जोग माया रो गीत सपाखरु – कविराज लांगीदास जी

देवी झंगरेची, वन्नरेची, जळेची, थळेची देवी;
मढेची, गढेची देवी पादरेची माय।
कोठेची वडेची देवी सेवगाँ सहाय करे,
रवेची चाळक्कनेची डूँगरेची राय।।1
कुंराणी पुराणी वेद वाणी मै पुराणी कहीं,
व्रसनाणी वृध्धवाणी बुढीबाळावेश।
माढराणी कृतवाणी हंसवाणी ब्रह्मवाणी,
अंद्राणी रुद्राणी भाणी चंद्राणी आदेश।।2
पुरब्बरी पच्छमरी दक्खणां ओतरापरी,
धोमेसरी गोमेसरी योमेसरी धन्न।
शीतंबरी रत्तंबरी पीतंबरी हरीश्याम,
प्रमेशरी इश्शवरी होव थुं प्रसन्न।।3
शुद्राणी वैश्य-आणी खत्राणी ब्रह्माणी सोय,
व्रध्धणी जोगणी बाळ वेखणी विधात।
त्रिभोवणी सतोगणी राजसणी तामसणी,
मोहणी जोगणी तमां नम्मो नम्मो मात।।4
जया सार दया वया त्रनेत्रा विजेया जया,
सम्मैया अम्मैया मैया बणाया समत्त।
कहे इम लांगीदास जोग मैया मया करे,
याद दया अया सत्त आदिय शकत्त।।5
~~कविराज लांगीदास जी
आप जो भी छंद या रचना इसमें पोस्ट करते है वो जिस ग्रँथमें से रचना ली है उसका ग्रँथ नाम, कवि नाम ,या जिसने जो पुस्तक सम्पादन या संपादित किया है उसका पैज नम्बर या सम्पादक नाम लिखे जो प्रमानभूत है
उत्तम सलाह आपकी प्रवीण सा। अधिकांशतया मेरे पास जब लोग रचनाएं भेजते हैं अथवा मे इंटरनेट से डाउनलोड करता हूँ तो रचनाकार का नाम तो होता है किन्तु संदर्भ ग्रंथ का कोई विवरण नहीं लिखा होता है। में कोई भी रचना अब से यदि किसी ग्रंथ से सीधे टाइप करूंगा तो आपकी सलाह अनुसार सोर्स के बारे मे जानकारी अवश्य साथ मे लिखूँगा हुकम। बहुत बहुत आभार आपका।