इक टक उन को जब जब देखा – ग़ज़ल

इक टक उन को जब जब देखा।
हम ने उन मे ही रब देखा।।१
लोग पुकारे “निकला चंदा”
छत पर उनको कल शब देखा।।२
साँझ सकारे त़का उन्ही को,
आन उन्हीं के कुछ कब देखा?३
“मय के प्याले लगे छलकने”,
माह जबीं का जब लब देखा!!४
जिन के ख्वाबों में खोया था,
हाँ सचमुच उनको अब देखा!!५
हमनें सबसे रखीं यारियाँ,
सब नें मुझमें मतलब देखा!!६
फैल हो गए सभी पढाकू,
अज़ब इश्क का मक़तब देखा!!७
डोर हमारी हाथ लिए नित,
रब को करते करतब देखा।।८
सोने सा तन रहा दमकता,
रूप नया था जब जब देखा!!९
“नरपत” ढाले दर्द ग़ज़ल में,
दुनिया ने कब ये सब देखा।।१०
~~©नरपत आसिया “वैतालिक”