गीत जात अरटीयो-जगमाल सिंह ‘ज्वाला’ कृत
सोच रहयो हर रोज सीतावर, कैसा खेल रचाया।
मिळे कठे हर खोजो मंदिर,अजु समझ नही आया।1।
लोग कहे ओ मीरां ने लाधो,सुरती जाय समाणी।
आवत जात दिखी नह आँखे,पाणी मिळयो पाणी।2।
ईसर दास तो हतो खुद ईसर,घोडा समद धुमाया।
परभु य आय बांह ते पकड़ी,ले झट गळे लगाया।3।
हतो दूर तोय वचायो हाथी,गजब दौड़ गिरधारी।
आग विचाळे आप उबार्या,बछिया सोय बिलारी।4।
भारथ जुध मंडीयो हद भारी,पंछी करे पुकारा।
हस्ती घण्ट टुटियो हाफेय।अंडा आप उबारा।5।
धायल गिद्ध जद पड़यो घिरड़के,निजरे आप निहारा।
पिंडदान करयो परमेसर,आखर आय उबारा।6।
सबरी भील ओ जात री साची,राम रिदै नित राखे।
प्रेम वश जीमेय पुरषोतम,सब ऐठा फळ चाखे।7।
सेन भगत तो चरणा रो चाकर,दिसे रोज दरबारा।
काज सेन रे तू करुणाकर,दइ दोट नृप द्वारा।8।
मनवा सोच सब मेट मन माहीं,करे जके करतारा।
भगवंत सदा भगतो रो भीरु,सकल जाणत संसारा।9।
” जगमाल” सोच करे काय जीवन।खेवे खेवणहारा।
राम नाम रुदिया में राखे,उतरे भवजल पारा।10।
जगमाल सिंह ‘ज्वाला’ कृत