जोगी – गज़ल

Jogi

बैठौ आसन मारे जोगी!
किणनें आप चितारे जोगी!
चिलम फूंक नें धुँवौ उडाडै,
फिकर नहीं है वा!रे!जोगी!
अनहद ने बध बध आलापे,
पल़ पल़ सांझ सवारे जोगी!
अजब गजब रो रूप बणायो,
अंग भभूत लगा रे जोगी!
मठ में थारे मिनख मोकल़ा,
भीड घणीं है भारे जोगी!
लूंठौ ठाकर बूठौ तृठौ,
कमी रही नी थारे जोगी!
इण चौपड री चाल अनोखी,
जीते वा दिल हारे जोगी!
रीत प्रीत री बडी निराल़ी,
रोय रोय दुख गा रे जोगी!
पिया पियाला ; चढी खुमारी,
नशो ;नाम करता रे!जोगी!
मन तंत्री रा तार झणझणै,
बजी बीण सुरता रे! जोगी!
पंथ सोच औ रोज उडीकूं,
आवे आंगण द्वारे जोगी!
नरपत ने नेडो लाग्यो तव,
चालूं थारे लारे जोगी!
~~©वैतालिक

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.