हाथी रै दांतुसल़ां बींध्योड़ै वीर, हाथी रो कुंभस्थल़ चीरियो

राजस्थानी वीरां री वीरत री कीरत यूं ई नीं है। इणां बगत पड़ियां आपरो आपाण बतायो अर जगत में सुजस लियो। किणी कवि सही कैयो है कै “सिर पड़ियां खग सांभणा इण धरती उपजंत।” इणी वीरां री अतोल वीरता रै कारण शक्तिदानजी कविया इणां नै नर रत्न मानतां लिखियो कै मरू प्रांत रै रतनां मे वीर एक अमोल रतन है :-

संत सती अर सूरमा सुकवि साहूकार
पांच रतन मरू प्रांत सोभा सब संसार।।

सगल़ै संसार में इणां रै सुजस री सोरम पसरी थकी। ऐड़ो ई एक सूरमो होयो भाटी जोगीदास। भाटी जोगीदास जिकी वीरता बताई वा आज ई सुणियां वीरां नै अंजस री अनुभूति करावै अर कायरां नै डरावै।

जोगीदास भाटी,जोधपुर रै प्रधान आमात्य अर लवेरा रा ठाकुर गोयंददास भाटी रो सपूत अर बींझवाड़िया रो ठाकुर हो। भाटी जोगीदास एकर आमेर महाराजा मानसिंह री सेना मे दिखणाद कानी जावै हो। फौज आगै बढ रैयी ही कै एक मदमस्त हाथी बिगड़ गयो। उतपात करतो हाथी किणी रै काबू मे नीं आय रैयो हो संजोग सू उणी समय जोगीदास रो हाथी रै आगै सूं निकल़णो होयो कै उणी बगत हाथी जोगीदास माथै उरड़ियो अर घोड़ै माथै चढियै जोगीदास नै पटक आपरै दांतां मे पिरोय लियो। लोग देखता रेयग्या। किणी सूं कीं नीं होयो पण इण महाभड़ उणी बगत आपरी कटार काढी अर हाथी रै कुंभस्थल़ माथै तीन जोरदार घाव किया। इण घांवां सूं घायल होय हाथी जोगीदास नै छोड आगो होयो। लोग जोगीदास रै इण साहस अर कड़पाण नै देख दंग रैयग्या। इण घावां री पीड़ सूं जोगीदास उठै ई राम कियो।

कविराजा बांकीदासजी आपरी ख्यात में लिखै “गोइ़ददास रो बेटो जोगणीदास पटै गांम च्यारां सूं गांम बींझवाड़ियो, महाराजा सूरसिंह रो उमराव जिणांनूं राजा मान कछवाह रा चाकर दांतां मे पोयोड़ै तीन कटारी हाथी रै कूंभाथल़ बाही राम कह्यो संवत १६६८ पातसाह री फौज दिखणाद जावै जद।”

मानसिंह इण वीर रै अदम्य साहस सूं इता प्रभावित होया कै उणां वो हाथी सूरसिंह नै भेंट कर दियो। जोगीदास री वीरता री प्रसिद्धि च्यारां कानी पसरगी। महाराजा सूरसिंह आपरै दरबार मे समस्या पूर्ति सारू ओ पद्य राख्यो “जोगा री जमदड्ढ” अर कवियां नै पूरो करण रो आव्हान कियो।उठै रतनू जगमाल उठ इण समस्या नै इण भांत पूरी करी :-

कुंभाथल़ वाही किसी जोगा री जमदड्ढ।
जाण असाढी बीजल़ी काल़ै बादल़ कड्ढ।।
कवि लिखियो कै जोगीदास री कटारी निकल़र हाथी रै कुंभाथल़ बड़़ती अर निकल़ती उणी गत पल़ाव कियो जिण भांत असाढ महीणै मे काल़ै बादल़ मे बीजल़ी करै।

वाह रै बोकार साथै पूरी सभा जोगीदास री वीरता रा वारणा लिया। इण बात री साख समकालीन केई कवियां आपरै गीतां मे भरी है। इण गीतां मे मुक्त कंठ सूं प्रशंसा करतां कवियां इण वीर री वदनाजोग वीरता नै अखी कर दीनी। कवि जगमाल रतनू रै एक गीत री ऐ ओल़्यां किती सतोली है जिणां मे कवि लिखै कै एकै कानी असहनीय पीड़ा तो दूजै कानी कुल़वट री काण।उण बगत ओ वीर मूंडै आह नी लाय कटारी री बाह करी :-

फिरियै दिन डसण दुआं सूं फूटा
गिरतै असि हूंता ओगाढ।
तैं गजरूप कमल़ गोदावत
जोगीदास जड़ी जमदाढ।।
उभै डसण नीसरै अणि सिर
भाटी सराहे कर भूप।
वांकै दिन सूधी वाढाल़ी
रोपी सीस हसत जमरूप।।

आ घटना उण बगत घणी चावी होई सो लोगां मतोमती आपरै मत मुजब कथावां ठाय दी। गुजराती विद्वान झंवेरचंद आपरी कथावां मे इण घटना रो नायक उठै रो स्थानीय मानर लिखदी। जिणसूं इण राजस्थानी वीर री वीरता रो सही किस्सो अल्पज्ञात ही रैयग्यो। वीर भलांई कठै रो होवो बो सार्वभौमिक होवै पण उण रो सही अर तथ्यात्मक परिचय होवणो चाहीजै। आ घटना राजस्थानी जन मानस मे रची रसी बसी। जोगीदास री इण ऐतिहासिक घटना माथै डॉ शक्तिदान कविया रो लिखित “जोगीदास भाटी री कटारी “ नामक लेख ई पढणजोग है ।

 

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