कागा पग लागा थनें

कागा पग लागां थनै, मागां इतरो मीत।
घर री जागा बैठ मत, उड कर विरहण हीत॥1
कागा पुरसूं आप कज, खांड मलाई खीर।
खाय’र उडजा आवसी, तदै नणद रो बीर॥2
कागा थुं करकस घणौ, कडवा थारा बेण।
विरहण तौ पण राखती, नत्त नजीकां नेण ,॥3
कागा ! मीठा राग रा, करकस रव कह कूंण।
निंदक थारा रे हिया-घाव; छिडक दूं लूंण॥4
कागा थारै बोलतां,जागा म्हारा भाग।
विरहण रो हरियौ हुऔ, सूखौडौ मन बाग॥5
पागा वाळा पांवणा,आगा वसिया दूर।
कागा उडजा आजतौ, -रागा लय संतूर॥6
थारे उडता आवसी, हिवडौ हॅसतौ जेण।
साजनियौ मन भावणौ, साच माच रो सैण॥7
आज बुहारुं आंगणौ, ग्वाड पौळ नें द्वार।
पीतम आवै पांवणा, कागौ करै पुकार॥8