गुण – गोगादे

।।दूहा।।
वरदे उकती वीणधर, सगती होय सहाय।
गुण वरणूं रच गोग रा, आयल कंठा आय।।1
लंबोदर शिव लाडला, गवर तणा गणपत्त।
कीरत वरणूं कमध री, आपै मूझ उकत्त।।2
सलखाहर वड सूरमो, साचो गोग सधीर।
वैर बाप रो वाल़ियो, कमधज रूप कँठीर।।3
बाप बंधु रै वैर सूं, कांनो करै कपूत।
गाढधारी भड़ गोग सा, रखै याद रजपूत।।4
चढियो अरियण चूंथबा, बधियो राखण बात।
गुणधारी इण गोग नै, महि जायो धिन मात।।5
सिंघ गोगा तूं संचर्यो, हिव सथ लिवी न हेड़।
वैर उगायो बाप रो, खरी उजाल़ी खेड़।।6
वीरमसुत वडपण बसू, जग सिर राखी जोग।
खाटी कीरत खागबल़, घड़ अरि भंजण गोग।।7
।।छंद – रूपमुकंद।।
अरजी अग चूंड अखी ज अरोहड़,
सोहड़ गोग रु भ्रात सजै।
खटकै पितु वैर उरां खल़ खंडण,
लोयण बात चितार लजै।
भुजपांण अपांण रचूं चढ भारथ,
धूहड़ मांण बधांण धड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।1
पितु वैर उगाहण गाजिय पाधर,
साजिय वाजिय सूर सही।
रणबंक निसंक हल्यो चढ रांगड़,
मांण दिरावण खेड़ मही।
चित तात तणो रिण गोग चितारिय,
खारिय अंतस माग खड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।2
खग धार जोयां कमधेस विखंडण,
मंडण जात रु तात मुदै।
खड़ हेवर तोर सजोर खतावल़,
वीर अयो दिन भांण वदै।
जमरांण समांन सथांन जम्यो जग,
बाघ मिर्गां जुथ मांय बड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।3
अब हुय सचेत दला रणआंगण,
भाल़ अरी इम गोग भणी।
पितु लेवण आज अयो चढ पाधर,
दूध पिलावियो मो दुथणी।
उठियो असल़ाक दलो तज अंतस,
आब बचावण आय अड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।4
कड़की किरमाल़ ज्यूं आभ कड़ाकड़,
बीजल़ घोर विछूट बही।
दलियो दुय टूक हुवो भट दाटक,
रांमत क्रांमत पूर रही।
इणभांत रच्यो घमसांण अडोबड़,
घांण कियो तन वेह घड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।5
वल़ियो पुनि वैर उगायर वीरत,
धीरत धार सधीर धरा।
सत फेर लछूसर हेर सरोवर,
हेवर चारण घास हरा।
उथ आप रियांण करी अपणा संग,
ओसर लार रिपू अपड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।6
दल़ रांणक जादम जोइया दोयण,
घेरिय घोटक जेण घड़ी।
सज घात पियो अरि नीर सरोवर,
नाटक राचिय नाच नड़ी।
सब तूटिय गोग तणै सिर सांमल़,
एकल हाकल वीर अड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।7
कटियो तन साथल़ लाग किरम्मर,
सम्मर जोस उफा़ण सही।
भगिया दल़ जादम माच भग्गदड़,
लाट सु कीरत गोग लही।
बहियै तरवार ज धीर तणै वप,
जाण तरव्वर पात झड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।8
उण वेर जलंधरनाथ जदै इम,
देख बडो वरदान दियो।
सिस मांन थल़ी बीच थांन शेखाल़ाय,
कीध दया विश्रांम कियो।
कवि गीध सुणी कथ कायब कीरत,
पात पढै नहीं पीड़ पड़ै।
चढियो जस काज पखां जल़ चाढण,
लाल चखां भड़ गोग लड़ै।।9
।।कल़स रो कवत्त।।
गुणधारी इम गोग, उरड़ दी अरियण आंटी।
चढियो तात चितार, मुरड़ जोयां नै मांटी।
वल़ियो लेयर वैर, लाख मुख कीरत लीधी।
धीरत उर में धार, कत्थ प्रिथमी में कीधी।
जल़ंधरनाथ सिस कीध जद, थांन शेखाल़ो थापियो।
सांभल़ी गल्ल जिम ही सधर, जस कव गिरधर जापियो।।
गुणधर वंशज गोग रो, लाखीणो लिछमाल।
लिख दीनी इणरी लगन, निजपण हुवो निहाल।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी