अनीति सार – जगमाल सिंह ‘ज्वाला’कृत
🌷गीत सोरठियो🌷
करनल सामेय भिड़े कानो ज,भाग थारा भाळ।
मौन होयने य सुणजोय मानव,केम खींचे काळ।1
गामेय सामो ज भगेय गीदड़,मौत नेड़ी मान।
अकल चरवान जाय ऊखरड़ेय,उलट सूझे आन।2।
रावण सरीखोंय कोइ न राजा,घाली सीता घात।
धमरोळ लंकाय दीधी धमचक,वसु अजे विख्यात।3।
हिरणाख राजाय बहन होलीय,भाई लिधी भीर।
प्रहलाद री पत राखवा प्रभुछाती लीनी चीर।4।
बळवान राजाय हतोय बाळीज,भोम सों भयभीत।
सर राम साधयोय सखा सारू,चारो खाने चित।5।
दुशासन नेय सूझीय दुरमती,कुलट खेंचे केश।
कौरव वंश रो य हुओ काळोय,देखे दुनि रु देश।6।
काली अंधारी कोठरी केय,कारागृह यु कंस।
करी किरपाय जद कोख कानेय,विधुंस्यो ते वंश।7।
पेट पापी घण फेके पाशा य,दुनी देखे दाव।
जुआ भले चाहे कौरव जितया,आखर यु अनियाव।8।
खोदे पाधर जको ज खादराय,आपो पड़तु आप।
सुकरत कर धण संसार सामी य,घरम करतू धाप।9।
‘जगमाल’ खोटाय करे न जाणत,चले घण संभाळ।
अनीति हद घणो खोटोय आखर,तजे थू तत्काळ।10।