झालामान शतक – नाथूसिंह जी महियारिया

नाथूसिंहजी महियारिया रचित झालामान शतक सर कोटि री उंचे दरजे री बेजोड़ रचना है, जिण कृति में सादड़ी (मेवाड़) रै राजराणा झाला मानसिंह जी रै उद्भट शौर्य, अदम्य साहस अर सूरापण, अर बिना सुवारथ बऴिदान रो बड़ो बर्णन करियो है। हऴ्दीघाटी री लड़ाई रो बड़ वीर नायक झालामान आप रै प्राणा नै निछावर कर आपरा धणी महाराणा रा प्राण बचाय इतियास मं अखीजस खाटियो।
झालामान हऴ्दीघाटी री लड़ाई में जद के तलवार तीर र भालां बरछां री झाकझीक मंडियोड़ी में अर मुगलांणी सेना रै मांईनै कऴियोड़ा आपरा धणी मेवाड़ महाराणा प्रतापसी रै कनै जाय राजशाई छत्र चंवर माडांणी महाराणां कनैसूं खोसर खुदोखुद आपरै माथै धारण कर लिया अर मुगलां री मुगलांणी फौजां ने चकमो दैय ध्यान हटा आपरै उपर दिराय महाराणा नै उठै हूं बारै हटाय, अर बांरा प्राणां री रिछ्या करण मे कामयाब हुय गिया हा। बी जूध्द में मान सिंह मेवाड़ नाथ रै रूप में लड़तो जूझतो मरण नै वरण करियो।
झालामान सिंह प्रतापसी रा जीवन बदऴै जीवण दीधो तो बणांरा पुर्वज राजराणा झाला अज्जाजी उणीज भांत खांनवा री राड़ में महाराणा सांगा जी सूं छत्र ने चंवर लैय उणारी रक्षा करी हती ही, इण बात ने सांगोपांग प्रसगां ने कविवर नाथूसिंहजी सा घणै मान सोहणा सोनल आखरां मांई पिरोया है।
।।दोहा।।
आ बापी झालां अजब, छत्र चमर सुर थान।
सांगा सूं अजमल लिया, पातऴ सूं फिर मांन।।
जुध्द में मुगलांरी और सूं राजा मानसिंह हाथी रै हौदे चढर आया हा बां री तुलणा झालामान रै साथै कैड़ी सटीक ओपमा सूं कीवी है देखो।।
।।दोहा।।
हेक मान मुगलांण दिस, हेक मान हिंदवाण।
कूरम गज हौदे रह्यो, सुरग गयो मकवांण।।
महाराणा प्रतापसी री ऐक राणी झालामान री बैन ही इण साख प्रतापसी जीजा हा, अर मानसिंह साऴा हता कवि भाई रा मायरा रा काज रो कैड़ो सोवणो रूपक सरजियो है।
।।दोहा।।
भाई मकवांणा दियो, राख्यौ राण शरीर।
मकवांणी बैनड़ लियौ, चूड़ौ चूनड़ चीर।।
झालामान रा रगत री गिणती ने कविवर भगवान रा चंदण सूं ई उंची कूंत करीहै।
।।दोहा।।
नवलक्खां न्यारौ लियो, रगत मान रो हेर।
रछ्या कर नित राखस्यां, तिलक करांला फेर।।
रचना रै छैहले भाग महियारियाजी ऐक ऐहड़ो भाव भरियो गीत भी रचियो है कि जिणरो एक दूहाऴो दीठण जोग है।
।।गीत।।
सोनां रा आखरां लिख राखी,
कर राखी सारै जग क्रीत।
राखी मान आन रजवट री,
राखी घट वट री रणरीत।।
इण तरै कविवर री आ रचनां घणी घणी रूपाऴी नै आन बान मान अर स्वाभिमान रै साथै बलिदान री थिरता ने कायम अर जस खाटण जोगी काऴजई रचना है।
~~प्रेषित: राजेंद्रसिंह कविया (संतोषपुरा, सीकर)