कागा बिच डेरा किया, जागा अबखी जाय

।।नमन।।
सिद्धां औरूं कवेसरां, जे कोई जाणै विद्ध।
कपड़ां में क्यूं ही नहीं, सबदां में हिज सिद्ध।।
कविश्रेष्ठ केसवदासजी गाडण आ कितरी सटीक कैयी है कै सिद्ध अर कवि री ओल़खाण भड़कीलै कपड़ां सूं नीं बल्कि उणरी गिरा गरिमा सूं हुवै। आ बात शुभकरणजी देवल रै व्यक्तित्व माथै खरी उतरै।
साधारण पोशाक यानी ऊंची साधारण धोती,मोटी खाकी पाघ,अर साधारण ईज मोजड़ी। ना तड़क ना भड़क पण आखरां में कड़क बखाणणजोग।
कूंपड़ावास रा दधवाड़िया चौथदानजी रै घरै वि.सं .1999 री जेठ सुदि सातम रै दिन जनम्या शुभकरणजी हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हा। आपरो नानाणो खैण कवियां रै अठै हो। दोनां कानी साहित्यिक वातावरण।
पढ’र भारतीय जीवन बीमा में राजभाषा अधिकारी रै पद माथै मोकल़ै वरसां तांई सेवा करियां रै पछै साहित्य री सेवा सारू स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति ली।
रामरासो,गजमोख ,देवियांण ,विरमदेव बिड़द जैड़ी काल़जयी कृतियां रो संपादन अर हृदयंगम हुवण वाल़ी सजोरी टीका करी। “करनी”-कीरत जैड़ै नित्य पाठ लायक काव्य रो प्रणयन कियो जिणरो घणा करनी भक्त नित पाठ करै।
भारतीय साहित्य रा निर्माता रै तहत माधवदास दधवाड़िया अर सीताराम लाल़स जैड़ा दो साहित्यिक नर रत्नां माथै गांभीर्य युक्त ललाम लेखन कियो तो ईसरदास बारठ ग्रंथावली रो ई सह-संपादन कियो साथै ई बांकीदास आसिया ग्रंथावली री ई आप उटीपी टीका करी।
आप “चारण-चिंतन” जैड़ी काल़जयी सामाजिक पत्रिका रो संपादन कियो। आपरी साच कैवण री हठधर्मिता रै कारण ई आ वरेण्य पत्रिका कीं लोगां रै अहम री शिकार हुयगी।
“चारण-चिंतन” रै माध्यम सूं ई आप केई ग्रंथ छापिया जिणांमें एक उल्लेखणजोग नाम है- नरहरि दासजी बारठ विरचित “अवतार चरित”। “चारण चिंतन” रा हर अंक संग्रहणीय हा ही, पण कैलाशदाजी ऊजल़ अर देवकरणजी बारठ विशेषांक उल्लेख्य ई है।
आप साहित्य ,संस्कृति, समाज रै साथै -साथै इतिहास रा विज्ञ विद्वान मनीषी हा। केई विद्वानां री महनीय पुस्तकां री आप भूमिकावां लिखी।
आज आ यानी 23/4/19 नै क्रूर खबर पढणनै मिल़ी कै आप इण दुनिया में नीं रैया। इणसूं राजस्थानी साहित्य री तो अपूरणीय क्षति है ही साथै ई म्हारै सारू ई निजी क्षति है। 1993-94 सूं म्हारी साधारण ओल़खाण कदै अथाह अपणास में बदल़ी? कीं ठाह ई नीं लागो!उणांरी इतरी अपणास ही कै उवै घंटां टेलीफोन कर’र म्हारै सूं साहित्यिक चर्चा करता। “चारण चिंतन” रै लगैटगै हर अंक में म्हारी उपस्थिति आप राखी। लिखती बखत जदकद ई गाडी कादै में कल़ीजती तो आपनै वेल़ा-कुवेल़ा फोन करतो अर गाडी बारै।
लारलै महीणै जोधपुर में आप एक शादी में मिल़िया। थोड़ीक साहित्यिक चर्चा हुई पण वा चर्चा छेहली हुवैला आ म्हैं नीं सोची ही। आज शुभकरणजी तो कागा री अबखी जागा जाय डेरा किया।
आपरै देहावसान रो मतलब है कै मध्यकाल़ीन चारण साहित्य रै संदर्भकोश रै एक अध्याय री समाप्ति।
सरल़मना,मिलनसार, साधारण व्यक्ति में आप एक असाधारण व्यक्तित्व हा। ऐड़ै महामना नै म्हारी विनम्र श्रदांजलि अर प्रणाम।
ईश्वर आपरी पुण्यात्मा सद्गति अर परिवार नै आघात सहन करण री शक्ति देवै–
क्रूर खबर कानै पड़ी,उडती आज अचाण।
शुभक्रण देवल सरगदिस,प्रेमी कियो प्रयाण।।1
कूंपड़ास कर ऊजल़ी,कर निज ऊजल़ कोम।
चौथहरै चित ऊजल़ै,अखियो अंतिम ओम।।2
सकरम कीधा शुभकरण,भिड़ियो अकरम भाल़।
देवल बहियो देवपुर,अपणो वंश उजाल़।।3
मिनखपणै सथ मोटपण,खिती कीरती खाट।
माधवहर म्रितलोक तज,बहियो सुरपुर वाट।।4
बात ख्यात इतियास विध,कायब अरथ कतान।
संस्कृति धर्म सार सथ,गढवी देतो ग्यान।।5
चारण चिंतन चेतना,भलपण अंतस भाव।
अपणां सूं रखतो इमट,लखविध नेह लगाव।।6
आहँस उर रखियो इमट,साच कहण बिन शंक।
राम भरोसै रहण नित,ऊजल़ रखगो अंक।।7
मरट साथ मरजाद मन,चिंतन चारण चित्त।
उर धारण इण अहरनिस,रहियो देवल रत्त।।8
डर बिन बहियो सत डगर,जिगर कलम बल़ जाण।
झुकण न सीख्यो जबर अग,मुकण न दीधो माण।।9
संपादक विद्वान बड,शुद्धमन साहितकार।
अटल़ भरोसो अलख रो,धिन रखियो उर धार।।10
पारंगत पींगल़ पुनी,डींगल़ में भर डांण।
बहुभाषी विखियात वो,शुभ कव हुतो सुजांण।।11
रामरासो गजमोख रु,लाल़स सीतारांम।
मन शुद्ध माधवदास पर,कीधो साल़स काम।।12
विरमदेव रो बिड़द बड,दिल मंझ देवियांण।
सको सुलभ टीका सहित,करी प्रसिद्ध कवियांण।।13
करनी री रच कीरती,अखियो ग्रंथ अनूप।
सेवा घर राखै सकव,धिन नित खेवै धूंप।।14
सुरपुर शुभक्रण संचर्यो,नरपुर थिर रख नांम।
अपणायत आगार नै,प्रणमै गीध प्रणाम।।15
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी