गोख खडी छै गोरडी

चंदा थारी चांदणी, कीकर पडगी मंद?
गोख खडी छै गोरडी, निरखण नें नँद नंद।।१
अली !कली सूं आज कल, रहे न क्यूं रति रंग?
राधा मिसरी री डल़ी, चली श्याम रै संग।२
कोयल किम कूकै नही?, पंचम सुर क्यूं मंद?’
गीत उगेरै गोरडी, रीझावण राजंद।।३
मोरा! मुरधर रा मणी, नाचै क्यूं न निशंक?
रमै गोखडै राधिका, फैलावै मन-पंख।।४
केहर थांनें किं हुयो, केथ गई कटि लंक?
नटवर ने निरखे खडी, ब्रजवामा भर अंक।।५
कूदै क्यूं न कुलांच भर, जोर आज मृग-झंप?
गोख उडीकै गोरडी, हिव म्हारै हडकंप।।६
बादल़ खडखड वीजल़ी, क्यूं नी काढै दंत?
खडी गोखडै गोरडी, मंद मंद मुल़कंत।।७
वहै वायरा मंद क्यूं, सोंधी लेय सुंगध?
मारग व्रज वनिता मिल़ी, अंतर भरियै अंग।।८
कविराजा कविता कठै?, छोड दिया क्यूं छंद?
मनहर मत्तगयंदगति, नें निरखै नँद नंद।।९
शाह, बांणिया, सोनियाँ, रो लूंटै गढ लंक।
कंचन वरणी कामणी, राधा कीधा रंक।।१०
©वैतालिक