हनुमान वंदना

🌺दोहा🌺
रे अनुरंगा राम रा, समदर लंघा सूर।
बजरंगा वड़ विक्रमा, दंगा सूं रख दूर।।१
माल़ा धर मंदार री, व्हाला घण रघुवीर।
तल काल़ा सिंदूर तन, सोहै तेल शरीर।।२
जस डंका लंका बजा, लड़ वंका लंगूर।
पूजाणौ पूरी प्रथी, महावीर मशहूर।।३
रघुनंदन रे नित ह्रदय, अंजनि नंदन आप।
वंदन इण सूं विकट भट, गंजण भंजण पाप।।४
सिंदुर तेला सूरमा, रे चेला रघुराव।
हेला कर कर हारियौ, दे ला कद दरसाव।।५
🌺छंद मोतीदाम🌺
असीम! नमो वपुभीम! अनंत!
सुसेवित-सिद्ध-रू-किन्नर संत!
महा वरवीर! महारणधीर!
सदा अनुरक्त-सिया रघुवीर!
कराल! नमो वपु-बाल! कृपाल!
महाभड़! मानस-मंजु-मराल!
महागुणवान! कपीश! महान! नमो हड़ुमान नमो हड़ुमान! १
नमो ह्रदि-मंजुल-राम निवास!
नमो खल-डाकिनी-दुष्ट विनाश!
हनू! बजराक! वजै धर हाक!
खल़ां पर वाहत खाग खटाक!
भयंकर प्रेत भगावण भूत!
अनंत पराक्रम शौर्य अकूत!
नमो कवि! कोविद! नीति-प्रवीण!
गिरा-निगमागम-बुद्धि! गुणीन्!
नमो! रत-राम-सिया-गुणगान! नमो हड़ुमांन! नमो हड़ुमांन! २
विनाशक-नाशक बाग अशोक!
मिटावण राम सिया मन शोक!
नमो सुत-अंजनि! केहरि नंद!
महोदधि-लंघण! मेटण फंद!!
लपेट सु आग प्रजाल़ण लंक।
उठावण द्रौण गिरि निज अंक!
पछे लखणेश बचावण प्राण! नमो हड़ुमांन! नमो.हड़ुमान!!३
नमो हरि! मर्कट! वानरराज!
जयो! सियराम सुधारण काज!
नमो स्थितप्रज्ञ! बली! बजरंग!
नमो खल -रावण-भंजण अंग!
नमो तिल-सिंदुर-तेल प्रसन्न!
नमो जगव्यापक गुप्त, प्रछन्न!
सदा शुभ मंगल दैन सुजान! नमो हड़ुमांन! नमो हड़ुमांन!!४
ललाम वपू धर लाल लँगोट!
कलि दु:ख कष्ट ढहावण कोट।।
नमो सुत-रूद्र! डकार दिनेश!
निशाचर-गंजण रक्ष-मुनेश!
करं करवाल गदा शर धार!
करंत प्रहार! हुँकार हुँकार!
धरुं दिन रैन सु रावरौ ध्यान! नमो हड़ुमांन! नमो हड़ुमांन! ५
अजेय-पराक्रम-पौरूष आप!
नमो वरदाय! प्रजाल़ण पाप!
नमो! शरणागतवत्सल! देव!
रखो चरणं कपिराज सदैव!
यही विनति उर धारहु ईश!
महारजनीचरमार! मुनीश!
नमो गुण-आगर! नेह निधान! नमो हड़ुमान! नमो हड़ुमान!!६
नमो गति-उग्र! प्रचंड-समीर!
नमो कपि किंकर श्री रघुवीर!
नमो ललितंवपु वज्र सुदेह!
जयो सुख! सागर- शील-सनेह!
नमो वरभक्त प्रियं अवधेश!
निवारहु विध्न विदारहु क्लेष!
महामतिमान महागुणवान! नमो हड़ुमान! नमो हड़ुमान!!७
🌺कल़श छप्पय🌺
हुं हुं फट् हनुमान, सुख कुरू स्वाहा! स्वाहा!
कट कट कर कपि दंत, करै नित हू हू हाहा!
दल खल गंजण दुष्ट, राम सिय पद अनुरागी!
जय जय जय बजरंग, वंदना हे वितरागी!
कर जोरि विनय नरपत करै, राम कृपा सूं रीझियौ!
सुख, स्वास्थ्य, मोद, मंगल सकल, देव आप बस दीजियो।।
~~©नरपत वैतालिक