कांई धरती माथै अजै राठौड़ है?

एक बारोटियो नाहरखान हो। किण जातरो राजपूत हो ओ तो ध्यान नीं पण हो राजपूत। उवो आपरै लाव-लसकर साथै सिंध रै इलाके में धाड़ा करतो अर मौज माणतो। इणी दिनां मेवाड़ सूं आय एक रामसिंह मेड़तियो ई इणरै दल़ में भेल़ो हुयो।
रामसिंह मन रो मोटो अर साहस रो पूतलो। डील रो डारण अर खाग रो धणी हो सो नाहरखान इणनै धाड़ै में मिनखां दीठ पांती दैणी तय कर राखियो।
बारोटियां रा डेरा डांग माथै ई रैता। कणै ई धोरै लारै तो कणै ई बी धोरै लारै। पण आप-आप री जूण में सगल़ा मस्त रैवै सो ऐ ई आपरी इण जींदगी सूं राजी।
एक दिन इणां रा रोही में डेरा। आसै-पासै बीजै राजपूतां रा तंबू अर बिचाल़ै नाहरखान रो तंबू लागोड़ो हो।
दिन आथमतै री बात। मंधारो पड़ रह्यो हो कै उठीनै दासाणिया रो चारण अचल़दान मिकस आपरी घोड़ी चढियो आयो। नैड़ो-नैड़ो गांम रो खुड़खोज ई नीं। ठैरणो कठै रह्यो? जितरै उणनै एक छांग अर छांग रो ग्वाल़ दीसियो। उण जाय एवाड़ियै नै पूछियो- “भाऊ रातवासो लैणो है ! कोई नैड़ी ढाणी-ढपाणी हुवै तो बता!!”
आ सुण एवाड़िये कह्यो-
“आप कुण हो?”
“अचलो मिकस हूं, दासाणिये रो !!”
“तो बाजीसा ! आपनै ढाणी-ढपाणी सूं कांई काम? आपनै रातवासो लैणो अर बंतल़ करणी। बंतल़ करणनै ई राजपूत चाहीजै। थांरै बैठी भैंस्यां खेत आयो।
बो देखो नाहरखान रो डेरो !! उठै जाय रैवो, आप तो चारण हो, दो पईसा घी सूं राखैला। ” एवाड़िये कह्यो। तो अचल़जी पूछ्यो-ओ नाहरखान कुण अर कठै रो?
आ सुण’र ग्वाल़िए कह्यो-
“म्हैं आंगल़ीसीध करी। बाकी री सैंध पैचाण आप काढजो। म्हैं भुच आदमी कांई जाणूं कै कुण है?पण है राजपूत। इणमें मीनमेख ई नीं। ”
आंधै नै दो आंख्यां चाहीजतै! बाजीसा उठीनै घोड़की टोरी।
कनै जाय हेलो कियो- “ठाकरां नाहरखानजी! ओ ठाकरां नाहरखानजी!! पण ठाकर जागता घोरावै हा, सो हेलो सुणियो नीं। वे उडतो तीर नीं लैणो चावता सो बला नै टाल़णी ईज ठीक समझी पण हेलो सुण एक आदमी तंबू सूं निकल़ियो अर अचलदान नै हेलो कियो-
“कुण हुसी? अठीनै आवा रा!!”
बाजीसा घोड़ी उण तंबू कानी लेयग्या।
तंबू रै धणी पूछियो-
“कुण हुसी?”
बाजीसा कह्यो-
“अचल़ो मीकस”
“भलां आया! जी आया!!
पधारो बा पधारो!!”
अचलदान पूछियो- “तो कांई आप नाहरखानजी हो?”
“नीं, हूं रामो मेड़तियो !!
“जय माताजी री ठाकरां!!” कैय अचल़दान, रामसिंह सूं जंवारड़ा किया।
“आवो रा तंबू में ईज।”
कैय रामसिंह बाजीसा नै तंबू में ले जाय आपरै बिछावणा माथै बैठाया अर खुद हाथ सूं रोटा करण लागो। उण दिनां धान कठै?अर बो ई रोही में!! सो धाड़वी दीठ दो रोटां रो आटो मिलतो। सो रामसिंह रोट सेक पैला एक रोट बाजीसा नै पुरसियो अर कह्यो “अरोगो बा!!”
आ सुण बाजीसा कह्यो-
“हुकम धान रो कोठलियो जरूर हूं पण एकलो नीं जीमूं ओ म्हारै खण है सो आप ई ले लिरावो तो साथै ई जीमां!!”
रामसिंह कह्यो कै-
“बा म्हारै ई खण है कै अतिथि नै पैला अंजल़ कराऊं अर पछै म्हैं करूं। पछै एक आदमी रो सीधो(भोजन) अर आंपै दो!! म्हारै अठै आप भूखा रैवो तो म्हारो मरण है सो आप जीमो !!”
बाजीसा कह्यो-
“नीं, हूं एकलो ग्रास लूं तो करणी री आण है।”
शायद तेजसी ऐड़ै मोटमनां सारू ई ओ दूहो कह्यो हुसी-
सीलवंत जोबन समै, दुरभख अन्न दातार।
त्यां पुरसां नै तेजसी, वेली सिरजणहार।।
दोनूं एक-एक रोट ले जीम, सूता। दिनूंगै पांच-सात बीजा राजपूत ई रामसिंह रै तंबू आया। रैयाण हुई। अचलदान, रामसिंह रा दूहा पढिया-
भावै रुपिये सेर कर, भावै रुपिये पोट।
घटिये जुग थटिये नहीं, राम कमँध रा रोट।।
रोट झटक्कै रज उडै, पह धूंधल़ा पहाड़।
रामै भूंजाई रखी, मारू नर मेवाड़।।
भल़ै घणा दूहा हा पण समय रै थपेड़ां में कठै ई ओटीजग्या।
रामसिंह री आ बडाई बीजोड़ां सूं सहन नीं हुई अर उणां जाय नाहरखान नै भिड़ायो कै-“एक बाजी नै रामसिंह रातै एक रोटियो कांई खड़ाय दियो! जाणै कोई करोड़ पसाव दे दियो है। उणां तो रामै नै मोटो दातार कह्यो !! आपरो कोई नाम ई नीं। ” आ बात नाहरखान सूं सहन नीं हुई सो उण उणी समय कह्यो-“रामा हमे थारा-म्हारा दो मारग!! हमे ऐ रोट दूजी जागा खड़ावजो। ”
रामसिंह ई अकूणी रो हाड हो सो उवो आ बात कीकर सहन करतो। उवो आपरो ऊंठ ले निकल़ियो जको उमरकोट सोढां रै उठै जाय रह्यो। उणां रै उठै आपरै जोग जको ई काम हो करण लागो।
खासै दिनां पछै उणरो ऊंठ मरग्यो सो वो ऊंठ खरीदण नै निकल़ियो। फिरतै-फिरतै नै तिस लागी जणै एक झूंपड़ै जाय पाणी पीवणो कियो। उण झूंपड़ै आगै जाय हेलो कियो जणै एक पंद्रह-सोल़ै बरसां री बाई निकल़ी। पूछियो-
“ढाणी किणरी है?”
जणै बाई जवाब दियो कै-
“फलांणजी री” तो साथै ई पूछ्यो कै
“थे कांई जातिया हो?”
“हूं मेड़तियो” रामसिंह कह्यो तो बाई भल़ै पूछ्यो कै-
” ऐ मेड़तिये भला किणमें आवै?”
आ सुण रामसिंह कह्यो कै
-“राठौड़ां में हूं!”
आ सुण उण बायली इचरज में पड़ती कह्यो-
” तो कांई अजै धरती माथै राठौड़ है?”
“है तो सरी ईज! बीजो राठौड़ कठै गया है!!”रामसिंह कह्यो तो वा बाई पाछी बोली कै–” पिंडां में राठौड़ी राखो हो कै खाली बजण रा ईज राठौड़ हो!!”
जणै मेड़तिये कह्यो कै-“अजै थोड़ी घणी रजपूती तो राखूं !
बतावो कांई काम है रजपूती सूं?”
जणै उण बाई कह्यो कै-” फलाणी जागा रै मीर नै म्हारी भुवा परणायोड़ी ही पण उण मीर रै कोई डावड़ो नीं हुयो। गुढै घणी जमी जागा! सो उण भुवा म्हारो मांगणो कियो अर घर रां खचरां रै भराव रुपिया ले उण मुसल़ै साथै म्हारी सगाई की!! ऐ पड़िया रुपियां सूं चाडा भरियोड़ा। हूं उण बूढै मुसलै नै परणीजणी नीं चावूं जे राजपूत हो तो म्हनै ले जावो!!”
आ सुण रामसिंह कह्यो कै-“हणै म्हारै गुढै चढण नै संझ नीं सो हूं कोई ऊंठ खरीदलूं अर पछै तनै ले जावण रो कोई पव (विचार) करूं!! बता कै थारै ब्याव आडा कितरा दिन है?”
आ सुण उण बाई कह्यो कै-“अजै डोढ महीणो है। थे ऊंठ खरीदो जणै हूं कैवूं सो करो!! अठीनै आगे तल़ाई है। हणै तल़ाई माथै तीन-च्यार टोल़ा पीवण आसी सो सगल़ां सूं पछै एक टोल़ो आसी। उण में एक रातो थाकोड़ो पांगल़ियो (युवा ऊंठ) हुवैला जिण माथै दो-तीन डीकरिया चढ्योडा हुसी। बो थे ले लिया। ”
रामसिंह, उण बाई रै कैयै मुजब बो थाकोड़ियो पांगल़ियो खरीद लियो अर उणनै घी दे फेरणो शुरू कियो सो पैलै दिन पांच कोस। दूजै दस, तीजै पंद्रह ! इयां करतां पैंडो (चलने की दूरी) बधावतो ग्यो। उठीनै डोढ महीणो हुयो अर अठीनै ई बाई नै परणीजण इणरै घरै मीर री जान आई। समेल़ै री त्यारी हुई। घरवाल़ां फरासै (दरियां) बिछाई अर सांई (बडो मिनख) रा कोड किया। अठीनै उण बायली रामसिंह नै कैवायो कै-
“आंख में रातो कस अर कीं रजपूतपणो है जणै तो म्हनै ले जा! हूं फलाणै ढुबै (धोरो) कनै आऊं नींतर म्हारा करम फूटा सो माठ (धैर्य) झालूं!!”
रामसिंह कह्यो-“आवोरा ! हूं ढुबै गुढै ईज आपनै उडीकूं। ”
उवा बाई कटोरदान में कीं सीधो ले ढुबै गुढै आई अर मेड़तियै नै कह्यो कै-“थोड़ी डचल़ी (जल्दबाजी में खाना) लेवोरा!!”
मेड़तियै कह्यो कै-“काला हुवारा कै कांई बात है? घर जावै अर झांझण गाईजै!! ओ कोई जीमण रो मोको है? थे तो अजेज लारलै आसण (ऊंठ की पीठ) आवोरा। ”
उवा बाई मेड़तिये रै लारै चढी सो ऊंठ धरती रो कालजो चीरतो ऐड़ो बुवो जणै कोकड़ियो ऊधड़ियो है-
ऊंठ उठाल़क नेह तज्ज, बहै उलाल़ै पग्ग।
के चढ लाए पावणा, के वैर्यां ऊपर खग्ग।।
एकी-ढाण भाखफाटी दासणियै रै कुए ढूको। कुओ तेईजै हो। गोसी (कोस से पानी खाली करने वाला) बारा अर खांभी (खीली निकालने वाला) खीली काढ रह्यो है। कोठो पाणी सूं भरियो है सो ऊंठ झेक रामसिंह उतरियो। उण बायली नै ई उतारी। ऊंठ तिरसो हो सो खेल़ी ढूको। तपियै हाड पाणी पी थोड़ो झेकियो (बैठा) जिको पाछो उठीज्यो ई नीं जणै रामसिंह ई भाठै रै सिरांतियो दे आडो हुयो जको झेर आयगी।
उवा समझणी अर चातरक लुगाई ही सो पावरो (चमड़ै से बना हुआ थेले नुमा) संभाल़ियो तो देख्यो कै अमल रा बटिया पड़िया है। उण अटकल (अंदाजा) कियो कै मेड़तियो बंधाणी है सो अमल उतरियो। ऊगां बिनां आगै बैणो मुसकल है। उण कोई ठांम में कोठै सूं पाणी ले अमल गाल़ मेड़तियै नै चंचेड़ पायो। अमल ऊगो अर आपरो असर बतायो-
खाग उझल्लां गज टल्लां, है सेलां बरगल्ल।
तिण वेल़ा दाणार तण, अइयो मीत अमल्ल।।
पड़ै ठौर त्रंबागल़ां, हुवै मरद्दां हल्ल।
भागां पीछै बाहुड़ै, अइयो मीत अमल्ल।।
रिणवाट झाट रूकां रमण,
करै टूक जरदां कड़ी।
अमलियां तणी उरां इसी,
तूं की जाणै बापड़ी।।
इणी सारू तो मोडजी आसिया कह्यो है-
तिकण घड़ी अमली तणी, नाचै नड़ी नड़ीह। ।
मेड़तिये री नड़ी-नड़ी नाचण लागी। उण कुए वाल़ां नै पूछियो कै-
“ओ किसो गांम है?”
उवां कह्यो कै-
“ओ तो दासाणियो चांपावतां रो!!”
उण पाछो कह्यो कै-
ओ दासाणियो है! जणै अचलदान रो घर किनै है?”
कुए वाल़ां कह्यो कै ऊवो फलाणी जागा!! जितरै अचल़दान आप खुद कुए माथै आया रा। कुए वाल़ां कह्यो-“लो बाजी खुद आयग्या। ”
रामसिंह अचल़दान सूं मिलिया-
बंध छूटण सजण मिलण, नर को पावै न्याव।
तीन दिहाड़ा हरख रा, कहा रंक कहा राव।।
दोनां रै हरख रो कोई पार नीं रह्यो।
अचल़दान कह्यो- “आज सूरज भलो ऊगो सो थे म्हारी टापरड़ी पवित्र करी बडा सिरदार!!”
आ सुण रामसिंह कह्यो बाजी जीवता रैया तो थांरै आंगणै हालांला ! लारै इणगत वाहर पग दबियां आवै सो कोई मारग घालो!! कै आगै कांई करणो रह्यो?”
आ सुण अचल़दान कह्यो-
“हमे थे छूटारा !! ओ चांपावतां रो खेड़ो है-
चख चांपा कूंपा कमल़, जैता तन री जोत!!
थांरै हाथ घालसी जको पैला म्हारै हाथ घालसी। ” आ कैय अचल़दान दासणिये ठाकर नै पूरी बात बताई अर कह्यो कै “ओ रामसिंह हमे आपांरी शरण है!! रामसिंह रै कीं हुयो तो आपां रो मरण बिगड़सी!!”
ठाकरां कह्यो-आप निचींत रैवो-
केहर केस भमंग मण, सरणाई सूहड़ांह।
सती पयोधर कृपण धन, पड़सी हाथ मुवांह।।
ठाकर आसै-पासै रै गांमां सूं मिनख तेड़ाया। जितै लारै घोड़ां चढियां वाहर आई। आगै खुद मीर खड़ियां आवै हो सो दासाणिये ठाकरां रै हाथ री गोल़ी बुई, जिको सीधो मीर रो काल़जो लेती गी। मीर “अल्लाह हो!!” कैय घोड़ै सूं खिरियो। वाहरिया मीर री लास लेय पाछा टुरिया।
दासाणिये ठाकरां सोढी नै आपरी धरम री बेटी मान रामसिंह साथै फेरा किया। मेड़तिया रामसिंह अर तत्कालीन दासाणिया ठाकुरां री कीरत बधी अर इण दूहै नै सार्थकता मिली–
करन मरंतां यूं कह्यो, आगल़ सुर असुरांह।
मेछां बाण भोल़ाविया, कीरत राठौड़ांह।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”