आया था।।03।।

है जठै अनूठा छंद, जंग में लड़ै कबंध,
सीस जो कटै तो आंख वक्ष पै लगी रही।
सिखर वो रुतबै रो अंबर सूं जाय अड़ै,
साख री जड़्यां पताळ लोक ताण पूगरी।।
आण पै जिवै है सदा, बाण पै मरै-मिटै है,
काण कायदा री रीत-नीत तो बनी रही।
राजस्थानी बानी का ना सानी है जहां में कोई,
सांप कै समक्ष जीभ डंक झेलबा गई।।04।।

जीभ मांय शारदा, भवानी मां भुजा में रहै,
आतमा रै मांयनै असीम रो निवास है।
सीनै में अमिट शौर्य, उर में उदारताई,
भाल री चमक मांय सूरज प्रकाश है।।
मुड़दां में प्राण फूंक जीवण रो जोश भरै,
मोकै पै मरणियां रै जस रो उजास है।
आंख्यां में सिंगार औ अंगार दोऊं साथ रहै,
राजस्थानी कवियां री कविताई खास है।।05।।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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