जूझार मूल सुजस

बीकानेर जिले री कोलायत तहसील रै गांव खेतोलाई रै सालमसिंह भाटी रो बेटो मूल़जी एक वीर क्षत्रिय हो। सं १८६६ री भादवा सुदि १२ रै दिन ओ वीर चोखल़ै री गायां री रक्षार्थ जूझतो थको राठ मुसलमानां रै हाथां वीरगति नै प्राप्त होयो। किवंदती है कै सिर कटियां पछै ओ वीर कबंध जुद्ध लड़ियो। आथूणै राजस्थान रे बीकानेर, जैसलमेर नागौर अर जोधपुर मे इण वीर री पूजा एक लोक देव रे रूप मे होवै।मूल़जी जूझार रे नाम सूं ओ अजरेल आपरी जबरैल वीरता रे पाण अमरता नै वरण करग्यो।जैड़ो कै ओ दूहो चावो है :-
मात पिता सुत मेहल़ी बांधव वीसारेह
सूरां पूरां बातड़ी चारण चीतारेह।।
इणी कारणै म्है उण वीर री अंजसजोग वीरत री कीरत नै म्हारै आखरां मे पिरोय श्रद्धा सुमन अर्पित कर रैयो हूं :-
।।दूहा।।
सरसत स्हायक सेवगां, मुदै अरज मम मांन।
वरणूं जस वर वीर रो, दैण सुभक्खर दांन।।१
गणपत पत राखण गुणी, सगत पूत सूंडाल़।
गौ रिछक जस गायसूं, तवां विघन तूं टाल़।।२
मँझ मगरै थल़ मांयनै, खेतोल़ाई खास।
जदु मूल़ो धिन जनमियो, ऊ सालम ऐवास।।३
सालम सुत मूल़ो सबल़, मालम है महि माथ।
जालम ढाहण जोरवर, सरणागत रै साथ।।४
आया मुसल़ अपार रा, ससत्र पाती साज।
घेर्यै गायां जेथ सूं, अखूं छंद रच आज।।५
।।कवत्त।।
मुसल राठ जग मांय, करुर अनीतां करवै।
हरवै धन वित हेर, दनुज दिल नाही डरवै।
फिरवै निस दिन फिटल़, चोर मुलक रा चोगा।
ढोर घेरलै धीठ, जोध रोकै नहीं जोगा।
पिछम सूं धकै बधिया पतित, हित्त चहूं दिस हेरियै।
खेतोल़ाई मांही खल़ां, गायां आ सह घेरियै।।६
आया ग्वाल़ अनाथ, बातां ज विगत बताई।
गायां लीनी घेर, अणहद आय अन्याई।
केहां किणनै जाय, साय म्हांरी कुण सजवै।
हाय हुवो घर हांण, दगध घण छाती दझवै।
कल़झल़ां गेह टाबर करै, धरै नाय वै धीररै।
गजग्राह कर लावै गायां, बेड़ो न दीखै वीर रै।।७
।।दूहो।।
इक माणस इण विध अखी, करदो मूल़ै कांन।
धन वा’रू बणसी धकै, मही रुखाल़ो मांन।।८
।।छप्पय।।
मंडण कीरत मांण, धरम कज खागां धारै।
अडर रुखाल़ण आंण, लाल चख चढसी लारै।
बहै बडेरां वाट, आयतां सीस उडासी।
जबर पणै जदुरांण, लांठ धेनां घर लासी।
मो मन आई सो म्है मुणी, जेज करो ना जावतां।
जदुरांण आय जंग में जुड़ै, सायल़ कांन सुणावतां।।९
।।दूहा।।
अबल़ ओट तो आविया, सबल़ पणै कर साय।
तूं रीझै सालम तणा, निबल़ रहै को नाय।।१०
अरियण आया राठ इम, सगठण जोर सजाय।
घेरी गायां गांम री, जोर तणै ले जाय।।११
ओट तिहाल़ी आविया, सुणजै म्हांरी साद।
राखण चढ रणभोम में, मूल़ा तो मरजाद।।१२
कल़झल़ करता पेखिया, हर नर-नारी हेर।
ऐम मूल़ो इम आखियो, गायां लासूं घेर।।१३
।।छप्पय।।
गायां लासूं घेर, पछै हूं पाणी पीसूं।
देसूं दुसटां दंड, कोल ओ साचो करसूं।
रैसूं का रण भोम, चाव रजपूती चावूं।
खंडण करूं खल़झुंड, रुंड पगां रल़कावूं।
इण काज गेह जावो अवस, रंज मनां मत राखियो।
हेकलो गायां लावूं हमे, ऐम मूल़ै सुध आखियो।।१४
।।दूहा।।
बीजा तो बोता बण्या, रणबंका रजपूत।
सूरापो राखण सबल, सालम तणो सपूत।।१५
विप्रां गौ वा’रू बणै, गावै दुनिया गीत।
असली रो अंस अवस ही, रखै छत्रियां रीत।।१६
।।छप्पय।।
रसा छत्रियां रीत, कस्ट दुखियां रा काटै।
छती छत्रियां रीत, सीस दे अवनी साटै।
रखै छत्री आ रीत, निडर नह वचन दे नटै।
छती छत्रियां रीत, काज भड़ कीरत कटै।
माण मरजाद रीतां मंडण, खाग बल़ां खल़ खंडणा।
धिन देह छंडै देखत दुनी, छत्री रीत न छंडणा।।१७
।।दूहा।।
अस चढियो बधियो अवस, डरियो ना डकरेल।
सुरभ्या घेरण हिव सबल़, बूवो चढ बबरेल।।१८
सुण बातां ऐ साख रै, धिनो खाग कर धार।
सुरियां कज चढियो समथ, जंग लड़ण जोधार।।१९
।।छप्पय।।
प्रिथी बजै अस पोड़, थूल़ वपू थररावै।
घबरावै घरघेट, देख कातर दहलावै।
ओ जावै अजराट, लंकाल़ो गायां लारै।
मन में मरणो लेर, धजलड़ कर उर धारै।
ईखियो पैंड अगलै अवस, जवन गायां ले जा रिया।
मूंछियां मरट देयर मुदै, वीर मूल़ै बोकारिया।।२०
बंब घुर्या बोकार, वार रणभेरी बाजै।
धर बाजै रणढोल, गीत जांगड़ा गाजै।
साजै खेटक सूर, चंद्रहासां ले चौड़ै।
भालो ले भुरजाल़, दोयणां ऊपर दोड़ै।
अवसांण लेयण आयो उरड़, जंग में जोधो झूमरै।
हेवरां हणणाट कर हमे, गणणाटां रण घूमरै।।२१
हाथां छत्री हेर, लत री रवंद ज लेवै।
खागां इधकी खीज, बीज कांसी पर बेवै।
करती घाव करूर, भरती धेन दुख बेवै।
डाकण जिमां डकार, कवण कमती इम केवै।
अमरांण आय जुड़िया उठै, पह लड़तां धर पेखियो।
प्रसन्न अणपार थया प्रतख, दनुज काटतां देखियो।।२२
मूल़ जुधां कर मांय, तुरक माथा घण तुड़ता।
गुड़ता भड़ घमसांण, मरद दोड़ै घण मुड़ता।
गायां कारण गाढ, आज मूल़ो अगराजै।
जमदाढां तन झाल, भड़ मूसल़ रण भाजै।
रोजायतां रुंड कटियां रखै, रंग देवूं जदुराज रे।
रण बीच रगत फागण रमै, कीरत काटण काजरै।।२३
सुरियां घेरी सोज, हमे आगल हलकारी।
खल़ां कनै हूं खोस, लाल सालम ललकारी।
तुरक बाही तरवार, पार कमल़ रै पूगी।
सीस गयो सुरलोक, आंखियां छाती ऊगी।
भूखियो भुजंग छेड्यो भलां, जवनां मोतज जांणियै।
कंस रो काल़ कांनड़ बियो, तरवारां रण तांणियै।।२४
।।दूहो।।
सालम सुवन सकड़ सिरै, जूझ रियो जूंझार।
सुरियां मोड़ण हद सधर, तोड़ अर्यां तरवार।।२५
।।छंद – रोमकंद।।
अड़िये करवाल़ मुखांमुख आगल,
ई घड़ियै हद काज घड़ै।
झड़ियै नभ औसर छांट झडाझड़,
झाट लगां जिम सीस झड़ै।
पड़ियै रण बीच धड़ां घण पांमर,
ऊ मड़ियै जण नीच उठै।
जदुरांण रिमां बण काल़ जुड़ै जँग, वीर मूल़ो विकराल़ बठै।।२६
कर हाकल जेम कपीस ज्यूं कोपण,
पाव सूं रोपण तंब पखै।
वनधीस दल़ै गजराज तणा दल़,
रीस जिमां जदुवीर रखै।
रवदांण उथाल़िय सूर रढाल़िय,
ई किरमाल़िय पाण उठै।
जदुरांण रिमां बण काल़ जुड़ै जँग, वीर मूल़ो विकराल़ बठै।।२७
अरराट करै अरियांण अपाणज
खाग बल़ां खुरसांण खपै
घण घांण हुवा घमसांण मे घायल
जेथ मुल्ला रहमांण जपै
गव घेरण वीर अजोण गयो वर,
जेम मूल़ो जुधभोम जठै।
जदुरांण रिमां बण काल़ जुड़ै जँग, वीर मूल़ो विकराल़ बठै।।२८
बटकै तन बोड़त मोड़त बाग सु,
जो अटकै कुण आय जठै।
कटकै इम मूल़ सूं धेनव कारण,
फेर सूं क्रोध मे सोर फटै।
उण वेर खटै कुण राड़ सु आंगण,
बोत नठै सटकैज बठै।
जदुरांण रिमां बण काल़ जुड़ै जँग, वीर मूल़ो विकराल़ बठै।।२९
इधकी तुझ आंण थपाड़िय ऊजल़,
जाय जदू घमरोल़ जदै।
रिपु रोल़ दिया अग टोल़ रण,
तावण वैरिय सैन तदै।
अरिभंजण मूल़ अग्राजण बब्बर
आज नी जब्बर राड़ उठै।
जदुरांण रिमां बण काल़ जुड़ै जँग, वीर मूल़ो विकराल़ बठै।।३०
।।दूहा।।
अनल़ झाल़ उगल़ै अडर, बिन सिर करतो वार।
धर सारी धिनकारियो, जबर रंग जोधार।।३१
अरियां अंग बाढण अडर, रंग तोनै रजपूत।
खत्रवट राखण है खरो, सालम-तणो सपूत।।३२
मुसलांपत कैयो मुदै, करां लेवो करवाल़।
बणो कायर मत बेलियां, भला न कैसी भाल़।।३३
मुसलापत कैयो मुदै, फिटल़ां कांनी फेर।
पौच हुती आ प्रगट में गाय लाया क्यूं घेर।।३४
अड़ियां गायां ऊबरै, लड़ियां उबरै लाज।
बेनूं जावै बेलियां,
कहो आया किण काज।।३५
।।छंद त्रोटक।।
मुसल़ा कर जोस पछो मुड़िया।
अरियांण वै मोत सूं युं अड़िया।
पड़िया झल़ बीच पतंग पुणां।
भिड़िया इण भांत वै राठ भणां।।३६
छिड़ियो विकराल़ छत्राल़ छत्री।
रढियाल़ रँगी धर खून रत्री।
इण पार मूल़ो उण पार अरी।
खगधार जदू रख बात खरी।।३७
लँबहाथ बिनां सिर देह लड़ै।
भुज झाल खगां हठियाल़ भिड़ै।
जदुरांण रिमां सिर चोट जड़ै।
जिम बोरड़ियां तर बोर झड़ै।।३८
जमदाढ बहै जमदाढ जिसी।
दल़ती पिसरांण वै च्यार दिसी।
घिरिया मुसल़ा घबराय गया।
थरराय इमां गवूं चोर थया।।३९
अरराय रिपू अग वार अया।
रणभोम पड़्या करराय रिया।
किरमाल़ जदू रण यूं कडकी।
धरधार धराज जदै धड़की।।४०
रणताल़ मूंछाल़ अबीह रमै।
जिम मृग झुंडां बिच सेर जमै।
करठाल़ तणा परहार करै।
डबको मुसल़ां मन सोय डरै।।४१
कडखेत तणो ज पड़ै कड़खो।
खडगां खणणाट हुवो खड़को।।४२
कणणाट किया रण मे कटकै
झटसारज झाटक हो झटकै।
चगदायल चूरण हो चटकै।
खुरसांण दिलां ज खत्री खटकै।।४३
तनत्रांण तुर्कां अंग ही तुड़वै।
घमसांण मही घण ही गुड़वै।
रवदांज अनेक उठै रुड़वै।
मुसल़ां उर जोस पछो मुड़वो।।४४
अणचूक अतार घणा उरड़ै
पण मूल़ अँवेर घड़ां मुरड़ै।
झगडाल़ इमां भुट ज्यूं झुरड़ै।।४५
टणकेल टपेत करै टपणो।
अखड़ेत बचाव करै अपणो।
उपरा़ठ हुई ठरकेल उरां।
कमसीस उडै हिवकेम करां।।४६
भयनाम नही रण सूर भमै।
सुरभी सब घेर उणीज समै।
रण रावत ओ ज नत्रीठ रमै।
नर सिध नरेसर नाग नमै।।४७
गनीमांण नु मार सुरग्ग गयो।
इम लेवण जादव इंद अयो।
थिर आज प्रिथी जस नाम थयो।
भड़ देव थल़ी बिच जोर भयो।।४८
सुण साद कवि वंस आप सयो।
रतनू कुल़ साथ सनात रयो।
जग कोड़ जुगां होय मूल़ जयो।
कवि ख्यात सुणी जिम छंद कयो।।४९
।।गीत – प्रहास साणोर।।
सुरग मे बधावण अपछरा झूल़ सज सकल़,
हरखती परण नै तूझ हाल़ी।
जोस मन थापियो हाथ तुझ झालवा,
चाव कर भाव सूं वरण चाली।।५०
पट पैरियां जरी रो निरखती प्रीत सूं,
मोहणी नजर सूं उवै मोहै।
सजा इम अनुपम रुप वै सोचती
सूर रे संग मै कवण सोहै।।५१
फूठरी सजाई माल़ पुसबांण री,
रीझाई आप नै रुप रूड़ै।
गल़ै मे सूर री सैनांणी घाल़दी,
चाव सूं पैराई आप चूड़ै।।५२
सुकवियां काज तो आज ही सुधारै,
अबेढी वार मे भीर आपै।
अमर तूं रहेलो इल़ा रै ऊपरै,
जसां रा बोल संसार जापै।।५३
बणायो सुजस कर अंजस वरवीर रो,
सुणायो सुकवियां मूझ साची।
धिनो रणभोम में सुणी तुझ धीरता,
वीरता ‘गिरधरै’ फेर बाची।।५४
।।दूहा।।
जोध भाटी रण जूझियो, राखण रजवट रीत।
ऊ सुजस कवि आखियो, पाल़ सनातन प्रीत।।५५
सुत सालम कटियो सधर, जदु गायां हित जांण।
मूल़ा इण कारण मुदै, वसुधा करै बखांण।।५६
सँमत अठारै छासठो, महि सुध भादव मास।
तिथ बारस वरती इल़ा, खिंये कियो जुध खास।।५७
अमर मूल़ा है आज ही, बसुधा जस री बात।
भणी ‘गिरधरै’ भाव सूं, खरी सुणी ज्यूं ख्यात५८
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”