इणनैं ईज कैता रजपूती

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हींणप नहीं लाता संकट में, मन में हद धरता मजबूती।
सिर पड़ियां सूरा रण लड़ता, इणनैं ईज कैता रजपूती।।
पचिया बै देखो दिन रातां, भारत रो गौरव मंडण नैं।
परजा हित रक्षण रण बुवा, बै आततायां नैं डंडण नैं।
झुकिया नीं माथो दे दीनो, पण आंण बांण नैं राखी ही।
रगत सटै इज्जत बा देखो, मा बैनां री राखी ही।
महारिसी त्याग री मूरत, छिड़ियां बै विकराल़ होया।
देश तणो दुख दूर करण नैं, सूर अठै अणथाग होया।
राष्ट्र प्रेम रग रग में आंरै, पग पग ऐ ऐनाण पड़्या।
डकरेल नहीं ऐ डगमगिया, तिल तिल व्है संग्राम झड़्या।
बा नाम अमर इणभांत कर्यो, इतिहास भर्यो है अदभुती।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।1
माधव री मरजादा कारण, सूर मरण नैं संभिया हा।
जद हाथ हरि रै ऊपर बै, वैर्यां रा उठता ठंभिया हा।
धजा धरम री सारु अड़िया, ढाल़ रणांगण में गोडी।
भींतां में चिणिया गया मरद, पण आंण धरम री नीं छोडी।
लवलेस नहीं बै ललचाया, हद अडग बात सूं नीं हटिया।
जीया तो पाल़्यो बोल जरू, अर बोल सारु ई मर मिटिया।
घट घट में स्वाभिमान रैयो, तूंकारो मरदां सैयो नहीं।
दे दियो इणांं नैं जिण रेकारो, जीवत बो खूटल रैयो नहीं।
आंरी आ पड़ती रैयी हमेसा, जबर अर्यां रै सिर जूती।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।2
मरजाद रखण हर औरत, भड़ टेक निभावण नीं टल़िया।
मा बैन सरीखी मानी ही, फुटरापो देखर नीं खल़िया।
शत्रु भी शरणो आ जातो, प्राणां सूं प्यारो बै रखता।
बदल़ै में तन मन दे दैता, ओछोड़ी बात नहीं तकता।
खड़ दैता घोड़ो रण आंगण, पाछो नीं पैर हटाता ऐ।
फुरणां में बैतो वायरियो, जद तक नीं पीठ बताता ऐ।
मांग्यां तो माथो दे दैता, गरवीला साचा जसधारी।
इतिहास उठायर देख लेवो, कुण करै समोवड़ जग आंरी।
छायो जद संकट धरती पर, तांण खूंटी आ नीं सूती।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।3
कुल़वट नैं रखण अखंडित बै, जल़ गई जौहर री ज्वाल़ा में।
का धवल़ वस्त्र धरनैं बैठी, पतिव्रत पाल़ियो माल़ा में।
खांडै री धार रख्यो सतव्रत, पीव भलां परदेश रैयो।
वाणी विमल़ रही इण कारण, कारण ऊजल़ वेस रैयो।
कण कण है साखी कीरत रो, वीरत में आंरो आघ रैयो।
जायोड़ा मरिया धर कारण, दूध जदै बेदाग रैयो।
प्रीतम सूं आंरी प्रीत देख, कर काढ काल़जो हाथ दियो।
अगनी नैं मानी साखी तो, अगनी तक बांरो साथ दियो।
जामण इण जाया बै जोधा, ज्यांरी कायम है आज सपूती।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।4
सदियां सूं जोवो धरती पर, कीरत है अमर जोगै री।
घर घर में साखी थान देख, खेजड़ियां ऊभी गोगै री।
सिहड़दे लड़ियो खिलजी सूं, अवनी पर राखण जस झंडी।
प्रांणां रै बदल़ै पणधारी, मरजाद सांखलै धर मंडी।
गौधन री वाहर रण चढियो, जाहर बो मेहो जसधारी।
झड़ पड़तां माथो धड़ लड़ियो, मांगल़ियो जूझ्यो सतधारी।
वीरमदे अमर हठियाल़ो, पण सूं नीं डिगियो हेक रती।
सहजादी बदल़ै सोनगरै, भड़ देख वरी बा वीरगती।
बै देख दयाल़ू पींपै सा, हिवड़ै सूं हिंसा जिण त्यागी।
अन्न जल़ बो बांट्यो समराथल़, जोती जस जंभैसर जागी।
सब मिनख एक सा धर ऊपर, ओ मिनख मिनख में भेद किसो।
वीण बजायर दियो साच बो, पीर राम संदेश इसो।
आंरी तो जन जन देख अठै, साचै मन जापै स्तुति।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।5
पदमण रो जौहर बो जोवो, ज्यूं मीरां रो वैराग देख।
रूठोड़ी ऊमा बा जोवो, ज्यूं हाडी रो अनुराग देख।
आभल रो जोवो प्रेम ज्यूं ही, पन्ना रो साचो त्याग देख।
जोवो धरती रा रतन जिकै, जाया छत्राण्यां वजराग देख।
पणधारी पाबू नैं जोवो, जिण छोडी विलखंती प्यारी नैं।
शरणागत खातर मर मिटियो, उण जोवो हमीरै हठधारी नैं।
अकबर री नैणां नींद उडी, पातल रो पौरस बो जोवो।
थरथरियो औरंग जिण सगती, भगती बा दुरगै री जोवो।
जोवो मराठा शिवै नैं, चोटी बा राखी आपांणी ।
गुरु गोविंद रा टाबर जोवो, सूरां बा राखी हिंदवाणी।
वर्तमान में जोणो व्है तो, जोवो शैतानो बो भाटी।
चिन्यां री फौजां कांपी ही, साखी है चूसल री घाटी।
टेक आखड़ी राखण होई, एक एक सूं वती विभूति।
इणनैं ईज कैता रजपूती।।6
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी
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Jai Shri.
वाह गिरधर भाई।
वाह गिरधर भाई। सुन्दर रचना है।
अर्जुन रतनू जयपुर