हम भारत के युवा

विश्वधरा पर ज्ञानदेव के सबसे बड़े पुजारी हैं।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।
सागर से गहराई सीखी, हिमगिरि से दृढताई सीखी।
नदियों से हिलमिल कर चलना, फूलों से तरुणाई सीखी।
तारों से मुस्कान, दीप स,े कर्म दृष्टि उद्दात मिली है।
भारत भू के इक-इक कण से, साहस की सौगात मिली है।
वीर शिवा के वंशज हैं हम, शक्ति शौर्य हमारी है।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।
सूरज से प्रचंड तेज ले, विश्व गगन में हम दमके हैं।
अंधकार अभिशप्त अभ्र में, चंदा बनकर हम चमके हैं।
बादल से हम प्रीत सीखते, धरा प्रतीति सिखाती है।
हमें किसी ‘वेलैंटाइन’ की, लव यू नहीं लुभाती है।
जन्म-जन्म तक साथ निभाने वाली कसम हमारी है।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।
परंपरा के प्रबल पुजारी, बन कर संस्कार-संवाहक।
रूढ़ नहीं हम मूढ़ नहीं हम, गूढ़ ज्ञान के गहरे गाहक।
समयशंख का नाद समझकर, वाद पुराने झट से छोड़े।
नव-आगत का स्वागत करके, संकरे सांचे हमने तोड़े।
अखिल विश्व पर ज्ञान-तिरंगा, फहराने की बारी है।
हम भारत के युवा हमारी, मेधा सब पर भारी है।।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”