गीत सोहणो, शक्तिदानजी कविया (बिराई) रो
गीत सोहणो, शक्तिदानजी कविया (बिराई) रो
गोविंद सुतन बिराई गुणियण, सगत कवि कवियांण सिरै।
मोटा पात वरण सह मांनै, कीरत सारी धरण करै।।
कथिया विमळ कायब इम कवियै, कायम है सो बात कही।
जाझा मांण महि सह जांणै, सारद बगसी बांण सही।।
आगर गुण आखां अनुरागी, गाहक भागी साच गुणां।
पागी कवत्त डींगळा पूरो, सुरसत सागी सुवन सुणां।।
आदू रीत धरा उजवाळै, पाळै थिरचक प्रीत पुणां।
मरदां मीत कव्यां मनमेळू, मांझी ओ जस जीत मुणां।।
चारण धरम रुखाळण चावो, कव ठावो वंस नाम करै।
पहुमी सुजस मिळै यूं पातां, भू इण बातां साख भरै।।
सभा रूप भूपां रो साथी, जपियां कायब इमी झरै।
मोदै मनां तुहाळा मेळू, कव कवियै पर गुमर करै।।
दुथी पढै गीतड़ा डींगळ, सुण रीझै हर कोय सही।
उपजै अणंद उमंग हर उर में, कव तो देखी मांड कही।।
बातां, ख्यात बाहरू बेखां, रंग घणा कव ग्रंथ रचौ।
संचरी जगत जैण री सोरम, सारा खाटै मनां सचौ।।
संस्कृति री सोरम सांप्रत, जग में पसरी तठै जठै।
जिणमें लेख लाखीणा जोवो, इळ साखीणा लगै अठै।।
वसु सपूतां तणी बाखांणी, वांणी निरमळ गंग बही।
ठेळ आखरां वरणन ठावा, लावा पाठक पढै लही।।
दारू तणा गिणाया दूसण, सरल आखरां समझ सको।
नसा निवारण सीख नीत री, पह पढ सुधरै मिनख पको।।
धरा सुरंगी धिनो धाट री, कव जिण रो वरणाव कियो।
हमरोट तणी क्रीत इम हेतव, हित चित सांभळ हरख हियो।।
धोरां तणी धरोहर धिन-धिन, कीरत जिणरी साच करी।
विमळ धरा मोद री बातां, धुर पोथी में साच धरी।।
संपादन विद्वान सरावै, आवै सांभळ अंजस अमां।
कीरत जोग देख घण कारज, नितप्रत आरज रीत नमां।।
बहतै जुग डींगळ री वाटां, वीदग तूं अगवाण बहै।
चारण बिया तोर रा चीलां, लुळताई सिख भांत लहै।।
साचां नेह, मेह ज्यूं सुरपत, भीर सुपातां सदा भयो।
सगतीदान तणी सुण सोभा, कवियण गिरधर गीत कयो।।
~गिरधरदान रतनू ‘दासोड़ी’