जाणै ऐ कितरा ई डाव

रंग बदल़ले किरड़ै ज्यू ही,
पल पल में बदल़ै ऐ नांव।
ऊंच नीच मन में नीं आणै,
जाणै ऐ कितरा ई डाव।
घातां सूं भरिया है काठा,
बातां रा काढै है लाठा।
तन रा ऊजल़ मन रा माठा,
दिल री ठौड़ पड़्या है भाठा।
कांधै दूजै राख बंदूकां,
ओट मांय रह गोल़ी फेंकै।
देखै परघर बाल़ तमासो,
उणी लाय सूं रोटी सेकै।
कूटै अर कूकण दे नाही,
आंरी रीत सदा सूं आही।
भोल़ां नैं ठगबा रै सारु,
खोदै राख दोवड़ी खाई।
हाण लाभ रो सोच नही,
ऐ तो रैवै इणी उपाव।
जाणै ऐ कितरा ई डाव….1
बोली में मिठियास भर्यो है,
सांभणियो बेमोत मर्यो है।
काल़ींदर सूं जैरी इधका,
अंतस आंरै जैर भर्यो है।
मन में आंरै प्रीत नहीं है,
परहित करबा रीत नहीं है।
सारां नैं ई वैरी मानै,
आंरै कोई मीत नहीं है।
विष रा बीज रोजीनै तोपै,
रंकां सारु कुड़कां रोपै।
निबल़ो है आंरै सूं जिणपर,
कड़क बीजल़ी सा कोपै।
छाछ मांगण नै जावै ऐ तो,
लारै लुकायर ठांव।
जाणै ऐ कितरा ई डाव….2
करै फूठरी बातां परघर,
भरै झूठ री झालां जी भर।
डर नीं मानै राम तणो ऐ,
याद नहीं है मरणो तिलभर।
मूत बाड़ में वैर निकाल़ै,
घट में होल़ी ऊमर गाल़ै।
जोबन सारो इणसूं जाल़ै,
बात नीत री एक न पाल़ै।
स्वारथ में ध्रितराष्ट्र सरीखा,
मारण मोको रैवै तीखा।
चोवटियै में हंसमुख लागै,
बतल़ायां घर लागै फीका।
टांग दीनी अपणायत ऊ़ंची,
बदल़ गया मनड़ै रा भाव।
जाणै ऐ कितरा ई डाव…3
मुरझायोड़ा दीखै मूंडा,
बाहर जितरा मांयां ऊंडा।
जितरा सूधा मानो थे तो,
ऐ तो उतरा नामी गूंडा।
दीखण में तो बाईदास है,
नगटाई में बी ए पास है
आंरै जिणसूं काम पड़ै है।
ऐ तो उणरै उत्ता खास है,
आंरी निजर सांमलो मरसी।
एकर मोत आंरै सूं डरसी,
आंरो देख जरै नीं किणनैं।
आंनै गिरै गोचर रो जरसी,
आंनै घड़गी वा विधना तो।
बड़ी बाड़ रै मांव।
जाणै ऐ कितरा ई डाव…4
मन तन रा तो मेल़ा उठग्या,
हंसण रमण सह भेल़ा उठग्या।
दुरजन बैठा डांव चलावै,
सज्जनां रा सम्मेल़ा उठग्या।
लूखी बातां सार नहीं है,
मनड़ै री मनवार नहीं है।
मिनख मोकल़ा है इण जागा,
दीखै मिनखाचार नहीं है।
साच कैवण में सार नहीं है
दीखै अवर उपाव नहीं है।
भटक भलांई भोदू बण तूं
आंरी नगरी न्याव नहीं है।
पगां हेठ तो लाय लगासी
ऊपर करसी छांव।
जाणै ऐ कितरा ई डाव….5
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी