घनश्याम मिले तो बताओ हमें -कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

ऐसे घनस्याम सुजान पीया, कछु तो हम चिन्ह बतावें तुम्हें।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।टेर।।
मनि मानिक मोर के पंखन में, जुरे नील जराव मुकट्टन में।
जुग कुण्डल भानु की ज्योति हरै, उरझाय रही अलके उनमें।
उन भाल पे केसर खौरि लसे रवि रेख दीपै मनु प्रात समै।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।१
है नैन विशाल बडे तिरछै चित चोर लियो चितचावन में।
धनुदोय मनोज उतार धरे, मसि बिन्दु लसै उन भौहन में।
नसिका मानो कीर की छीन लही, कही जाय दुराय रहै बनमें।
सखि पूछ रही बन बेलिन तें घनश्याम मिले तो बताओ हमें।२
कनिका मनु ब्रज सी ठीक धरे, रवि जोत लगे मुसकावन में।
बयजंतिय माल सु कंठ बनी मनि मानिक जोति रमें तिन में।
अधरामृतकी जो तृषा मनमें, पडती उठती डिगरू बन में।
सखि पूछ रही बन बेलिन तें घनश्याम मिले तो बताओ हमें।३
पित अंबर अंग लसै सुथरी, बिजुरी मनु रेख दिपै घन में।
उर कोमल लात बनी भृगुकी, नग हीर जडे मनि नीलन में।
आजानू भुजा भुजबंद दीपै, पहुँची कर कोमल कंगनमें।
सखि पूछ रही बन बेलिन तें घनश्याम मिले तो बताओ हमें।४
अँगुरी पतरी मुदरी सुथरी ससि दीप रहे दसहू नख में।
नग किंकनी कंचन की कटि में, कछनी मनु खंभ सी जंघन में।
पिण्डली मनु फील की सुण्ड लसे, धुनि नूपुर सुंदर पाँवन में।
सखि पूछ रही बन बेलिन तें घनश्याम मिले तो बताओ हमें।५
करि रास महावन त्याग गए, हरि छाँडि के जात नहीं घर में।
इतनी कहिके चुप होय गई, मन लागि गयो मन मोहन में।
कर गोपिन प्रेम रिझाय लिए”समनी”कहि श्याम मिले छिन में।
सखि पूछ रही बन बेलिन तें घनश्याम मिले तो बताओ हमें।६
~~कवियत्रि भक्तिमति समान बाई