जोगीदास भाटी की कटारी

मारवाड़, जिसे नर सांमद भी कहते है, के अनेकानेक सूरमाओं मे भाटी गोविन्ददास जी का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है। गोयंददास ने अति साधारण परिवार मे जन्म लेकर अपने प्रतिभाबल से इतनी भारी कामयाबी, प्रतिष्ठा एवं प्रसिध्दि प्राप्त की थी कि इसकी समानता का उदाहरण इतिहास में कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। जोधपुर महाराजा सूरसिंहजी ने अपने इस प्रधानामात्य को लवेरा गांव का पट्टा वि. संवत १६६३ में दिया था। इस सरदार ने मारवाड़ की शासन व्यवस्था मे बड़ा आमूलचूल परिवर्तन कर मुगलों की शासन की प्रणाली अपनाकर राजकोष को लबालब भर दिया था। दीवान बख्शी हाकिम पोतदार खान सामा प्यादाबख्शीआदि अधिकारी नियुक्त कर दिए थे। राजा के उमरावों की आठ मिसल कायम कर दांई बांई बैठक के नियम निर्धारित कर दिए थे तथा उसमें भी निश्चित नियम बना दिए थे। महाराजा की ढाल तलवार तथा चंवर रखने वालों का भी नियम तयकर दिया था। छंद निसाणी में गोयंददास की परिचायक पंक्ति!!!
गोयंदास गरज्जिया, सूर हंदै वारै।
कै थापै कै ऊथपै, मेवासां मारै।।
किसनगढ महाराजा ने षडयंत्र रच कर इनको मरवा दिया जिसका बदला महाराजा सूरसिंहजी व कुंवर गजसिंहजी ने चार छह घंटे बाद ही ले लिया था।।अस्तु।।
इनके पुत्र जोगीदास भाटी बड़े वीर पुरुष हुए थे और महाराजा के बड़े विश्वस्त रहे थे तथा साहस में अपने पिता से भी बढकर हुऐ थे। वि.सं.१६६८ में बादशाह जहाँगीर की फौजे दक्षिण भारत की और कूच कर रही थी, जिसमें सभी रियासतों की सेनाएं भी शामिल थी। आगरा से दक्षिण में एक जगह पड़ाव में एक विचित्र घटना घटी। आमेर के राजा मानसिंह के एक उमराव का हाथी मदोन्मत हो गया और संयोग से जोगीदास भाटी का उधर से घोड़े पर बैठकर निकलना हो गया। उस मतगयंद ने आव देखा न ताव लपक कर जोगीदास को अपनी सूंड में लपेटकर घोड़े की पीठ से उठाकर नीचे पटका और अपने दो दांतों को जोगीदास की देह में पिरोकर उपर की तरफ उठा लिया।
“जोगीदास भाटी नें हाथी के दांतों में बिंधे और पिरोये हुये शरीर से भी अपनी कटारी को निकालकर तीन प्रहार कर उस मदांध हाथी का कुंभस्थल विदीर्ण कर डाला”
जोगीदास के साहसिक कार्य को देखकर वहां पर उपस्थित लोग दंग रह गये। तथा राजा मानसिंह ने तो इससे प्रभावित होकर वह हाथी ही महाराजा सूरसिंह को भेंट कर दिया। कुछ समय बाद उस हाथी को सूरसिंह ने शहजादा खुर्रम को उदयपुर में भेंट कर दिया। भाटी जोगीदास की कटारी वाली घटना उन दिनो राजपुताना के इतिहास में विशेष चर्चा का विषय बन गई और कवि कौविदौं के लिए सृजन करनें का स्रौत बन गई। समकालीन कवियों ने उस वीर की वीरता के व अद्भुत साहसिक कार्य की भरपूर सराहना की। ऐक दोहा दर्शनीय है।।
कुंभाथऴ बाही किसी, जोगा री जमदड्ढ।
जांण असाढी बिजऴी, काऴै बादऴ कड्ढ।।
इस ऐतिहासिक घटना की साक्षी में तीन प्रसिद्द समकालीन चारण कवियों ने डिंगऴ गीत रचे हैं।
।।१-कैसोदासजी गाडण “गुण रूपक बंध”।।
।।गीत।।
गजदंत परे फूटै गज केहर,
गज चै कमऴ तड़ंतै गाढ।
जादव मांहि थकां जमदाढां,
जोगे आ वाही जमदाढ।।1।।
गोयंदऊत दाखवै गाढम,
दंत दुआ सूं थाकै दऴ।
काऴ तणै वश थियै कटारी,
काऴ तणै वाही कमऴ।।2।।
भागै डील भली राव भाटी,
कुंजर धकै भयंकर काऴ।
आये जमरांणा मुख जंन्तर,
मुख जम तणै जड़ी प्रतमाऴ।।3।।
आधंतर काढे अणियाऴी,
कुंभाथऴ वाही कर क्रोध।
अंतक सूं जोगै जिम आगै,
जुध कर मुऔ न कोई जोध।।4।।
अर्थातः…… हाथी के दांत शरीर के आरपार फूट जाने तथा गजमस्तक का जोर लग जाने के उपरांत भी भाटी (जादव) जोगीदास ने कटारी के प्रहार किये, मानो जम की दाढों मे होते हुऐ भी उसी जम पर जमदाढ (कटारी) भौंक दी हो। गोयंददास के पुत्र जोगीदास ने अपने साहस का परिचय देते हुऐ हाथी के दांतों में बिंध जाने पर भी कटारी के वार किये, मानो कालके वशीभूत व्यक्ति ने काल के ही मस्तक पर घाव किऐ हों। टूटे हुए शरीर से भी उस भाटी यौध्दा ने कमाल कर डाला जब हाथी ने दांतों मे पिरोकर हवा में अधर घुमाया उस विकट स्थिति में भी कुंभथल पर क्रोध के साथ कटारी के तीक्ष्ण प्रहार करते हुए साक्षात यम से युध्द करते हुए ऐसी मौत कोई अन्य यौध्दा नहीं मरा जिस भांती मरण को जोगीदास ने वरण किया। वस्तुतः यह अपने आप में इतिहास की अद्वितिय घटना थी।।
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।।२-गीत जगमाल रतनूं कृत।।
।।गीत।।
फिरियै दिन डसण दुआं सूं फूटा,
गिरतै असि हूंतां औगाढ।
तैं गजरुप कमऴ गोदावत,
जोगीदास जड़ी जमदाढ।।1।।
उभै डसण नीसरै अणी सिर,
भाटी साराहै कर भूप।
वांकै दिन सूधी वाढाऴी,
रोपी सीस हसत जम रूप।।2।।
आतम डसण थियै आधंतर,
सूरांगुर कुऴवाट संभाऴ।
पांचाहरा गयंद सिर परठी,
तैं अंतरीख थकै अणियाऴ।।3।
दांतां विचै थकै जमदाढी,
अन नह वाही किणि एम।
जिम किअ सूर सांभऴी जोगी,
तैं किय दूजी अचड़ तेम।।4।।
अर्थातः…..दिन फिरने पर हाथी के दोनों दांत शरीर के आरपार फूट जाने तथा अश्व से गिरने के उपरान्त भी गोयंददास के पुत्र जोगीदास तूनें कुभंस्थल पर कटारी का प्रहार करने का अपूर्व साहस दिखलाया। हस्ती के उभय दशनों की अणी पार निकल गई, उस टेढे दिन में भी सीधी कटारी द्वारा यम रूपी हाथी के मस्तक पर घाव करने के कारण हे भाटी (जोगीदास) तेरे हस्त लाघव की सभी राजा महाराजा भी सराहना करते हैं। तन का मध्यभाग गजदन्त में पिरोया जाने के पश्चात ऊपर आकाश में झूलते हुए भी पंचायण के वंशज उस वीर शिरोमणी ने अपने कुल गौरव को याद कर कुंजर के शीश पर जोर से कटारी मारी। हाथी दांतों में इस प्रकार बिंधे हुए अन्य किसी भी यौध्दा नें गजमस्तक पर इस प्रकार का वार नही किया। हे जोगीदास तूनें सच्चे शूरवीर की भांति अतुलित साहस दिखा कर यशस्विता अर्जन की है।
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।।३-गीत उदयसी वरसड़ा का कहा।।
।।गीत।।
राव राणां जोगीदास वदै रिण,
अचड़ां गौयंद का अवगाढ।
वाय हंस गये गयंद सिर वाही,
दांत दुआ सहुऐ जमदाढ।।1।।
कऴ कथ जरू रहावी कटके,
भाटी सूरत दीख भुजाऴ।
रमियै हंस कुभांथऴ रोपी,
पार डसण होतां प्रतमाऴ।।3।।
दूजां भड़ां आंवणी देसी,
रावत वट जोगा रिम राह।
सास गये गजराज तणैं सिर,
वणियै दांत कटारी वाह।।3।।
अर्थातः….. हे गोयंददास के पुत्र जोगीदास तेरा कीर्तिगान सभी राव और राणां इसलिए कर रहे हैं कि हाथी के दोनों दांतों में बिंध जाने पर मृत व निष्प्राण अवस्था में भी तूने गज मस्तक पर कटारी के वार किए। भाटी के उस वीरत्व की कहानी सैन्यदल के द्वारा सर्वत्र प्रसिध्दि पा गई क्योंकि उसके प्रांणपंखेरु उडनेके साथही स्वंय दांतों में झूलते हुए कुभंस्थल पर कटारी भौंकी थी क्षात्रवट के अनुयायी वीर अन्य लोगों के सन्मुख इस वीर का उदाहरण प्रस्तुत करगें जो कि शत्रु संहारक के रूप में हाथी के दांतों बीच में झूलती हुई देह में से सांस निकलनेके क्षण में कटारी के तीक्ष्ण घाव किए थे।।
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।।गीत चौथा खीमा कविया का कहा हुआ।।
।।गीत।।
ठवि डाडर डसण कढाया पूठी,
अविऴग हसती हीलै आंम।
जोगड़ा काढ कटारी जादम,
वाही दऴै मुजरौ वरियाम।।1।।
दऴ चीरियो विचि गज दांतां,
जमदढ वाहण ठौड़ जिसौ।
दौलत निजर करै दैसोतां,
देखो जोगीदास दिसो।।2।।
ऊपड़ियौ हसती आधिंतर,
दांतूसऴ भेदिया दुवै।
गोयंद तणै साचवा गुंणकी,
हाडां हाड जुजुवै हुवै।।3।।
मैंगऴ डसण गयण माड़ेचा,
सूंरां आ वाही सम्मथ।
हिन्दु तुरक तणैं मुंह हुई,
कटक कटारी तणी कथ।।4।।
भाटी जोगीदास के इस अद्वितिय शौर्य एंव साहस की प्रामाणिकता सिध्द करने वाले उस समय के कवियों के रचे हुए इन महत्वपूर्ण एवं अद्यावधि अज्ञात रहे डिंगऴ गीतों के अतिरिक्त “बांकीदास री ख्यात” में भी इसका संक्षिप्त रूप में उल्लेख है यथाः…..
“गोइंददास रै बेटौ जोगीदास, पटै गांमां च्यारां सूं गांम बीजवाड़ियौ, महाराजा सूरजसिंह जी रौ उमराव जिणां नूं राजा मान कछवाहा रा एक चाकर रा एक हाथी रा दांतां में पोयोड़ै कटारी तीन उणीज हाथी रै कुभांथऴ वाही, राम कह्यौ संवत १६६८ पातसाह री फौज दिखण में जावै जद”
जोगीदास भाटी की कटारी का उक्त वृतान्त सुन कर सूर्यमल्ल मिश्रण कृत ‘वीर सतसई’ का यह दौहा सहज ही स्मरण हो आता है।।
साम्है भालै फूटतौ, पूग उपाड़ै दंत।
हूं बऴिहारी जेठरी, हाथी हाथ करंत।।
ऐसे वीरों के कारण ही यह मरूधरा वीर वसुन्धरा के नाम और रूप मे विश्वविख्यात है।।
~~राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)