कहो केथ हो डोकरी

( मेहाई सतसई – अनुक्रमणिका )

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रण वन गिरवर समदरां, आपूं थनैं अवाज।
कहो केथ हो डोकरी, मेहाई महराज।।२५६
किनियाणी कूकै रियौ, आई सुणौ अवाज।
सांची वड जग री सगत, मेहाई महराज।।२५७
क्यूं बोळी किनियाण ह्वी, जबर फँसी मां जाज।
कूक कूक कायो भयौ, मेहाई महराज।।२५८
पंथ पोतरांणी परी, कांई पड्यौ वा काज।
बोलायां बोलो नहीं, मेहाई महराज।।२५९
बरस छसौ री डोकरी, बूढी है घण मां ज।
कारण इण देरी करी, मेहाई महराज।।२६०
कांई गलती म्है करी, म्हनै बतावौ मां ज।
भूल माफ करणी भवा, मेहाई महराज।।२६१
किनियाणी हो कैद मँह, जकडी जंजीरां ज।
इण कारण आवौ नहीं, मेहाई महराज।।२६२
थग थग पग चालत थकी, किम कवियों रे काज।
देर करी घण डोकरी, मेहाई महराज।।२६३
खोडल जिम खोडी भयी, आई आखूं आज।
देर करी देशाणपत, मेहाई महराज।।२६४
किनियाणी बोळी कियां, म्हां वेळा व्ही मां ज।
साद करुं नँह सांभळो, मेहाई महराज।।२६५
आई आगै आविया, एकर दियां अवाज।
देर लगाई डोकरी, मेहाई महराज।।२६६
राजी किनियाणी रहो, करो विदग रा काज।
रूठौ मत राजेस्वरी, मेहाई महराज।।२६७
जग रुठ्यां तौ आसरो, थां रुठ्यां नह था ज।
है अरजी राजी रहो, मेहाई महराज।।२६८
किनियाणी कीधी खरी, दुख देखै डरिया ज।
सुध नँह लीधी शंकरी, मेहाई महराज।।२६९
किनियाणी कीजो कृपा, फँद सब करो फना ज।
समपो आणँद शंकरी, मेहाई महराज।।२७०
दोहा री झड डोकरी, जबर लगादी मां ज।
मन म्हारौ भींज्यौ मधुर, मेहाई महराज।।२७१

~~नरपत आसिया “वैतालिक”

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