हर मा नै समर्पित – कुण जामण री होड करै

।।दूहो।।
महियल़ में माता समो, है न हुवो नह होय।
संशय मन जिणनै सही, दुरस देख चख दोय।।

।।छंद-रे़णकी।।
राखै नव मास उदर मँझ रक्षा,
सास सास हद कष्ट सहै।
सींचै तन वेल रगत सूं सांप्रत,
रीझ जिणी पर मुदित रहै।
खीजै नहीं, भाव भरण नित खम्या,
ध्यान आप सूं अधक धरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।1

श्रोणित निज पाय स्नेह री सरिता,
घोल़ै मिसरी कंठ घणी।
आंचल़ री छांह निहारत अपलक,
वाहर जाहर शीघ्र बणी।
कापण हर कष्ट सरब सुख सांपण,
झरणी नैणां लाड झरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।2

सांणै संतान साफ दिस सह दिन,
सूगलवाड़ै आप सुवै।
आंणै नहीं भेद खेद उर अपणै,
हरस सरस तन दरस हुवै।
सारी रह रात जागती सधरी,
खमा धार मन सार खरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,

कुण जामण री होड करै।।3
राखै नित बांह आह रखवाल़ी
चाह आपरी छोड चलै।
तोड़ण हर ताप दुवा निज ताईत,
पख हुय सारा दरद पलै।
तणनैं जिण काज करै जम टकरां,
डकर जैण री काल़ डरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।4

मूंडै रो कोर बाल़ मुख मांहे
मह देयर हद मोद मनै।
सैवत जिण तणी चपल़ता सुधमन,
क्रोध तणो नह बोध कनै।
जणणी वरसात सरद तप झालत,
उफ नह आंणत आप उरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।5

प्रथम गुरु मात पूजीजै प्रिथमी,
पितु दूसरो गुरु पुणां।
जणणी री ठौड़ लहे इण जग में,
समवड़ दूजो नाय सुणां।
जग में दे जलम तारदे जग सूं,
हार विकारन सबै हरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण,
कुण जामण री होड करै।।6

सत री दे सीख बतावण सतपथ
रंग कुल़ री इम तीख रखो।
किण सूं ई घात कदै नीं करणी,
अडर साच री बात अखो।
मोटी व्है मात लघु भगनी मन,
भाव बाल़ मन मात भरै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण
कुण जामण री होड करै।।7

जितरा महापुरस हुवा धर जोवो,
महर मात री मनो मही।
आंरै निरमाण कियो तन अरपण,
सतपण जणणी धार सही।
आयल सिरमोड़ मान इण अवनी,
कवियण गिरधर नमण करै।
थिगती जिण देह अडग कर थामण
कुण जामण री होड करै।।8

।।कवत्त।।
पुणूं मात परणाम, दया कर जगत दिखावण।
पुणूं मात परणाम, सदा सत बात सिखावण।
पुणूं मात परणाम, भाव घट नीती भरणी।
पुणूं मात परणाम, तरण भव दध री तरणी।
प्रणाम गीध निस दिन पुणै, परघल़ उठ परभात रै।।
सरब ही कष्ट टल़वै सदा, महि पड़ चरणां मातरै।।

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

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