जिणरा घोड़ा समंदां पीवै! उण आगे तल़ाब री कांई जनात?

महाराजा मानसिंह आमेर अर महाराणा प्रताप राजस्थान रै इतिहास में ई नीं अपितु भारतीय इतिहास में चावा। एक री खाग पातसाही स्थापित करण नै उठी तो दूजोड़ै री तरवार रजवट रै वट री रुखाल़ी सारू। दोनूं ई आपरी स्वामीभक्ति नै समर्पित। मानसिंह पातसाह नै स्वामी मानियो तो पातल इकलिंग रो दीवाण।
वि.सं 1629 में डूंगरपुर नै धूंसतो कुंवर मानसिंह जद वि.सं 1630 रै आसाढ में उदयपुर ढूकियो तो उठै महाराणा प्रताप घणा कोड किया अर गोठ करी। भोजन री वेल़ा प्रताप पेट दूखण रो ओल़ावो लेय मानसिंह रै भेल़ा नीं बैठिया। आ बात मानसिंह नै अखरगी। उणां चढतां कैयो कै “हूं बेगो ई आवूंलो !! अर आवतो महाराणा रै पेट री ओखद ई लाऊंलो!!” महाराणा ई कैय दियो कै “जे थे थांरै फूंफै साथै आवोला! तो ऐ घोड़ा अर राजपूत अठै ईज स्वागत में तैयार मिलेला अर जे एकला आवोला तो मालपुरै तक साम्हा आय स्वागत करैला!”
बात बधगी। वि.सं 1632 में मानसिंह एक लांठी सेना साथै उदयपुर माथै हमलो कियो। मेवाड़ी वीरां मरट सूं मुकाबलो कियो अर पातसाही सेना रा पग पाछा दिरा दिया। उण जुद्ध नै आंख्यां सूं देखणियो अब्दुलकादिर बुदायनी लिखै कै उण बगत पातसाही सेना रा पग काचा पड़ग्या अर सेना में भगदड़ मचगी। सेना नाठण लागगी। नाठती सेना में जोश भरण सारू किणी लारै सूं हाको कियो कै पातसाह आयग्यो ! पातसाह आयग्यो। सेना ठंबी अर पाछो मुकाबलो होयो जिणमें मेवाड़ी सेना नै जोग सूं हार मिली। उण जुद्ध में 12000 मेवाड़ी वीर महाराणा री आण लियां वीरगति नै प्राप्त होया।
इण अचाणचक मिल़ी जीत सूं मानसिंह नै घमंड आयग्यो। उण आपरा घोड़ा उदयसागर झील माथै पाया। घोड़ा पावती बगत उण आपरै साथियां नै संबोधित करतां कैयो कै “सिसोदियां नै जीतर का तो इतरा नेठाव सूं अठै घोड़ा जोधै राठौड़ पाया हा ! का आज म्है पाय रैयो हूं!”
उण बगत मानसिंह री सेना में जागो बारठ ई भेल़ो हो। उणनै आ गर्वोक्ति अखरगी। इकलिंग रो दीवाण तो हिंदवाण रो सूरज है उणरो तेज बादल़ां री ओट सूं रूकै नीं। उण कैयो-
माना अंजस कर मती, अकबर बल़ आयाह।
जौधै जंगम आपरै, पाणां बल़ पायाह।।
अर्थात हे मानसिंह! अकबर रै बल़ आयर इतरो कांई मोदीजै? जोधै तो आपरा घोड़ा खुद रै पाण पाया हा!
आ बात मानसिंह रै काल़जै खुबगी। उणरी बाजरी खावणियो अर आश्रय में रैवणियो सगल़ां साम्ही इतरी आकरी बात कैवै!! उण उणी बगत आमेर रै सगल़ै चारणां रा गांम खोस लिया अर दरबार में चारणां रो आवणो जावणो पला दियो।
आ बात जद श्रीनगर रै शाशक पंचायण पंवार नै ठाह पड़ी तो उण मानसिंह नै समझावण सारू आपरै प्रधानमंत्री किसना भादा नै मेलिया। उल्लेखणजोग है कै मानसिंह पंचायण पंवार रो दोहीतो हो। पंचायण नीं चावतो कै उणरो दोहीतो एक छोटीक बात सारू चारणां सूं रूठै अर गांम खोसै। पंचायण, किसनैजी नै मेलिया। किसनोजी भादा प्रतिभाशाली अर वाकपटु चारण हा। मानसिंह उणांरै आभामंडल़ नै जाणता हा। पछै नानाणै रा भल़ै न्यारा। मिलण सूं मना नीं कर सकिया। ज्यूं ई मिलणो होयो किसनैजी एक चार दूहालां रो गीत सुणायो-
अतुल़ीबल़ मान तूझ धन आसत,
गाहै गिरवर अजै गण।
पड़पै किसूं पिछोलै पायां,
ज्यां समंदां पाया जंगम।।
हे! मानसिंह थारी वीरता वरेण्य है। तैं गिरवरां नै खू़दर अथवा उवां रो गाटो कर समंदा जाय घोड़ा पाय लिया तो पछै इण छोटीक तल़ावडी री कांई जनात है?
ओ गीत कैयर किसनाजी, मानसिंह नै आरज करी कै “आमेर रै चारणां सूं रूसणो भांज दियो जावै अर जागै सेति दूजै चारणां रा गांम ई पाछा दे दिया जावै।”
मानसिंह इण गीत नै सुण र इतरा राजी होया कै किसनैजी नै कैयो कै म्है आपरी आ बात मान सकूं! पण म्हारी एक शर्त माथै !अर बा आ है कै आपनै श्रीनगर छोड म्हारै अठै आवणो पड़ैला।
एकर तो किसनाजी गतागम में फसग्या। क्यूंकै श्रीनगर में राज रो पूरो काम काज किसनोजी रै हाथ। पण पछै जातीय हितैष्णा नै ध्यान में राखर उणां हां भरली अर बिनां जागीर अथवा गांम रै आमेर आयग्या।
उणी दिनां बीकानेर महाराजा रायसिंहजी, शंकर बारठ नै फगत एक छोटीक रचना माथै सवा किरोड़ रो पसाव देय सम्मान कियो। इण बातरो मोद मानसिंहजी री राणी अर रायसिंहजी री बेटी हमेसा करती। आपरी राणी रो ओ घमंड मानसिंह नै अखरग्यो अर बां एक दिन पावन प्रभात री वेल़ा में छवूं साधारण चारणां नै बुलाय छ किरोड़ रो पसाव कियो-
अई अई मान उनमान अहो,
हाथ धनो धन हियो।
सूरज घड़ीक चढतां समो,
दे छ करोड़ दांतण कियो।।
इण चारणां रै साधारणपणै नै बतावतां भोपाल़दानजी सांदू लिखै-
करी मजूरी मोल, कासींदी बावन करी।
तैं मानां नभ तोल, व्रवी तिका धर वीदगां।।
ऐ छ चारण हा- 1:हरपालजी हाफावत, 2:दासाजी खिड़िया, 3:नरूजी कविया, 4:ईसरदासजी रतनू, 5:डूंगरजी कविया, अर 6:किसनाजी भादा।
इण छवै चारणां नै गांम ई इनायत करीज्या-
कोट कचोल्यो डोगरी, भल सांसण भैराण।
खेड़ी अवर गंगावती, मान दिया महराण।।
आ दातारगी करर जद मानसिंह आपरी राणी नै पूछियो कै “हमें मोटो कुण?”
राणी पाछो कैयो कै “मोटो कै तो म्हारो धणी ! कै म्हारो बाप! और दूजो मोटो कुण?” मानसिंह जाब सुणर मुल़कर रैयग्या।।
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”
Jay mataji hukum charano ke bare me dipply jankari pa ne ke konsi konsi books hai aap advice de sakte Ho sa I am very interested in charan history please advice me books ke nam bataiye hukum aabhar