ज्वारडा! खम्मा घणी!ओ ठाकरां

तावडा ज्यूं क्यूं तपौ हो आकरा,
ज्वारडा! खम्मा घणी ओ ठाकरां!
बाजरी रो एक कण दीधा बिनां,
बोरियां भर बांटिया क्यूं काकरा!
छाल़ियां द्यो आज चरवा सीम में,
काल ले लिजौ भलां दुय बाकरा||
रोहिडा, अर खेजडी सब सूख ग्या,
है बच्यौडा दोय दरखत आक रा!
काल़ में उपजै न कण इक मरुधरां,
है भलांई खेत सबरे लाख रा!
बीजवारौ, खाद रो खरचौ घणौ,
करज उतरै किम लियौडा लाख रा!
प्याउ तो दिसै नहीं इण परगणै,
ठौड हर ठेका लग्यौडा छाक रा!
पेट रो पूरौ करण संभव नहीं,
कियां देखूं सुपन दाडम दाख रा!
करज दीजौ अर किराणौ सेठजी,
हमों कायल हों तमीणी साख रा!
ब्याज, काटौ,मुदल सब थें वाल़जो,
रख’र म्हानै जियां नौकर चाकरां!
काल माटी में मिल़ै माटी बणों,
रांमकां आंपे सरब हों राख रा!
गियां नेडा ठा पडे है रे “नपा”,
फूटरा सब दूर सूं है भाखरा!
©नरपत आसिया “वैतालिक”