जसोड़ां रा बूंठा छोड देई

दिन अर दशा हरएक री बदल़ती रैवै, इणी कारण इणनै घिरत-फिरत री छिंयां कैयो गयो है। जिकै जसोड़ कदै ई जैसलमेर में जोरावर होता, जिणां रो राज में घातियो लूण पड़तो पण सगल़ी मिनखां री माया रा प्रताप हा!कृपारामजी खिड़िया सटीक ई लिख्यो है कै-
नरां नखत परवांण, ज्यां ऊभां संकै जगत।
भोजन तपै न भांण, रांवण मरतां राजिया!!
ज्यूं-ज्यूं मिनखां रो तोटो आयो, ज्यूं-ज्यूं जसोड़ पतल़ा पड़िया अर त्यूं-त्यूं उणां रो मरट मिटतो ग्यो।
जसोड़ जसोड़वाटी में ई कमजोर पड़ग्या। कमजोर ई ऐड़ा पड़िया कै उणांनै खुद रै गांम बोनाड़ै में आय नौसर रै भीलां चींथिया। भीलां ऐड़ी मारकाट मचाई कै जसोड़ आपरो गांम बोनाड़ो छोड पाखती रै गांमां में रैवण लागा। इणी जसोड़ां रो मांय सूं प्रभुसिंह खारै(बाड़मेर)जाय बसियो तो केई पाखती ई ओलै जाय बसिया।
घणा दिनां पछै एक-दो घर जसोड़ां रो पाछो आय अठै रैवण लागो। कीं बस्ती बसी जणै खारै रैवणियो प्रभुसिंह जसोड़ अठै रैवणियै फतेहसिंह जसोड़ कनै आयो अर कैयो कै-
“म्हारी ई गांम में पांती है सो हासल बीजो पांती आयो म्हनै ई दे!!”
आ सुण फतेहसिंह कैयो-
“रै मांटी! अठै कठै हासल है? राज सूं ई पूरी नीं पड़ां तनै देवण नै कठै बापरत है!!”
आ सुण बो रीसायो अर जावतो जैसल़मेर महारावल़जी रो घोड़ो बाढग्यो। पूरो डाबो फतेहसिंह माथै आयो। अठै आ बतावणी ठीक रैसी कै जसोड़ां माथै राज री केई लागां ही जिण मांय सूं एक आई ही कै जसोड़ रै हर गांम में राज रो एक घोड़ो रैतो जिणरी पूरी चाकरी इणांनै करणी पड़ती। एक घोड़ो बोनाड़ै ई हो सो हासल री ना दियां सूं रीसायै प्रभुसिंह जावतै लागबाजी सूं रावल़ो घोड़ो बाढ न्हाखियो।
उडती खबर जैसल़मेर पूगी जद दरबार घोड़़ो पूगावण रो तकादो कियो। घोड़ो कठै सूं पुगाणो रैयो? पूरो डाबो फतेहसिंह माथै आयो। जद महारावल़जी रो घोड़ो इणगत बढग्यो तो डंड तो जसोड़ां नै भरणो ई पड़सी। राज रो दबाव बणियो अर फतेहसिंह नै पकड़ कैद कियो। महारावल़जी फैसलो दियो कै एक लाख रो भरणो भरै जद फतो जसोड़ छूटै!!अणूत भाठै सूं काठी होवै, लाख लावणा कठै सूं रैया? कनै तो छदाम ई नीं। सेवट दसरावै माथै भाटियां-सोढां महारावल़जी नै अरज करी कै-
“फतो ई आपरो राजपूत है! इणगत इणनै अपमानित करणो आपनै सौभे नीं सो आप लाख ई लाख है ! इणसूं एक हजार रो डंड भराय छोड फिटो करो।”
महारावल़जी बात मानी पण हजार ई लाणा कठै सूं रैया? मन चालै पण टटू नीं चालै। महारावल़जी सूं मोल़त मांग जसोड़ मेहरेरी रै खाबड़ियै सुदरै कनै सूं रुपिया लिया अर बदल़ै में लिखत की कै-
“बाहल़ै री जमी, बोनाड़ै रै पीचकै (कुओ) री बारी इण जमी अर कुए आवण-जावण सारू नाल़ (मार्ग ) दियो जावैला!!”
सुदरै खाबड़ियै लिखत कराय रुपिया दिया अर फतेहसिंह महारावल़जी रै घोड़ै रो डंड भरियो।
थोड़ै दिनां पछै ई सुदरै आय कुओ तैयो। गांम रा, मेघवाल़ बीजा पाणी नै गया तो खाबड़ियां पाणी भरण नीं दियो। मेघवाल़ां जसोड़ां आगै पुकार करी पण जसोड़ कमती ईज हा सो जसोड़ां हाथ पाधरा किया अर चारणां कनै जावण रो कैयो। रैयत चारणां रै पाड़ै पूगी। चारण, मेघवाल़ गया जको खाबड़ियां री बरत बीजी बाढी। खाबड़ियां जोर कियो कै-
“जसोड़ां री जमी म्हांरै अडाणी है, आंठूं रो जोर करो इणसूं पार नीं पड़ै कै तो म्हांरा रुपिया भरो नींतर म्हे राज री शरण जावांला!!”
रुपियो तो देखण नै ई कठै? छेकड़ लोग-बाग लाछां माऊ कनै पूगा अर कीं समाधान काढण रो कैयो।
लाछां माऊ रतनू सांईदान री जोड़ायत अर नाकराल़िया रै झीबै रायसिंघदान री बेटी हा। सुदरै खाबड़ियै रै खोल़ै घात्योड़ा हा !!समझणा रा उपकारी लुगाई हा। आ सुण उणां कैयो-
“हालो हूं सुदरै बा नै समझाऊंला!!”
उणां जाय कैयो कै-“काला होया रा कांई? पाणी सूं पतल़ो कांई होवै? ठालांभूलां पाणी रै आडी देवो तो कांई राम नै जीव नीं देणो?”
आ सुण सुदरै रै किणी आदमी कैयो कै-
“ऐड़ा सिकिरयावरा होवो तो जसोड़ां नै रुपिया देवो परा सो आपै ई फारगत हुय जावैली नींतर म्हे पाणी नीं पीवण दा!!”
आ सुणतां ई लाछां माऊ रै आख्यां लालबंब हुयगी अर उणां अगन प्रजाल़ण रो साथलां नै आदेश दियो अर जमर री त्यारी करी।
साथलां माऊ रो ओ रूप देख जमर री त्यारी करी अगन प्रजल़ी अर माऊ जोत में जोत मिलावण बैठी कै सुदरै रै साथ में आए ‘डंवर रै पार’ रै राड़ लखै कैयो कै-ढींगरी सावल़ दिया ! कठै ई तप सहन नीं होवै अर माऊ नै बिचाल़ै निकल़णो पड़ै!!
आ सुणतां ई डोकरी कैयो-ढींगरी तो आज सूं थारै घरै आई ! कोई तनै पाणी देणियो ई नीं बचै! माऊ रो ओ रूप देख सुदरो डरियो अर अरज करी कै-
“बाई! म्हारो ई में कांई दोष ? म्है जमी अडाणी ली !! अर ओ कौतक हुयो! थे गात जाल़ियो ! म्है पाप में डूबो!! म्हनै बगसो!!”
आ सुणर डोकरी कैयो-
“तूं भरमायो कालां रै कैणै लागो सो थारै घरै काला तो होसी पण तूं इयै घड़ी जसोड़ां रा बूठां छोड देला तो थारै घरै मिनख री हाणी नीं होवै!!”
आ सुणतां ई खाबड़ियै सुदरै फारगत कर जसोड़ां री जमी छोडी पण सगत रा वचन अपूठा नीं फुरै सो सुदरै रै घरै दो-तीन पीढी एक-दो काला जलमिया अर लखै राड़ रै घरै कोई धरमडाड देवणियो ई नीं बचियो। लाछा माऊ बोनाड़ै अर मेहरेरी री सेड़ै (सीमा)माथै जमर कियो ;
लाछां पट धर लोवड़ी, कीधा आछा काम।
वरदाई वाचा वल़ै, नवखंड साचा नाम।।
जग ऊजल़ झीबा किया, ऊजल़ रतनू और।
जमर कियो परहित जगत, सगत लाछां सिरमोर।।
नेस नामी नकराल़ियो, धिन धिन झीबां धीव।
विमल़ बोनाड़ो बीसहथ, पुनि धिन कीधो पीव।।
राड़ लखो तैं रोल़ियो, कर सिर जिणरै कोप।
जग धर राखी जादमां, जमर अमर मग जोप।।
(सगती-सुजसमाल़ा-गि.रतनू)
संदर्भ-आदरणीय बालुदानजी रतनू बोनाड़ा
क्रमशः
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”