जय मोगल मां मछराळी – कवि जीवणदानजी डोसाभाइ झीबा
॥दोहा॥
मोगल मां धींगा धणी, मोगल मां अर बाप।
सब साजा ताजा सुखी, मोगल रो परताप॥1
ओखा धर उजवाळवा, जाहर चारण जात।
घांघणिया गढवी घरां, मोगल जलमी मात॥2
॥छंद त्रिभंगी॥
परतापां पुरी, निरमळ नूरी, सतव्रत सूरी, सरसाई।
दाळद कर दूरी, क्रोध करुरी, बळ भरपूरी, थुं बाई।
भंजण दुःख भुरि, गंज गरुरी, रखण सबुरी, रढियाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥1
रंगां रुपाळी, तन तेजाळी, जोत उजाळी, जोरळी।
कोप्यां विकराळी, नागण काळी, सिंहण भाळी रोखाळी।
बुढी अर बाळी, दीन दयाळी, वीश भुजाळी, बिरदाळी।
ओखा धर वाळी, देव दयाळी, जय मोगल मां मछराळी॥2
जय जय जुग धरणी, सत्य उचरणी, संकट हरणी, सुखदाता।
कारण सह करणी, तारण तरणी, मोद उभरणी, जुग माता।
बेहद जश वरणी, भव भय हरणी, पोखण भरणी परचांळी।
ओखा धर वाळी, देव दयाळी, जय मोगल मां मछराळी॥3
ओपत उजियारं, तेज अपारं, शोळ सृंगारं अंग सजे।
कंकण कर धारं, है गळ हारं, भाल सुधारं चंद भजे।
शिरपर जडी तारं, लोवडी सारं, लख नग लारं लटकाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥4
सेवग सुख धारण, काढत कारण, पार उतारण, परचाळी।
दाळद दुःख दाळण, सांच वधारण, विघन विडारण, विरदाळी।
मैखासुर मारण, धीरज धारण, चारण तारण, चरिताळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥5
तुंज आदि न अंतं, सृष्टि सृजंतं, प्रलय करंतं, पोखंतं।
दाणव कुळ हंतं, चरित अनंतं, तुं जग तंतं वरतंतं।
अवतार धरंतं, तुं भगवंतं, हिम्मत वंतं हलकाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥6
गढ कडी नमायो, भुप भमायो, सुबो आयो सिर नायो।
नॅह कोप समायो, संख बजायो, जुगत जमायो, जश जाम्यो।
ओखाई रमायो, नाच नचायो, खुब खेलायो, खेधाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥7
वल्लुरा लटरी, रुपां घटरी, सुजाण रा वटरी सांची।
मोटीरा मनरी, जाहर जनरी, राजल रा तनरी राची।
मोगल सब ऐकह, रुप अनेकह, जीवण कवि कह जोराळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥8
॥दोहा॥
शरीर सुख संपति विविध, वरदानी विख्यात।
वार वार वंदन करूं, जय जय मोगल मात॥1॥
~~कवि जीवणदानजी डोसाभाइ झीबा (देगाम धांगध्रा)
कृपा करके बताये की – मछराळी शब्दका अर्थ क्या होता है ?