गज़लें : वैतालिक कृत

🌹डिंगळ🌹
सुंदर मायड भाषा डिंगळ।
जीवन री परिभाषा डिंगळ॥1
वातां ख्यातां गीत वेलीयां ,
रामत कामड रासा डिंगळ।2
शूर सती संतां री कविता,
जिण री सांसउछासां डिंगळ।3
घणी उडीकां अर ओळूमय,
रचिया बारहमासा डिंगळ।4
नीर बिरहणी नयणां खळकै
भर्या भाव चौमासा डिंगळ।5
रज्जब सुंदर पीपा मीरा
जांभा दादू दासा डिंगळ॥6
सूरज मल इसर बांकी री,
वीरां रस री भाषा डिंगळ॥7
चारण बामण जाट बाणिया,
सब जाती री भाषा डिंगळ।8
जैपर बीकाणां जोधाणा,
जेसाणां री भासा डिंगळ।9
आवड करनल खोडल मां रा
परवाडा री भाषा डिंगळ।10
दूरगा पातळ दुरसा पीथळ
धाय-पना भामाशा डिंगळ।11
शेखावाटी ढूंढाडी अर,
मारवाड री भाषा डिंगळ।12
भाव प्रणव लय छंदा वाळी
इनद्र धनुष जळरासा डिंगळ।13
हिचकी घुमर झेडर मूमल,
लोकगीत मधुरा शा डिंगळ।14
उछ्छब आंसू सपनां यादां,
आशा और निराशा डिंगळ।15
तार छेडणी मनरा तन रा
अंतस करे उजासा डिंगळ।16
नरपत नित रसपान करे पण,
मीटे न कविता -प्यासा डिंगळ॥17
🌹गज़ल मन मे रमीं है🌹
जबर जाजम जमी है।
फकत थारी कमी है॥
अबै दीसे न पाबू
न घोडी काळमी है॥
मुखौटां पर मुखौटा,
डमी सब आदमी है॥
पडी है औस बूंदां,
के बिरहण री ग़मी है॥
औ मिल़णौं संस्कृति रो,
गंगा अर ज़म ज़मी है॥
अलख आराधकां रे,
न शब्दां री कमी है॥
पछै आखर में मांड्या,
ग़जल मन में रमीं है॥
🌹लिखूंला🌹
म्है खत थांनै आज लिखूं सा।
मत व्हैजो नाराज लिखूं सा।
कदे शिकायत थें मत कीजो,
घणै मान सूं राज लिखूं सा।
थांरी सूरत रा हेताळू,
अजब गजब अंदाज लिखूं सा।
मन री बातां खोल बतासूं
खरा ज आखर आज, लिखूं सा।
मन मंदिर मंह झालर बाजै,
साजण झांझ पखाज लिखूं सा।
जबर आप जमिया मन मांहि
कयूं दिल रा सिरताज लिखूं सा।
मन रंग थळ मे निरत करो थें
उण री कविता आज लिखूं सा।
“नरपत” मन तिरपत नी होवै,
आखर हूं बधताज लिखूं सा।
🌹एकर मिल़वा आव सजण रे🌹
एकर मिळवा आव सजणरे।
फोगट मत तरसाव सजणरे॥
आवण सावण कहने चाल्यौ,
झूठौ मूठौ साव सजणरे।
आडंबर सूं घणौ भर्यौडौ,
भोळै दिल दरसाव सजणरे।
विरह तावडौ धोम धखंतौ,
शीतल़ घर नी छांव सजणरे।
थांरे बिन मन नगरी सूनी,
अंतस रा उमराव सजणरे।
थुं आयां एडौ लागै,
मिल़िया लाख पसाव सजण रे।
थांरे बिन मन चैन पडै नी,
दिल सूं लग्यौ लगाव सजण रे।
मीरां रे प्रभु गिरधर नागर,
म्हारै इम तौ नांव सजण रे।
ढौल पीट कहुं प्रणय न कीजौ,
इण गैलां रे गांव सजण रे।
भूल चूक री माफी चाहूं,
पडूं सदा तव पाव सजण रे।
आखर अंतस सू उमडै है,
मत दे गज़लां नांव सजण रे॥