गीत गिरधर दान जी सा दासोड़ी री काव्य प्रतिभा रो-जगमाल सिंह ज्वाला रचित
गिरधर दान जी सा दासोड़ी, आपरी काव्य प्रतिभा ने नमन करता थका आपरे श्री चरणों में आ गीत राखु। म्हे जेड़ो देख्यो अर सुण्यो वा ओपमा देवण री कोशिस करी।
शेल पर दिखे ज्यो चमकतो चाँद लो।
एम ही गिरधर आखरां ओपे।
गद्य री पद्य री जाण अति गूढ़ता।
रस में झाड़ रा झाड़ तू रोपे।1।
गहन अरु गंभीर गोठवे गिरधर।
टाळमा आखर आद ही टेरे।
मणि ज्यो शब्द ज आपरा मूळकता।
हरखेय सूरज तूळसी हेरे।2।
रचना शारदा लेवे नित राहडा।
चौसठ जोगण रम्मती साथै।
ओळ घोळ होवती आखरा ऊपर।
मोमोय राजी छंद रे माथे।3।।
मणकाय पिरोवे रतन घण मुहंगा।
रतनू सागर गोहर सब रोळे।
हीर ज्यो नह कोई मोल इण हाटडी।
ताकड़ी केथ जो शब्द ए तोले।4।
शिव जटा हुँत गंग ज्यो छिकळे।
धरती उपरे पड़े जिम धारा।।
बळती लुआ बिच बजे हिम वायरो।
ठरे काळजो सुण छंद ए थारा।5।
हेम जड़योडा नंग ज्यो जळ हळे।
उजळो दिसे नभ भाण उदोती।
एम ही शोभत आखर आपरा।
झबके मावस रात में जोती।।6।
देव जाति घर जनम्यो दासोडी।
पुषप गिरधर नाम प्रकासी।
“जगमाल”कहे जस रहो तव जगो जग।
रहे नित शारदा आप पे राजी।।7।
~~जगमाल सिंह ज्वाला