कलंक री धारा ३७०

पेख न्यारो परधान, निपट झंडो पण न्यारो।
सुज न्यारो सँविधान, धाप न्यारो सब ढारो।
आतँक च्यारां ओर, डंक देश नै देणा।
पड़िया छाती पूर, पग पग ऊपरै पैणा।
पनंगां दूध पाता रह्या, की दुरगत कसमीर री।
लोभ रै ललक लिखदी जिकां, तवारीख तकदीर री।।

कुटल़ां इण कसमीर, धूरतां जोड़ी धारा।
इल़ सूं सारी अलग, हेर कीधो हतियारां।
छती शांती छीन, पोखिया ऊ उतपाती।
घातियां घोपीयो छुरो मिल़ हिंद री छाती।
करता रैया रिल़मिल़ कुबद्ध, परवा नह की पीर री।
वरसां न वरस बुरिगारियां, की दुरगत कसमीर री।।

कासप रो कसमीर, उवै घर अरक उजासै।
केसर री क्यारियां, बठै वनराय विकासै।
सुज धरती रो सुरग, वसू नित लोग बखांणै।
अमरनाथ उण धरा, जगत सगल़ो जस जांणै।
राजतरंगिणी जिणी रसा, कव जिथिये रचना करी।
साहित री सीख मिटगी सर्व, भोम उवा दहसत भरी।।

सजै तीनसौ सितर, कलंक री धारा काटी।
संसद रै बल़ साच, पढी जय हिंद री पाटी।
इल़ नै रखण अखंड, करी मरदां मरदाई।
बापो बापो बोल, वाह सह देश बडाई।
धीर रै पाण संसद धिनो, करी भीर कसमीर री।
भारती पूत हरख्या भला, नीचां नदियां नीर री।।

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“जय हिंद!” के गौरवशाली नारे को बद्रीदानजी कविया ने आजसे 50-51 साल पहले संदिग्ध माना था। वे उस समय नहीं मानते थे कि यहां वास्तव में ‘जय हिंद’ हुई भी है या नहीं।उन्होंने बेबाक लिखा था-

नागी द्रोपद निरखतां, कुरू वंश भो निसकंद।
नार हजारां नग्न व्है, (पछै)हार हुई कै जय हिंद?
लड़ पंजाब बंगाल ली, सातूं लीनी सिंध।
कासमीर लेवण खसै, (पछै )हार हुई कै जय हिंद?

अगर आज वे जिंदा होते तो लिखते कि-

पाजी पाकिस्तान सूं, समर जीत ली सिंध।
कमर फबी किरमाल़ियां, हुई जदै जय हिंद।।

फारूक रा पढ फातिया, विटल़ बोल सह बंद।
गहर नाद धर गूंजियो, जोर -सोर जय हिंद।।

कुटल़ चुप्प कसमीर रा, मुफ्ती ऊमर मंद।
दिपी जोत सह देश में, हरस नाद जय हिंद।।

मिटसी आतँक मुलक सूं, नीच हुसी निसकंद।
लोकशाही री लेखनी, हुई आज जय हिंद।।

घाटी में संगीत सुर, छता वेद फिर छंद।
गल़ी- गल़ी सथ गूंजसी, हेर उठै जय हिंद।।

पांगरसी वन प्राजल़्या, उर दुखियां आनंद।
संसद में सुणियो सही, हुवो घोष जय हिंद।।

पीटै छाती पापिया, हुई बोलती बंद।
वतन हितैषी बोल र्या, हर दिस में जय हिंद।।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

 

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