कलो भलो रजपूत कहीतो

कल्ला रायमलोत अर स्वाभिमान एक दूजै रा पर्याय मानीजै। जोधपुर रै राव मालदेव रै बेटै रायमल रो प्रतापी सपूत कल्लो (कल्याण दास) सीवाणै रो धणी। वो सीवाणो, जिण री थापना विक्रमादित्य रै बेटै वीर नारायण करी अर उण री साख रै खातर चहुंवाण वीर सातल अर सोम खिलजी सूं जूझता सुरग पथ रा राही बणिया। कोई इणनै़ सोम रै नाम सूं सोमियाणो अथवा समियाणो ई कैवै।

उण दिनां अकबर रो राज हो। मोटै राजा उदयसिंहआपरी बेटी मानाबाई रो ब्याव अकबर साथै करणो तय कियो तो कुल़ परंपरा रै काट लागतो देख वीर कल्लै घणो विरोध कियो पण मोटो राजा मानियो नीं।

अकबर नैं इण बात री ठाह लागी तो बो घणो रीसायो।

एक दिन अकबर रो दरबार लागोड़ो। चर्चा-चर्चा में अकबर बूंदी रै हाडै भोज सुरजनोत री अनद्य सुंदरी बेटी रो हाथ भोज सूं मांगियो। भोज ई आपरी परंपरावां नैं पोखणियो हो। उण जाब दियो कै “बाई री सगाई कर दीनी। सो हमें बाई पराई!” अकबर पूछियो “कुण है ऐड़ो ! जिणरै साथै तैं थारी बाई री सगाई करी है?” दरबार में सरणाटो छायग्यो। सगल़ै नरेशां डरियोड़ां धूण नीची घालली। कै कठै ई भोज म्हांरो नाम लेयर गिरै में नीं नाखदे। उण बगत भोज देखियो कै कल्लो रायमलोत आपरी मूंछां रै वट देय रैयो है। उण कैयो “हुकम! सीवाणै कल्लै रायमलोत साथै!”

“नीं कल्लो थारी बेटी लायक नीं है।” अकबर कैयो। अकबर कल्लै कानी खारी मींट सूं जोवतां कैयो “कल्ला आ सगाई अबार ई छोड!” कल्लै कैयो हुकम रजपूत री मांग मरियां ई छूटणी दोरी है! पछै हूं तो जीवतो हूं! बात खंचगी अर कल्लै ब़ूंदी जाय हाडी सूं ब्याव कर लियो।

किंवदंती है कै उण बगत कल्लो वल़दरा रा आसिया दूदाजी अर बीकानेर महाराज पृथ्वीराजजी सूं मिल़ियो अर कैयो कै “म्है हमें मरण मारग रो वटाऊ हूं अर थे दोनूं ई मोटा कवि हो, म्हारी इच्छा है कै आप दोनूं ई म्हनै म्हारा जीवतै रा मरसिया सुणावो!”

दोनां ई कैयो कै आ कदै ई सकै कै आप जीवता अर म्हें मरसिया सुणावां! कल्लै कैयो कै म्हारो वचन है कै ज्यूं आप म्हारा मरसिया बणावोला, म्हे बिंयां ई लड़र मरूंलो।

कल्लै री दृढता अर वचनबद्धता रै कारण दोनां ई उणनैं जीवतै नैं मरसिया सुणाया। कैयो जावै कै उण बगत कल्लै रो तेज अर मुख मंडल़ दैखणजोग हा। कविवर दूदाजी बीस कुंडल़िया अर पृथ्वीराजजी चवदै दुहालां रो एक सावझड़ो गीत कैयो। दोनूं ई रचनावां महावीर कल्लै री वीरता रा जीवंत दस्तावेज है। 

अकबर फौज मेली पण कल्लै री झाट झेल नीं सकी। पछै मोटो राजा खुद आयो। पोलियै नाई गढ री पोल बताई। उण बगत छत्र्याणां जौहर री झाल़ां झूली अर वीरां केशरिया कर मरण तिंवार मनायो। परमवीर कल्लो सिर पड़ियां ई पछै ई वैरियां नैं झूड़तो रैयो।

तत्कालीन डिंगल़ कवियां ई नी परवर्ती डिंगल़ कवियां इण वीर री कमनीय कीरत उकेरण में पाछ नीं राखी। कैयो जावै कै कल्लै तक फौज आसानी सूं नीं पूगै इण सारु कल्लै रो रजपूत भायल गोयंददास घणी वीरता बताय काम आयो –

गोय़द बोलियो तरवार भुजां ग्रह
अरि दल़ मोड़ा आया।
कोट तणी तो लाज कला नैं
भाखर मूझ भल़ाया।।

कवि श्रेष्ठ पृथ्वीराजजी कल्ला री कीरत उकेरता लिखै-

वद चढ बोलियो पतसाह वदीतो।
मांण मंडोवर राख मलीतो।
जिण जमवार लगै जस जीतो।
कलो भलो रजपूत कहीतो।।
थल़ गांगरण तल़ेटी थांणो।
राज अग्राज करै रीसाणो।
कड़वा वचन कहै कलियाणो।
सिर पड़ियां पल़टै समियाणो।।

कविकर दूदाजी रै सतोलै आखरां में –

मात पखि वीजड़ लखो, दादो माल सलक्ख।
कलो भलो गाहिड़ करै, बिहुं पखां छल़ रक्ख।
छल़ सबल़ आवरै, दीपियो छेहतर।
हेवै अकबर कहै, अगांजी जोधहर।
कलो गंगेवहर हुवो, अचड़ां करण।
पिता पखि मालदे, मात पखि लाखमण।।

इण कवियां रै साथै ई दुरसा आढा, किसना बोहगुणोत, माला सांदू बगतोजी खिड़िया, बांकीदासजी आसिया सैति कितरै ई कवियां रै साथै अज्ञात कवियां री सतोली वाणी इण वीर रै खांडै रै पाणी नैं बखाणियो है-

कलो हला पर कोपियो, ढालां पाथर ढांण।
पाथर मुगलां पाड़िया, राज दला रढराण।।
छकिया घावां सामछल़, बकिया भड़ उतबंग।
अंग हूचकिया अणखलै, रजपूतां ज्यां रंग।।

~~गियधरदान रतनू दासोड़ी

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