काल़जो काढ माधव कह्यो

कूंपां सूं कसियाह, हुरमां सूं हँसिया नहीं।
बिच कबरां बसियाह, मुगल बच्चा महराजवत।।
महावीर कूंपा री अदभुत वीरता विषयक कविवर मेहा वीठू रो ओ दूहो घणो चावो है। इणी कूंपा रै बेटै मांडण री वीरता सूं प्रभावित होय बादशाह अकबर आसोप ठिकाणो दियो। इणी मांडण री वंश परंपरा मे ठाकुर पृथ्वीसिंहजी होया। पृथ्वीसिंहजी महान वीर, स्वामीभक्त, अर विलक्षण व्यक्तित्व रा आदमी हा। एकर महाराजा जसवंतस़िह रै साथै पृथ्वीसिंह ई हा। बादशाह जाँहगीर रै एक पाल़तू सिंह हो। इण सिंह नै बादशाह पृथ्वीसिंहजी सूं लड़ायो। इण भयंकर सिंह नैं महावीर पृथ्वीसिंहजी निहत्था लड़िया अर हाथां सूं चीर बगायो। इण सूं खुश होय बादशाह जाँहगीर इणांनैं नाहरखान री उपाधि देय सम्मानित किया।
एक दिन ठाकुर नाहरखांनजी आपरै दरबारियां साथै बैठा हा। बात चाली कै इण बगत कोई अछूतो दान करणियो क्षत्रिय नीं है। नाहरखांनजी कैयो कै ऊजल़ चरित्र रो कोई चारण होवै तो “हूं ओ काम कर सकूं।” दरबारियां कैयो कै छींडिया रा गाडण माधोदासजी इणीगत रा चारण है। आप उणां नैं अछूतो दान कर सको।
विचार होयो कै माथै रो दान तो जगदेव पंवार कर चूको सो नाहरखांनजी कोई दूजो दान करै तो ठीक रेवै। नाहरखानजी कैयो कै “म्है काल़जै रो दान करूंलो। माधोदासजी नैं तेड़ाया जावै।”
माधोदासजी नैं हथाई रै मिस तेड़ाया अर मोको देखर नाहरखांनजी कटारी सूं आपरो काल़जो काढ, माधोदासजी नैं कैयो “ले वडा चारण, नाहरखांन रो अछूतो दान।”
माधोदासजी देखै तो ठालैभूलै नाहरखांन रै हाथ में आपरो काल़जो अर आंख्यां में मोटैपणै रा भाव। एकर तो माधोदासजी हाकबाक रहग्या पण दूजै ई क्षण आपरी कटारी काढी अर सीधो आपरो काल़जो चीर र काढियो। हथाल़ी में लेय र हथाल़ी मांडर कैयो “ले वडा ठाकुर इण काल़जै रै माथै काल़जो आवण दे।”
दोनूं ई परमवीर परमगत पायग्या पण इतियास में बात अमर करग्या। किणी समकालीन कवि रो इण अमर कथा नैं मंडित करतो ओ कवित्त आज ई लोक रसना माथै अवस्थित है-
दैण अछूतो दान, धणी आसाणै धारी।
काल़जियो निज काढ, कमध तन छेद कटारी।
कहियो नाहरखांन, मांड कर गाडण माधो।
माधव कहियो मुदै, अमरफल़ लेवूं आधो।
एक व्है वडा ठाकुर अमर, पातां सीस पिरांणदे।
काल़जो काढ माधव कहि, इणरै ऊपर आंणदे।।
कविवर माधोदासजी रा बणाया महान वीर अमरसिंह राठौड़ री कटारी रै भाव रा छंद घणा चावा है। नव विधानिक छंद पढणजोग है जिण में कवि अमरसिंह री कटारी नै सिंहण, बीजल़ी, नागण, हथणी, अगन, वराही, नदी, गिरजणी, अर साकणी रै नव रूपां में वीररसात्क उटीपो वरणन कियो है। एक दाखलो-
वनखंड पुराणैय जाण विलम्मिय, घूघरयाल़िय आग धिखै।
झखि अंग विहंग दीयंतिय झाल़ांय, बाल़ाय नाखै ताड़ ब्रिखै।
बहदुंग दवंग सुरंगिय बुंदांय साह परग्गैय धाह सुणै।
अमरेस कटारिय मेछ तणै उर, तोखी (तोखिय) गाजीसाह (गाजियसाह)तणै।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी