घर बेटी बिन जेम गिणो

।।दोहा।।
बदन चलै ना अँजल़ बिन, साहस बिनां न सींह।
वंश नको बिन बेटियां, दिनकर बिनां न दीह।।

नीर खीर रो न्याय इम, हेर करै जिम हंस।
नह चालै बसुधा निपट, बेटी बिना ज वंश।।

बेटी नहीं बचावसो, खोटा रचनै खेल
आप तांई युं चालसी, वंश तणी आ बेल।।

।।छंद रैंणकी।।
सरवर बिन नीर मांम बिन सायर,
दान बिनां दातार दखां।
भूपत बिन राज काज बिन भलपण,
अंतस बिन अपणास अखां।
धेनूं बिन दूध बिनां धन धणियां,
मांण बिनां मेहमांण मुणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी
घर बेटी बिन जेम गिणो।।१

तरवर बिन पात गात बिन ताकत,
मात बिनां संतान मही।
जीमण बिन हाथ जात बिन जाणप,
कांन बिनां जिम बात कही।
तारां बिन रात फिकी जिम तवियै,
पेख सूर बिन दीह सुणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी,
घर बेटी बिन जेम गिणो।।२

घरणी बिन सदन मिनख बिन घरणी,
करणी बिन है कहण किसी।
जिबिया बिन स्वाद रदन बिन जीमण,
जाण बिनां पहचांण जिसी।
भेल़प बिन भाव भाव बिन भगती,
भगत बिनां भगवान भणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी,
घर बेटी बिन जेम गिणो।।३

सत रै बिन साच साच बिन सगपण
पत रै बिन जिम पुरस पढो।
रांघड़ बिन हूंस रूप बिन रंभा,
चातुरता बिन तुरंग चढो।
गहणो बिन नगां आण बिन घरवट,
चंदन बिन वनराय चुणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी,
घर बेटी बिन जेम गिणो।।४

दीपक बिन तेल सभा बिन दानां,
पंखी बिन जिम मान परां।
सासू बिनां ज सासरो सांपरत
नानी बिन ननिहाल नरां।
ओखद बिन वैद वसन बिन अंग ज्यूं,
भायां बिन जिम वास भणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी
घर बेटी बिन जेम गिणो।।५

गौरख बिन ग्यांन धीज बिन धरती,
बीज बिनां जिम फसल बही।
किरसण बिन जाट हुनर बिन किसबी,
कीरत बिन नर जनम कही।
वित रै बिन ब्याव बिनां बल़ वीरत,
तीजणियां बिन तीजपणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी,
घर बेटी बिन जेम गिणो।।६

गाछां बिन बाग राग बिन गायन,
आघ बिनां मनवार इसी।
विद्या बिन पुरख शील बिन वनिता,
रत तपस्या बिन जांण रिसी।
विनय बिन सिस्स विग्गर सुर वासव,
महंत बिनां मठ जेम मुणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी
घर बेटी बिन जेम गिणो।।७

मूरत बिन मंदर साहस बिन म्रिगपत,
जोगी जो बिन जोग जिको।
वाणिक बिन विणज ग्यांन बिन बांमण,
त्याग बिनां रजपूत तिको।
चारण बिन साच मेल़ बिन चरचा,
सलिल बिनां जिम मीन सुणो।
गिरधर कवियांण सुणी कथ गहरी
घर बेटी बिन जेम गिणो।।८

।।छप्पय।।
विद्या बिन जिम बात, दान बिन ही जिम दाता।
भ्रात बिनां जिम भात, नेह बिन किसड़ो नाता।
जल़ बिन जीवण जोय, अरक बिन किसो उजासो।
तिल्ल बिनां किथ तेल, बंधव बिन किसड़ो वासो।
कवियांण गीध इम ही कहै, बेल बेटी है वंश री
स्नेह रै नीर सींचो सदा, केड़ विनासी कंस री।।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.