जल संरक्षण बाबत सवैया – कवि वीरेन्द्र लखावत कृत

आप बचाय लहो इतरौ जळ जा सूं बचै सब री जिन्दगाणी।
नेह सूंमेह रौ नीर घरै संचय करणा री सबै समझाणी।
पालर पाणी री एक एक बूंद रौ लेखौ लियां ई बचैला पाणी।
होद बणा हर एक ई आंगण मांगण री मत राख मचाणी ।।

जै सब एक ही राह जुड़ै अर चाह रखै चहुँ ओर चकोरी
नाय घमाव ओ नीर गंभीर बणौ बुधवान हुवौ न निजोरी
धीर रौ धोर धपाय दैनीर सूं पीर मिटाय दै पेख पकोरी
साथ खडी़ सरकार सदा जळ दोहण री जद टीम सजोरी।।2

टाळ अकाळ दुकाळ त्रिकाळ यूं भाळ संभाळ अबै भुरजाळा
रीत रखौ रुकियौ जळ जाय जमी में जिकौई लाय सुगाळा
एक ही ध्येय रुकै जळ बेहतौ केहतौ जाय करौ कम चाळा।
ढाल बणौ इब ढाबण वेग नै पेड़ लगाव रखाव रुखाळा।।3

रपट्ट सपट्ट खटट बणाव बहावण देजै घणा नद नाळा।
ढाळ मिटाव ढबाव ढूकाव धिकाव जगाव वै खेत रा खाळा।
पाळ बंधाव तळाव खुदाव नेहर सूं गाम रा भरदै नाळा
आदि अनादि सूं सींचियौ जो जळ तिरस पशु री मिटाव तिमाळा।।4

जहै न बैकार आ बादळ धार धरा तिरसी री सुणौ थै पुकारा।
बहै बळ खावतौ घेर घुमावतौ पीय धरा लै धारौ री धारा।
राख हियै पुरसारथ तो तव मार सकै कुण पाणी री मारा।
बचाव स्वभाव बणाव मना तोही राज करैला सागैडौ़ कारा

कररै कररै संकल्प कठा जळ संचय री जुगती कररै
धररै धररै धुन ध्यान मना नहीं नीत निठावण री धररै।
सबरै सबरै मिल जाय इतौ नहीं तिरस मरै किण रौ घररै।
सुणरै ओ वीरेंदर अरज करै जळ जाय पिंयाळ ऊंडौ उतरै।
~~वीरेन्द्र लखावत

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