हाथ वीजा को पकड़जो!

मध्यकाल़ रो इतियास पढां तो एक बात साव चड़ूड़ निगै आवै कै उण बखत रा लोग आपरै सिंद्धांतां माथै जीवता अर मरता। किणीपण स्थिति में सिंद्धातां साथै समझौतो नीं करता। जिणरो अन्नजल़ करता उणरै सारू आपरो माथो हथेल़ी में हाजर राखता। यूं तो उण समय स्वामीभक्ति अर स्वाभिमान ऐ दो ऐड़ा जीवणमूल्य हा जिणांनै लगैटगै सगल़ा मिनख कायम राखता पण जद आपां इण विषय रा चारणां सूं संबंधित दाखला पढां तो आपांनै लागै कै स्वामिभक्ति अर चारण एक दूजै रा पर्याय हा। ओ ई कारण हो कै मारवाड़ रा धणी मानसिंहजी निशंक कह्यो हो कै-

‘स्वामिभक्त सत्यवक्ता रू वचनसिद्ध।’

यानी स्वामीभक्ति री आखड़ी जिणगत चारणां निभाई वैड़ी दूजां सूं कम ई ताबै आई। आ बात बिनां किणी शंकै री कैयी जा सकै कै इतियास में चारणां माथै पाटघात करण या आपरै स्वामी रै साथै द्रोह रो एक ई दाखलो शायद ई मिलतो हुवै।

इण विषय में देवकरणजी बारठ सही ई लिख्यो है कै ईश्वर आपरै हाथ सूं मिनख रा करिया सगल़ा सतकर्म तोलती बखत एकै चेल़ै सामधरम अर बाकी रा करम एकै कानी घालै पण तोई सामधरम रो चेल़ो झुकतो रैवै-

करता अपणै हाथ सूं, तोलै सबै करम्म।
सौ सुकृत इक पालणै, बीजै सामधरम्म।।

किणी बीजै कवि लिख्यो है कै जिणगत दूध अगन माथै नीं बल़ै जदतक उणमें पाणी री मात्रा मौजूद है। उणीभांत जदतक साम रै साथै राजपूत है जदतक उणरै जीव नै झोखो नीं क्यूंकै-

साम उबारै सांकड़ै, रजपूतां एह रीत।
जबलग पाणी आवटै, तबलग दूध नचीत।।

सामधरम री सीख माथै कायम रैय आपरी तीख री बधीक सिद्ध करणियां में अलूजी कविया रै पोतरां रो नाम अंजसजोग है।
डिंगल़ गीतां में दाखला मिलै कै केवल़ अलूजी रै बेटे नरूजी री संतति में 55 सूरमा सामधरम उजाल़’र सुरग पूगा। पूगणा ईज हा। क्यूंकै नरूजी ई वीर मिनख हा अर खुद सामधरम निभावतां वीरगति वरी।

किणी कवि लिख्यो है कै जिणभात गोपाल़ (गोपाल़दासजी चांपावत) रा पोतरा खाग रा रसिया हुया उणीगत नरपाल (नरूजी कविया) रा जायोड़ा ई खाग सूं खेलणिया हुया अर पीढी-पीढी इण बात नै कायम राखतां थकां पचपन वीरां साम रै कारण अछरां सूं गंठजोड़ो कियो-

मही सिर बात अखियात राखै मुवा,
झूझ मझ सांवंत गोपाल़ जाया।
पांच कम साठ नरपाल़ रा पोतरा,
आठ पीढी महीं काम आया।।

यूं तो ऐ पचपन रा पचपन वीर घणा चावा है अर हरएक रो ऊजल़ियो इतियास है अर जिणां माथै विस्तार सूं लिखीज सकै पण इणांमें महादानजी कविया अर इणांरो बेटो हिंदूजी कीं बधीक हुया। इणां री बधताई बतावतां किणी कवि लिख्यो है कै जिणभांत बलू (बलूजी चांपावत) रै पोतरां रणांगण में आपाण बतायो उणीगत अलू (अलूजी कविया) रै पोतरां ई समर में माण पायो। जिणभांत लाख रा पटायत यानी गोपाल़ रै पोतां खाग सूं प्रीत राखी उणी भांत नरू री जिण (संतति) ई रण में कुल़रीत पाल़ी। इणां दूजां रै साथै ई महादान अर हींदोल (हिंदूजी) घणा चावा है-

समर लखै विकराल़ बधिया हाक सौ सुणां,
जड़ी खिणां चौगुणा विरद जसड़ी।
बलू रणोतरां करी आगे वल़ै,
अलू रा पोतरां करी इसड़ी।।

ऊछजै मान चैनो बुधो आथड़ै,
सूर महादान हींदोल जिसड़ा।
पटायत लाख रा खाग रा भंवर पण,
त्याग रा बंटायत हुवा तिसड़ा।।

इण महासूरमां बाप-बेटे रै पेटे बात आ है कै तूल़ी का चारणवास गांम रा चारण हरिरामजी कविया रै महादानजी हुया। महादानजी मरजादा रा कोट अर सामधरम पाल़णिया मिनख हा। इणांरै अर दांते ठाकुर गुमानसिंहजी रै गाढो हेत। महादानजी अठै ई रैवै। दो शरीर एक प्राण। गुमानसिंहजी रा साढू हा खंडेला रा राजा उदयसिंहजी।

गुमानसिंहजी काव्यप्रेमी अर आपरी रा खाऊ मिनख हा। खंडेला राजाजी उणांरी कीं प्रसिद्धि तो कीं दांते नै खंडेला में मिलावण री नीत सूं उणां रै साथै मन ही मन अदावदी राखता। आ बात दूरदर्शी महादानजी जाणता सो जद ई गुमानसिंहजी खंडेला पधारता तो महादानजी साथै रैवता। कदै ई भरोसो नीं करता तो साथै ई आ भोल़ावण ई देता कै भूल’र ई कदै ई एकला खंडेला मत जाया।

जोग सूं एक दिन महादानजी उठै नीं हा अर गुमानसिंहजी नै राजाजी रो बुलावो आयो सो वै घोड़ै चढ’र खंडेला गया परा।

ज्यूं ई ठाकुर उठै पूगा अर राजाजी सूं मिलिया तो उणांरी आत्मा लखगी कै शेखै नै भातो आयग्यो है अर्थात विश्वासघात निसचै ई हुसी। पण हमें कोई चारो नीं। करै तो कांई करै?

अठीनै महादानजी री आत्मा ई उचटगी कै आज ठाकुरां रै साथै कोई अजोगती हुसी। उवै आपरै बेटे हिंदूजी नै साथै लेय’र दांते आया। आवतां ई उणांनै ठाह लागो कै ठाकुर खंडेले गया है। उणां बिनां जेज कियां आपरै बेटे नै कह्यो कै-
“बेटा हिंदू! घोड़ियां माथै सूं जीण उतारै मत! खंडेले रै मारग खड़। ”

दोनूं बाप बेटो घोड़ियां सवार हुय’र खंडेला पूगा। पूगतां ई बिनां बखत खोयां उणां आव देख्यो न कोई ताव। दोनूं भींत कूद’र उठै पूगा जठै ठाकुर साहब रै साथै विश्वासघात हुवण वाल़ो ईज हो।

ठाकुर साहब ज्यूं बाप-बेटा नै उठै देखिया तो उणांरी आंख्यां चमकगी। जीव में जीव आयो अर बोल्या कै-
“बाजीसा आप अठै?”

आ सुणतां ई महादानजी कह्यो कै हमे हथाई करूं कै आपनै ओल़भो दूं जितरो समय नीं है। थे म्हारै खांधै पग देय’र ई भींत कूदो अर नीचै घोड़ियां ऊभी है जको एक माथै चढ’र दांते बेगे सूं बेगा पूगो जिकी बात करो।”

“इयां किंया हुय सकै? हूं निकल़ू अर थे लारै रैवो! ओपती नीं।”
ठाकुरां कह्यो तो महादानजी पाछो कह्यो कै-
“राज रै नीकल़ियां दांतो कुशल़ रैसी। म्हांरी चिंता मत करो।”

महादानजी रै आ कैतां ई गुमानसिंहजी उणांरै खांधां पग देय’र भींत डाकी। नीचै कूदतां ई उणां भल़ै कह्यो कै-
“लो बाजीसा हाथ पकड़ावो!”

आ सुणतां ई महादानजी कह्यो कै-
“हमै हाथ म्हारो नीं
हाथ वीजा को पकड़जो!”

उल्लेखजोग है कै वीजोजी, महादानजी रा छोटा बेटा हा अर उवै उण दिन लारै घरै हा। महादानजी जाणतां कै उवांरो अर बेटे हिंदू रो हमें खंडेले सूं पाछो दांते कुशल़ पूगणो हरगिज नीं हुवै क्यूंकै-

प्राण पियारा नह गिणै, सुजस पियारा ज्यांह।
सिर ऊपर रूठा फिरै, दई डरप्पै त्यांह।।

उणां पाछो कह्यो कै “ठाकुरां अबै आप जेज मत लगावो। म्हांरी चिंता छोडो। म्हैं जीवतो रह्यो तो दांते आय मुजरो करसूं अर सुरग पूगो तो उठै आपनै उडीकसूं।”

ओ वार्तालाप सुण घावड़िया सचेत हुया। घावड़ियां री सुल़बुल़ सुणतां ई ठाकुर गुमानसिंहजी दांते कानी आपरी घोड़ी खड़ी पण दोनूं कविया उठै सूं निकल़ नीं सकिया।

अठीनै हाको हुयो कै कोई दांते सूं दो राजपूत आया है अर ठाकुरां नै इणगत भींत कुदायदी पण खुद पाछा हत्थो डाकै हा जितरै मांयां घेरीजग्या। खंडेला राजाजी हुकम दियो कै-
“उठै अल़ीतो लगा दियो जावै। है जको ई अबै निकल़ नीं पावै।”

जद महादानजी आपरै बेटे हिंदूजी नै कह्यो कै-
“बेटा तूं ई म्हारै खांधै पग देय’र निकल़।”

जणै हिंदूजी कह्यो कै “दाता!आ कीकर हुय सकै? बाप नै मोत रै मूंडै में धकेल’र नाठूं! कांई फरजन रो ई कर्तव्य हुवै? कांई हूं जगत में इण कैताणै नै परतख साचो करूं कै आप मरतां बाप किणनै ई याद नीं आवै। अर अठै सूं निकल़’र पछै कांई हूं अमर होऊंलो? हूं ओ कल़ंक नीं लगा सकूं।
आप म्हारै खांधै पग दिरावो अर निकल़ो परा। बाप नै बचावणो बेटे रो धरम बणै।”

महादानजी खुद ई भींत डाकण अर बेटे नै डकावण री खेचल करी पण शरीर सूं भारी हा सो हत्थै सूं बारै निकल़ नीं सकिया अर लाय री चपेट में आयग्या पण हिंदूजी खंडेले रा केई मिनखां नै खांडेला देय वीरगत वरी।

इण विषय में किणी कवि लिख्यो है कै गर्विले गुमानसिंह नै जद वैरी काटण लागा तद दो चारण तांते चढ्या अर्थात असिधारां सूं सांपड़िया अर उणांरै पाण ई ठाकुरां दौड़’र दांतो नैड़ो लियो–

गायड़मल गुमान री, काटै छा कर कोड़।
चारण दो तांतै चढ्या, (जणै) दांतो लीनो दौड़।।

हिंदूजी री वीरता री बात जद उणांरी मा सुणी तो आपरै दूध माथै करतां आपरी बहुआरी (हिंदूजी की पत्नी) नै पूछ्यो कै-
“उण लड़ाई में म्हारै हिंदू कितां नै ढाया?”

जणै उणांरी पत्नी आपरै सुहाग माथै मोद करतां कह्यो कै
“माजी ! म्हांनै इण बातरो बेरो (ठाह) नीं। आ बात थे पूरी जाणणी चावो जणै दांते जाय’र पूछो। दांतो ई इण बात रो सावजोग जाब दैसी कै हिंदू उठै कितरां रो घाण कियो?”

इण सतोलै भावां नै किणी कवि ऐ शब्द दिया है–

सासू पूछै हेत सूं, हींदू किताक ढाय।
म्हांने तो बेरो नहीं, (थे) दांते पूछो जाय।।

दांते रै सारू दोनूं बाप-बेटो मोत रो वरण करग्या पण सामधरम रा सेहरा बणग्या।

जद खंडेला ठाकुर उदयसिंहजी नै आ बात ठाह लागी कै गुमानसिंहजी नै बचावण खातर दो राजपूतां नीं अपितु सामधरमी चारणां मोत वरी है। जिणां मांय सूं एक महादानजी तो जीवता लाय में बल़ग्या अर उणांरो सपूत दांतै ठाकुर सारू खंडेले रै वीरां सूं दो-दो हाथ कर’र सुरग पूगो। ठाकुरां नै इण बात रो घणो पिछतावो हुयो।

थोड़ै दिनां पछै उणां महादानजी रा बेटा विजैरामजी नै बुलाय, पिछतावो दरसायो अर ‘उदयपुरा’ गांम सांसण में दियो। जठै विजैरामजी आपरै किरसै चोखारामजी मुआल़ (जाटों की एक शाखा) नै बसाया। चोखारामजी ई मन रा मोटा मिनख हा। घणो धीणो अर घणो धान। आए गए री घणी खातरी करता। आयो गयो उठै घणो ठैरतो। लोग उण जागा नै ‘चोखो को बास’ कैवण लागा। होल़ै होल़ै लोग ‘उदयपुरा’ तो भूलग्या अर ‘चोखा को बास’ रै नाम सूं जाणण लागा। आज ओ गांम इणी नाम सूं जाणीजै।

गुमानसिंहजी विजैरामजी नै ‘गुमानपुरा’ दियो जको आज ई इणी नाम सूं जाणीजै।

भलांई उवो बखत बीतग्यो पण लोककंठां में गर्विली गाथा आज ई जीवित है।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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