इसड़ी म्हारी राम कहाणी

खावण नै फगत उबास्यां है,
पीवण नै आंख्यां रो पाणी।
दुख जा दुख नै दुख सुणावै,
इसड़ी म्हारी राम-कहाणी।।
कूंपळ कूंपळ मगसी मगसी,
पत्तो पत्तो सूखो सूखो।
तितली तितली तिसी तिसी सी,
भंवरो भंवरो भूखो भूखो।।
कोयल री पांखां सा पाटा
आळां मंडराता सण्णाटा।
स्यात म्हारड़ै खातै लिख दी,
विधना जग री सकळ विराणी।। 01।।
श्रापी दिन ज्यूं पड़ै आवणो,
मजलां घायल-पगां पावणो।
जाणबूझ अणसैंधो बणकर,
सैंधां बिचकर पड़ै जावणो।।
अपणो नगर, पराया बासा,
सड़क उणमणी, मोड़ उदासा।
चौरस्ता देखै है म्हनैं,
हळाबोळ आंख्यां हैराणी।। 02।।
इण मंडी छळ हाट अपारी,
सुख रा बांटा करै बोपारी।
पतझड़ सा आड़तिया म्हारा,
अणहूंती है आड़त आं’री।।
जगत-ताकड़ी तोलै खोटो,
कूड़ा रुक्का आंधळ-घोटो।
करजायत आपस में पूछै,
कुणनै कितरी उमर चुकाणी।। 03।।
आगै-आगै बगै अवाजां
लारै पग-दाब्यां म्है भाजां।
प्रतिधुन री पड़छाई देखण,
सपनां ताणी रात्यूं जागां।।
काळी आंधी, डीगा धोरा
आंख्यां में अणदीठा ओरा।
जियां आंधळै जा आंधै सूं,
पूछी व्है मूरत अणजाणी।। 04।।
कीं पूरा, कीं आधा गळग्या
सै बेली संगळिया टळग्या।
उधड़ी बातां, टूट्यै डोरां,
सींतां-सींतां गोडा ढळग्या।।
सुळगी देही, मनवो खुळग्यो
जीवण खेत हळाहळ भिळग्यो।
नीर-विहूणी नाळ कुअै री
रहंट मटकियां आणी-जाणी।। 04।।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’