गज़ल-कलम कागद लाव बीरा!

उठै मन में भाव बीरा!
कलम कागद लाव बीरा!
दूर बैठौ पोल़ में क्यूं,
आव घर में आव बीरा!
करे संको मती मन में,
सहज दे प्रतिभाव बीरा!
तान लय री छेड नें थूं,
गीत गज़लां गाव बीरा!
भाव है मोटौ ठिकाणौ,
शबद वड उमराव बीरा!
झूझणा- रण, जोध रांगड,
मूंछ पर दे ताव बीरा!
मंडी चौपड जिंदगी री,
खेल दुय इक दाव बीरा!
स्हैर जाय’र गांव नें क्यूं,
भूलियो थूं साव बीरा!
आंबली, बड,पीपली री,
बैठ शीतल़ छाँव बीरा!
भींत हिव में थूं चुणाय’र,
कर मती अलगाव बीरा!
काग सो मन ,तन वल़ै बक,
हंस रो दरसाव बीरा!
गीत गज़लां सुण’ नपा ‘ नें,
रीझ दे सरपाव बीरा!

©वैतालिक

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