हां कवि दीठ माथो देवूंलो!!

कवि अर कविता रा प्रेमी इण धरा माथै ऐड़ा-ऐड़ा होया है कै आज ई उणां रै इण प्रेम री बात पढां तो छाती हेम होवै परी।
ऐड़ो ई एक कवि प्रेमी होयो गोकल़दास भाणावत।
मेवाड़ रै मोटै सिरायतां में शुमार गोकल़दास राणै उदयसिंह रै बेटे सगतसिंह रै बेटे भाण रो बेटो हो।
मेवाड़ रै इण वासी रो नानाणो मारवाड़ हो। मोटे राजा उदयसिंह री बेटी राजकंवर रो बेटो हो गोकल़दास।
महाभड़ गोकल़दास भीम सिसोदिये रो खास मर्जीदान हो जद भीम, बागी शाहजादे खुर्रम रै कानी सूं लड़ै हो उण बखत गोकल़दास रै घणा घाव लागा जिणसूं घायल होयो जद गजसिंहजी इणनै जोधपुर ले आया अर पाटा कराय साजो कियो तो साथै ई राहिण रो पटो ई दियो।
गोकल़़दास री इण लड़ाई में बताई वीरता री साख भरतां कवि चतरो मोतीसर लिखे कै – “हे गोकल़दास थारै हाथां री जकै माथै मार पड़ी है उणरा किणी गत घाव नीं मिलेला” –
सगताहरा तणै समरांगण,
वणिया तन व्है खंड विहंड।
रूक न लागा तियां रावतां,
पीड़ा मिटै नह तियां पिंड।।
पछै गोकल़दास पातसाह शाहजहां रै रैयो।
बात चालै कै एकर पातसाह शाहजहां अजमेर आयोड़ो हो। जठै उणरा डेरा होया उठै ई पाखती कोई चारणां री जान ठंभ्योड़ी ही। चारण कवेसर आपरी ओजस्वी वाणी में कविता अर बातां-विगत करै हा। पातसाह रो इणां री बातां सूं मनरंजन रै साथै मनमंजन होयो। वो रीझियो अर आपरै आदम्यां नै कैयो कै – “इणां रो धरम बदल़ावो। ऐड़ा सुघड़, चातरक अर बातपोस आदमी तो आपांरै धरम में होणा चाहीजै!! आज इणां री बातां सुणी जद ठाह लागो कै राजपूत इणांनै हिरदै रा ताईत करर क्यूं राखै!!
इणां रै मौजीज आदमी नै कैय दो कै धरम बदल़ो अर आदमी दीठ लाख पसाव पावो।” आदम्यां जाय चारणां नै कैयो कै-
“पातसाह थांरी बातां रीझियो सो थांनै धरम बदल़ाय आपरै धरम में लेसी अर आदमी दीठ लाख पसाव देसी!!”
चारण गताघम में फसग्या आगै कुवो अर लारै खाई वाल़ी बात होयगी!! चारणां नै काठमना अर पाछपगा देखिया जणै मुगलां नजरकैद किया अर विवेक सूं निर्णय लेवण सारू बखत दियो।
चारणां माथै आई इण आफत री बात सावर रै धणी गोकल़दास कनै पूगी तो वो अजेज आपरो साथ ले अजमेर आय पातसाह सूं मिलियो अर कैयो कै-
“चारण तो म्हांरै जीवजड़ी है! म्हांरी सौभा इणां सूं ईज बणै। म्हे इणां बिनां अडोल़ा हां सो इणां नै जबरन धरम नीं बदल़ायो जावै। बदल़ै आप जको ई चावो वो हूं भरण नै त्यार हूं!!”
पातसाह कैयो – “नीं धणियां व्हाला वे चोरां ई व्हाला!! म्है ई आज जाणियो हूं कै चारण कांई होवै अर राजपूत इणां नै इतरा व्हाला क्यूं मानै? भला, नेकी वाल़ा अर साफमन रा मिनख है सो हूं इणां नै धरम पल़टाय म्हारै साथै ले जासूं अर पूगतो माण देसूं!!”
आ सुण गोकल़दास कैयो – “हुकम आक रो कीड़ो आक सूं राजी अर आम रो कीड़ो आम सूं राजी!! पछै ऐ तो धरम रुखाल़ा है। धरम री धजा अडग राखण नै मरणो आंरै सारू हंसी-खेल है। ऐ मर पूरा देला पण धरम नीं छोडेला!! पछै ऐ मरैला तो म्हे ई जीवता रैयर कांई करांला? सो इणां रै बदल़ै में जको कैवोला वो हाजर है।”
जणै पातसाह कैयो कै – “इयां ! आ बात है! तो तूं अठै जका चारण है उणांनै छोडावण सारू मिनख दीठ माथा दे!!”
बस! इतरी ईज बात है हुकम ! ल़ो त्यारी करावो देवीपुत्रां रै बदल़ै में म्हांरा माथा लेवण री! गोकल़दास कैय आपरै आदम्यां नै कैयो – “लो ऐ तो सूंघा ई छूटा ! आदमी दीठ आपां रा माथा दो। गोकल़दास रो कैणो होयो अर गोकल़दास रै मिनखां चारणां रै बदल़ै माथा दैणा शुरू किया। ओ कौतक देख पातसाह ई ढीलो पड़ियो अर कैयो -“बस! बस! अब माथा मत दो। म्है मानग्यो। जकै इणगत माथा देवै वे ईज आपरै अठै चारण राख सकै। साचाणी चारण राखणा मूंघां है। ओ काम ऐ राजपूत ई कर सकै जिकै चारणां रो मोल आपरै माथै सूं बतो जाणै।
गोकल़दास री इण अमिट बात री साख भरतां किणी कवेसर लिख्यो है–
बादशाह हूंत कैयो छोडजै इणांनै बेगा,
ऐन छाडै हिंदू ध्रम विनादी आफेक।
कह्यो साह भांणनंद पातवां छुडावो किसां,
ऐक-ऐक प्रति चाहां माथो ऐक-ऐक।।
सुणै बांण गोकल़ेस पैजबंध हुवौ सागै,
कीधी बात सारी पातसाह री कबूल।
क्रीत काज दीधा सीस सांमंतां उतार केही,
दैण लागै जाणै प्रभु द्रोपदा दुकूल।।
गोकल़दास री कवियां रै प्रति उण ऊजल़ी प्रीत नै वीरभाणजी रतनू आपरै इण आखरां पिरोय अमर की-
पंछी दे सिर पाव, तोहि तरवर न उडाड़ै।
मच्छ गल़ील हुवै, तोहि सरवर नह ताड़ै।
अहि चंदण विख भरै, चँदन बावनो न वारै।
छौरू दाखै छेह, तोई मावित न मारै।
भाणरो जाण भूपत भगड़, पह मोटो चित्रौड़पत्त।
वीनड़ै सुकव विरचै नहीं, गोकल़राण हमीरवत्त।।
गोकल़दास जद वीरगत वरी तो किणी कवि कितरी मर्मस्पर्शी बात कैयी-
गोकल़ हेक गमेह, एक गमे हिंदू अवर।
सत तोलियो समेह, भार कहिंक भो भाणवत।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”